Sunday, August 7, 2016

ये जोगी के उम्मीदों की लांचिंग है

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी ने नई पार्टी बनाकर कांग्रेस और भाजपा दोनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। नई पार्टी के अपने-अपने आंकलन होते हैं, लेकिन जोगी की पार्टी जिस अंदाज में मैदान में उतरी है, वह बता रही है कि जंग जारी रहेगी। चाहे वह सरकार के खिलाफ हो या फिर कांग्रेस संगठन के खिलाफ। आज जोगी की पार्टी का थीम सांग लांच किया गया। यह गीत जोगी के उस सपनों की लांचिंग है, उस उम्मीद की लांचिंग है, जिसका परिणाम 2018 के विधानसभा चुनाव में सामने आएगा। छत्तीसगढ़ की राजनीति के जानकारों की मानें तो पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की राजनीति काफी आक्रामक रही है। उनको जोड़ने, तोड़ने और फोड़ने का माहिर खिलाड़ी माना जाता है। लेकिन सत्ता से 13 साल दूर रहने के बाद जब जोगी नई पार्टी के साथ मैदान में उतरे हैं, तो उनके कदम बेहद सधे हुए हैं। जोगी जब थीम सांग की लांचिंग कर रहे थे, तो पत्रकारों का अधिकांश समूह यही चर्चा कर रहा था कि ये जोगी की स्टाइल नहीं है। उम्मीद, सपने और सौम्य अंदाज में पेश आही राज, जनता कांग्रेस के आही राज थीम सांग को सुनकर अधिकांश लोग यही कह रहे थे कि अब जोगी की सोच में बदलाव आया है। कहा जा रहा है कि जोगी अब जोड़ने के लिए काम कर रहे हैं, जो उनके स्वभाव और कार्यशैली से काफी अलग है। जोगी को जानने वाले नेताओं का तो यहां तक कहना है कि साहब ने अपने काम के तरीके में पिछले छह महीने में जोरदार बदलाव किया है। अब वो भी 14 से 16 घंटे काम कर रहे हैं। बंद कमरे में उनके रणनीतिकार देर रात तक मंथन करते हैं और एक-एक कैंपेन को प्लान कर रहे हैं। जोगी के करीबी नेताओं की मानें तो जोगी ने नई पार्टी के गठन की शुस्र्आत फरवरी से ही शुरू कर दी थी। उसी समय उनको अंदाजा लग गया था कि अब अलग चलने में ही वजूद बचेगा। अब जोगी छत्तीसगढ़ में अपने वजूद की आखिरी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में है। यही कारण है कि धरना और आंदोलन में किसी युवा नेता की तरह सड़क पर उतर जा रहे हैं। कहीं भी कंबल बिछाकर सड़क पर लेट जा रहे हैं। यह सब जोगी के रणनीतिकारों की सधी हुई और मीडिया को आकष्र्ाित करने की रणनीति का हिस्सा है। यह सच है कि जोगी की पार्टी में चेहरा भी अजीत जोगी है, कानून भी अजीत जोगी है और सरकार भी अजीत जोगी है। ऐसे में इसी चेहरे को 2018 तक इतना मजबूत करने की कोशिश की जा रही है कि कांग्रेस के नेताओं का कद उनके सामने टिक न पाए और अगर सरकार विरोधी लहर का फायदा उठाने का मौका मिले तो वह जोगी कैंप की झोली में गिरे।

