Tuesday, August 12, 2008

विवाद के पीछे राजनीति

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की मानें तो इस सारे विवाद के पीछे राजनीति है। वे अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन विवाद पर अपनी सरकार की नीयत साफ बताते हुए आरोप लगाते हैं कि श्रीनगर में पीडीपी और जम्मू में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा ने जनता की भावनाओं को भड़काया।

गुलाम नबी आजाद

मेरी नजर में श्राइन बोर्ड को जमीन दिया जाना विवाद की वजह नहीं है। न ही इसमें कुछ ऐसा हो गया था जो अपराध जसा हो। इस सारे विवाद के पीछे राजनीति है। जम्मू-कश्मीर की 80 से 90 फीसदी जमीन जंगलात की है, और राज्य में रोड बनाने, कृषि कार्यो, अस्पताल व अन्य निर्माण कार्यो के लिए इसी भूमि का उपयोग किया जाता है। राज्य की तकरीबन हर मंत्रिमंडलीय बैठक में दर्जन भर मामले भूमि उपयोग के बदले जाने से जुड़े हुए होते हैं। जिस दिन अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन आवंटित किए जाने का फैसला किया गया, उस दिन भी (मई-20,2008) चार और मामलों में भूमि उपयोग को बदले जाने का िंनर्णय लिया गया था। दरअसल श्राइन बोर्ड की जमीन दिए जाने के साथ ही,बड़े पैमाने पर अफवाहों का दौर शुरु हो गया। स्थानीय पार्टियों के इशारे पर राज्य की मीडिया और राज्य की राजनीतिक पार्टियों नें लोगों को गुमराह किया। सोची समझी राजनीति के तहत अवाम के एक तबके में यह बात फैलायी गयी कि आजाद सरकार ने जमीन का टुकड़ा श्राइन वोर्ड को पक्की रिहाइश बनाने के लिए दे दिया ।

इसके बाद कश्मीर घाटी में असामान्य होती स्थितियों के मद्देनजर सरकार ने इस निर्णय को वापस लेने का फैसला किया। इसके बाद हमने एक और निर्णय लिया कि पवित्र गुफा से यात्रा के प्रारम्भ बिन्दु तक यात्रियों के लिए सुविधाएं जुटाने का काम जम्मू कश्मीर पर्यटन विभाग के जिम्में सौप दिया जाए और इसके लिए यात्रा मार्ग के दोनों ओर स्थिति पर्यटन विभाग की जमीन का उपयोग किया जाए । हमारी मंशा साफ थी। हम किसी भी रूप में हिन्दू भावनाओं का अनादर नहीं करना चाहते थे। लेकिन दुर्भाग्य से राजनीतिक पार्टियों विशेष कर भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने का मन बना लिया।

इस मामले में जनरल सिन्हा को घसीटना उचित नहीं है। मैं उनका सम्मान करता हूं । श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने जमीन के लिए प्रयास किया। लेकिन इसके लिए दबाव बनाने जसे पीडीपी के आरोप निराधार और बेबुनियाद है। यह प्रक्रिया एक दो महीनों से नहीं बल्कि पिछले तीन सालों से चल रही थी। पीडीपी को अगर इसमें आपत्ति थी तो वे पहले विरोध कर सकते थे । उन्होंने .यह सब राजनीतिक लाभ के लिए किया गया है। इन लोगों ने घूम-घूम कर इस बात का प्रचार करना शुरु कर दिया कि भारत सरकार राज्य के जनसंख्या अनुपात को बदलने का प्रयास कर रही है और इस जमीन पर होने वाले निर्माण में हजारों लोग स्थायी रूप से रहने लगेंगे।

इस मिथ्या प्रचार में संचार माध्यमों (एसएमएस) का सहारा भी लिया गया। नतीजे में लाखों कश्मीरी इसके खिलाफ सड़कों पर उतर आए । दरअसल इन सारे मामले में राजनीतिक पार्टियां खास कर पीडीपी ने बेहद क्ष्रु रवैया अपनाया। कैबिनेट ने बालटाल से उक्त स्थान की नजदीकी का ध्यान रखते हुए जमीन आंवटित की थी। आवंटित भूमि स्थल पवित्र गुफा से 20 किमी की दूरी पर स्थित है। सरकार की मंशा वहां के मौसम को देखते हुए यात्रियों के लिए कम से कम दूरी पर अधिक से अधिक सुविधाएं प्रदान करने की थी, ताकि दर्शन करने वाले यात्रियों को कष्ट न हो।

मंत्रिमंडल ने यह जमीन श्राइन बोर्ड को अस्थाई निर्माण के लिए ही दी थी जिसमें जमीन के उपभोग को न बदलने की शर्त भी शामिल थी। कश्मीर में जो कुछ पीडीपी ने किया जम्मू में भाजपा भी वही कर रही है। जम्मू के पूरे आंदोलन के पीछे भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों का हाथ है। वे संघर्ष समिति की आर्थिक मदद दे रहे है। मैं खुद जम्मू का हूं । मुङो लोगों की भावनाओं की क्र है। हम इसे मिल बैठ कर तय कर सकते है। लेकिन यह तब संभव होगा जब बाहरी लोग खासकर दिल्ली में बैठे भाजपा और आरएसएस के लोग वहां के लोगों की भावनाओं से न खेलें। लड़ाई से कभी कोई फैसला नहीं हुआ।

जम्मू के आंदोलन से घाटी की ओर रसद ले जाने में मुश्किलात आ रही है। वहां के मौसम के मद्देनजर यही समय है जब रसद आपूíत की जाती है। यह नहीं भूलना चाहिए की कश्मीर देश का सबसे संवेदनशील सीमांत प्रदेश है। फौज की आवाजाही में रुकावट आने से इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। पिछले दो महीनों से चल रहे इस आन्दोलन से राज्य को गहरी आर्थिक क्षति भी हुई है। जिसका खामियाजा अन्तत: राज्यवासियों को ही भुगतना होगा। इन प्र्दशनों ने वैष्णों देवी व अमरनाथ यात्रा के लिए आने वाले यात्रियों की सख्यां को भी खासा प्रभावित किया है।
हमें उम्मीद है कि संघर्ष समिति के लोग वार्ता के रास्ते पर आगे आएंगे और हम जल्द ही मामले का माकूल हल निकलने में कामयाब हो जाएंगे।

1 comment:

Asha Joglekar said...

Kashir ke logon ke hiton ko dekhna chahiye jisme Hindu bhi Shamil hon. Amarnath Shrine board ko jameen kyun dee jarahi hai ye spsht karne men itni der kyun.