Friday, August 15, 2008

आसान नहीं मुशर्रफ का जाना!

राजनीतिक उठापटक और गोटियां बैठाने में माहिर मुशर्रफ को पाकिस्तान की राजनीति से दरकिनार करना एक मुश्किल काम होगा।

राजेंद्र श्रीवास्तव

पाकिस्तान में तेजी से बदलते घटनाक्रम ने सियासी माहौल को फिर गर्म कर दिया है। गठबंधन सरकार के सबसे बड़े दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सहअध्यक्ष आसिफ अली जरदारी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता नवाज शरीफ के बीच तालमेल बैठ गया है। दोनों नेताओं ने राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग लाने का ऐलान किया है। इसी वजह से राष्ट्रपति मुशर्रफ ने आनन-फानन में अपना चीन जाने का कार्यक्रम रद्द किया और जुट गए नई स्थिति से निपटने की रणनीति बनाने में।

पहले मुशर्रफ ने महाभियोग की स्थिति में इस्तीफा देने का मन बनाया था लेकिन अब वे उसका सामना करने के लिए तैयार हो गए हैं। ऐसे में दो विकल्प उनके सामने हैं-पहला नेशनल असेम्बली में प्रस्ताव आने पर अपना पक्ष रखें और सरकार को दो-तिहाई बहुमत जुटाने की कोशिशों को नाकाम कर दें। आईएसआई को लेकर जिस तरह उठापटक हुई और मुशर्रफ ने उसे जिस तरह सरकार के नियंत्रण में जाने से रोका है, यह उस बात का संकेत है कि सेना और मुशर्रफ में अभी तालमेल है। और आईएसआई दो-तिहाई बहुमत जुटाने की कोशिशों को नाकाम करने में पूरा जोर लगा देगी।

पाकिस्तान की सेना भी नहीं चाहेगी कि उसके एक पूर्व जनरल को उस तरह बेआबरू करके हटाया जाए। इस सिलसिले में पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असफाक परवेज कियानी की अन्य कमांडरों के साथ रावलपिंडी में हुई बैठक को राजनीतिक क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। वैसे जनरल कियानी सेना को राजनीति से अलग रखने की बात कह चुके हैं लेकिन नई परिस्थिति में भूमिका बदल भी सकती है।

मुशर्रफ के सामने दूसरा विकल्प है राष्ट्रपति के रूप में अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 5(2)(बी) के अंतर्गत नेशनल असेम्बली को भंग कर दे। लेकिन तब उसे सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी दिलानी होगी जिसके तीन महीने के भीतर चुनाव कराने होंगे।

सबसे हैरत में डालने वाली बात है जरदारी के रुख में परिवर्तन। अभी तक जरदारी किसी भी कीमत पर मुशर्रफ से टकराव के लिए तैयार नहीं थे, इसीलिए वे राष्ट्रपति के प्रति नरमी बरत रहे थे और नवाज शरीफ से भी उनकी खटपट हुई थी लेकिन अब वे मुशर्रफ का सियासी रुतबा पूरी तरह से खत्म करने का मूड बना चुके हैं। इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि जरदारी खुद राष्ट्रपति पद संभालना चाहते हैं। लेकिन यह बहुत दूर की बात है। इसी संदर्भ में जरदारी शरीफ के बीच तालमेल की बात भी जरूरी है। जजों की बहाली के मुद्दे पर सत्ता से अलग होने वाली शरीफ की पार्टी अब फिर सरकार में शामिल होने पर तैयार हो गई है।

महाभियोग प्रस्ताव पर सहमति के बाद दोनों नेताओं ने संयुक्त बयान में कहा-हम दोनों पाटियां इस प्रस्ताव पर पूरी तरह सहमत हैं। इसका एक-एक शब्द हमने साथ मिलकर लिखा है। पूरा देश इस फैसले से खुश है। इसी के साथ दोनों नेताओं ने मुशर्रफ द्वारा हटाए गए जजों की बहाली किए जाने पर सहमति जताई ।

जरदारी ने कहा लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका जरूरी है और मुशर्रफ ने जिन जजों को हटाया था ,उन्हें बहाल करके ही लोकतंत्र आ सकता है। सदर को हटाना हमारा लोकतांत्रिक और संवैघानिक अधिकार है। पाकिस्तान की जनता ने हमें जनादेश दिया है।
महाभियोग प्रस्ताव के लिए दो-तिहाई बहुमत के बारे में पूछे जाने पर जरदारी ने जवाब दिया-हमारे पास वोट भी है और लोकतांत्रिक फैसला करने की हिम्मत भी।

मुशर्रफ के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पारित हो या राष्ट्रपति नेशनल असेंबली भंग करें दोनों ही स्थितियों में पाकिस्तान में अराजकता पैदा होगी। सरकार का अभी भी देश की स्थिति पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं है और तालिबान कभी भी करांची पर कब्जा करने की धमकी दे रहे हैं। राजनीतिक अस्थिरता पैदा होने पर लोकतंत्र विरोधी ताकतें फायदा उठा सकती हैं। लेकिन पाकिस्तान की राजनीति में सेना की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। आजादी के बाद से पाकिस्तान में अधिकतर समय सैनिक शासन ही रहा है। लोकतंत्र का दौर जो रहा भी, वह बहुत संक्षिप्त रहा और उसमें भी परोक्ष या अपरोक्ष रूप से, उसमें भी सेना का हस्तक्षेप रहा है।

मुशर्रफ ने अब सेना से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। उन्होंने जनरल कियानी को सेनाध्यक्ष बनाया है और वे मुशर्रफ का पूरा सम्मान करते हैं। सेना में सीनियर और जूनियर का ध्यान बहुत रखा जाता है। माना जा रहा है कि मुशर्रफ के समर्थक दल और नेता भी उनके साथ खड़े हो गए हैं और एेसा लग रहा है कि इस लड़ाई में उसी की जीत होगी जो कूटनीति में माहिर होगा।

2 comments:

Udan Tashtari said...

आगे आगे देखिये, होता है क्या! विश्लेषण अच्छा है.

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

कौन छोड़ता है अपनी जगह आसानी से?

आजाद है भारत,
आजादी के पर्व की शुभकामनाएँ।
पर आजाद नहीं
जन भारत के,
फिर से छेड़ें, संग्राम एक
जन-जन की आजादी लाएँ।