Monday, June 6, 2016

मौलिक चिंतन से दूर जोगी के सिपहसलार, केजरी-कन्हैया के विचार चुराए

मृगेंद्र पांडेय अजीत जोगी ने भले ही नई पार्टी बनाने की तैयारी कर ली हो, लेकिन उनके सिपहसलार मौलिक चिंतन से काफी दूर हैं। कोटमी के सभा में जो पर्चे बांटे गए, उसमें जोगी की मौलिकता नजर नहीं आ रहीहै। जोगी की पार्टी का संभावित नाम छत्तीसगढ़ अपना दल होगा। उत्तर प्रदेश में सोनेलाल पटेल की पार्टी का नाम अपना दल है। सोनेलाल की बेटी अनुप्रिया पटेल ने पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठजोड़ करके भदोही से लोकसभा सीट भी जीती है। सोनेलाल को जानने वाले साफ कहते हैं कि सिर्फ सवर्णों का विरोध करके पूरी जिंदगी अपनी नेतागिरी चमकाते रहे। ऐसे में क्या जोगी का एजेंडी भी सवर्ण विरोधी होगा। जोगी ने बसपा का टैगवर्ड सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय को चुना है। इसमें भी छत्तीसगढ़ियां कोई भी शब्द शामिल कर सकते थे, लेकिन वे सिर्फ बातों से ही छत्तीगढ़ियां राग अलाप रहे हैं। माना जा रहा है कि वे दलित और पिछड़ों पर फोकस राजनीति को बढ़ावा देंगे। उनके घोषणा पत्र में जेएनयू के छात्रसंघ्ा अध्यक्ष कन्हैया का आजादी वाला राग भी शामिल है। कन्हैया ने तो मौलिक आजादी का सवाल उठाया था, लेकिन जोगी के करीबी नेताओं ने इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करके बता दिया कि वे कुछ भ्ाी नया नहीं करने जा रहे हैं। सीजी खबर में एक आर्टिकल में अन्वेषा गुप्ता ने भी लिखा है कि छत्तीसगढ; में अजीत जोगी के पास ऐसे कौन से मुद्दे हैं जिनके बल पर वे कांग्रेस व भाजपा का विकल्प पेश कर सकते हैं. उनके पुत्र अमित जोगी द्वारा केवल यह कह देना कि जनता का समर्थन उ)की सबसे बड;ी संपत्ति है कह देना आज के राजनीतिक दौर में नाकाफ;ी है. जनता उसे वोट देती है जिसमें उसे अपनी बेहतरी की उम्मीद होती है. रमन सिंह या भूपेश बघेल की आलोचना करना उन्हें 2018 के विधानसभा में वोट नहीं दिला सकता है. जोड;-तोड; करके तो हरगिज भी 90 सदस्यीय छत्तीसगढ; विधानसभा में बहुमत हासिल नहीं किया जा सकता है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के मरवाही विधानसभा में अमित जोगी ने भले ही 40 हजार से ज्यादा वोट से जीत दर्ज की हो, लेकिन उसी मरवाही की पहली बैठक में सिर्फ दस हजार लोग ही पहुंचे। कांग्रेसी मान रहे हैं कि बाकी 30 हजार से ज्यादा वोटर कांग्रेसी है, जो कांग्रेस उम्मीदवार होने के कारण अमित जोगी के साथ थे। ऐसे में यह संदेश साफ है कि जोगी की एकला चलो की राह आसान नहीं है।

Thursday, May 12, 2016

चुटकी लेने वाले राज्यपाल क्या बचा पाएंगे गरिमा

मृगेंद्र पांडेय छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति को लेकर कांग्रेस ने मोर्चा खोला है। सड़क से लेकर हर अभियान में कांग्रेस का एक ही मुद्दा है और वह है जोगी की जाति। प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और कांग्रेसी राज्यपाल को मिले और जोगी की जाति के मुद्दे पर ज्ञापन सौंपा। एक दिन बार राजभवन से जो विज्ञप्ति जारी हुई उसे राज्यपाल की गरिमा के अनुरूप नहीं माना जा सकता। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह विज्ञप्ति किसी पार्टी के एक नेता की हो सकती है, लेकिन किसी राज्य के संवैधानिक प्रमुख की तरफ से अगर इस तरह की विज्ञप्ति जारी होती है, तो उसे राज्यापाल की गरिमा के अनुकूल नहीं माना जा सकता। राजभवन से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, प्रतिनिधि मंडल द्वारा व्यक्ति विशेष के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में कार्रवाई के लिए ध्यान आकर्षित कराए जाने पर चुटकी लेते हुए राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि यह मामला तो घर का है इसे अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं। क्या किसी संवैधानिक प्रमुख को इस तरह का बयान देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो क्या राजभवन की गरिमा को गिराने का काम नहीं किया जा रहा है। यह हो सकता है कि राज्यपाल को दिखाए बिना ही यह विज्ञप्ति जारी कर दी गई हो, लेकिन जब तक जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, यह सवाल उठता रहेगा। http://dprcg.gov.in/884-12-05-2016 यह है राजभवन से जारी विज्ञप्ति राज्यपाल श्री बलरामजी दास टंडन से गत दिवस यहां राजभवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री भूपेश बघेल के नेतृृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने भेंट कर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के प्रकरणों में त्वरित कार्रवाई के संबंध में ज्ञापन सौंपा। राज्यपाल श्री टंडन ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि राज्य सरकार फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले पर पूरी गम्भीरता और तत्परता से कार्रवाई कर रही है। उन्होंने बताया कि सरकार को इस संबंध में लगभग 550 शिकायतें मिली थी। विजिलेंस कमेटी द्वारा इनमें से लगभग 375 मामलों की विवेचना की गई और 184 मामलों में शिकायतें सही पाई गई है। हाईपावर कमेटी की अनुशंसा पर 25 मामलों में राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई करते हुए संबंधितों को नौकरी से निकाला गया है। शेष मामले उच्च न्यायालय में लंबित हैं। प्रतिनिधि मंडल द्वारा व्यक्ति विशेष के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में कार्रवाई के लिए ध्यान आकर्षित कराए जाने पर चुटकी लेते हुए राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि यह मामला तो घर का है इसे अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं। प्रतिनिधिमंडल से चर्चा के दौरान राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि ऐसे विशिष्ट मामले जिन पर कार्रवाई नहीं की गई हो बताएं, ताकि उन पर कार्रवाई की जा सके। उन्हांेने कहा कि हाईकोर्ट में सरकार की ओर से सही पक्ष नहीं रखने के संबंध में प्रमाण सहित जानकारी उपलब्ध कराएं जिससे कि सरकार को इस संबंध में अवगत कराया जा सके। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रतिनिधि मंडल द्वारा पूर्व में प्रेषित अपने 6 सूत्रीय ज्ञापन में से व्यक्ति विशेष के फर्जी जाति प्रमाण पत्र से संबंधित बिन्दु पर ही जोर दिया जा रहा था। राज्यपाल द्वारा अनेक बार यह कहने पर कि इसके अलावा कोई नई बात हो तो समक्ष में लाएं किन्तु प्रतिनिधि मंडल ने अन्य बिन्दुओं का जिक्र नहीं किया। ज्ञापन में प्रदेश में आउट सोर्संिग, वन अधिकार अधिनियम, पांचवी अनुसूची, अधिसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट आदि बिन्दुओं का समावेश किया गया था। अंत में प्रतिनिधि मंडल द्वारा समक्ष में राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में फर्जी जाति प्रमाण पत्र संबंधित 338 प्रकरणों की सूची संलग्न की गई।

Thursday, May 5, 2016

विवादों वाले ब्यूरोक्रेट्स, नबंर वन छत्तीसगढ़

मृगेंद्र पांडेय भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को लेकर छत्तीसगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में एक के बाद एक ऐसे आईएएस अफसर विवादों में आए हैं, जो नए हैं और जिनसे कुछ बेहतर करने की उम्मीद है। ये अफसर अब अपने अच्छे काम से नहीं, बल्कि विवादों के कारण पहचान बना रहे हैं। एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ब्रांडिंग नंबर वन के रूप में की जा रही है, इसलिए नए नवेले आईएएस विवादों में लाकर नंबर वन बनवा रहे हैं। सवाल है कि आखिर ये अफसर विवादों में क्यों आ रहे हैं। क्या इनका प्रशिक्षण कमजोर हो गया है, या फिर आईएएस बनने के बाद ये खुद को लोकतंत्र में राजा की जगह रखकर देखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में एक अफसर रणबीर शर्मा कुछ स्र्पए की रिश्वत के मामले में फंस जाते हैं। जगदीश सोनकर डाक्टर होने के बावजूद मरीज से बेअदबी से पेश आते हैं। अमित कटारिया जैसा सुलझा हुआ अफसर पर प्रधानमंत्री को रिसिव करने जाता है, तो प्रोटोकाल का पालन नहीं करता है और किरकिरी होती है। एलेक्स पाल मेनन काफी समझदार माने जाते हैं। सोशल मीडिया पर एक्टिव है। दलित चिंतन से लेकर समाज में बदलाव पर नजर रखते हैं, लेकिन जिस कन्हैया का केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भाजपा सरकार विरोध कर रही है, उसका समर्थन करते हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर को ही कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है। जबकि ये कलेक्टर कानून का ही सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे हैं। मेरा सवाल यह है कि क्या ये आईएएस अफसर अपने अच्छे काम के जरिए पहचान नहीं बना सकते हैं। देश की सर्वोच्च सेवा के लिए चयनित अगर कोई अफसर 500 या हजार स्र्पए के लिए गरीब जनता को प्रताड़ित करता है, तो उसे इस नौकरी में आना ही नहीं था। मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि पैसा कमाने के लिए और भी कई रोजगार हो सकते हैं। नए अफसरों को यह भी सोचना चाहिए कि अब सरकार इतनी तनख्वाह दे रही है कि रिश्वत मांगने की शायद जरूरत नहीं है। मेरे के साथी ने यह पोस्ट किया कि ये तस्वीर उस यूपीएससी के गाल पर करारा तमाचा है जो सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा में उम्मीदवारों के सिविल सर्विस एप्टीट्यूट और मेन परीक्षा के जनरल स्टडीज पेपर-4 में उम्मीदवारों के इथिक्स, इंटीग्रीटी और एप्टीट्यूट को को परखता है। मुझे भी लगता है कि इन अफसरों का चयन करने वालों को भी एक बार सोचना चाहिए कि क्या उनको प्रशिक्षण देने में कहीं चूक हुई है। क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती कि इनको कुछ सिखाएं। अगर सरकार सिखाने में असफल है, तो उसे पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है। ऐसी सरकार और सरकार को चलाने वाले ब्यूरोक्रेट एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी और अपने काम करने के तरीके के बारे में जरूर सोचें। नहीं तो ऐसा ही होगा कि कोई नेता या मंत्री लोकसुराज जैसे अभियान में किसी आईएएस को मुर्गा बना देगा और जनता ताली पीटेगी।

Thursday, April 28, 2016

टूट रहा था जज्बा, बेटे ने कहा-आखिरी चांस है मां, दे दो पीएससी

बेटे की जिद से 47 साल की मां ने किया पीएससी टॉप इंटरव्यू के छह घंटे में पीएससी ने घोषित किया परिणाम, आभा तिवारी टॉपर मृगेंद्र पांडेय टॉपर आभा तिवारी का जज्बा अपनी बेटी की बीमारी के कारण टूट रहा था, लेकिन जब उनके बेटे ने यह कहा कि मां आखिरी चांस है, पीएससी दे ही दो, तो आभा खुद को रोक नहीं पाई। 47 साल की उम्र में आभा का जोश आज किसी कालेज टॉपर से कम नजर नहीं आ रहा था। नईदुनिया से चर्चा में आभा ने कहा कि अगर उनका बेटे मोटिवेट नहीं करता, तो आज वो घर पर ही बैठी रहतीं। आभा ने बतााया कि पिछले दस साल से अपनी बेटी की बीमारी को लेकर परेशान थी। जब बच्ची की मौत हुई, तो वह टूट सी गई। लेकिन हिदायतउल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले उनके बेटे ने ढांढस बंधाया और पीएससी की तैयारी में मदद की। आभा ने बताया कि लोक प्रशासन, इतिहास और संविधान की पढ़ाई उनके बेटे ने कराई। वे तीन बार से पीएससी की परीक्षा दे रही थी, लेकिन पहली बार में चयन डिप्टी कलेक्टर के पद पर हुआ। वे कत्थक नृत्यांगना हैं और बिरजू महाराज की शिष्य हैं। आभा गरियाबंद कालेज में पढ़ाती थी, लेकिन पिछले तीन साल से घर में ही तैयारी कर रहीं थी। आभा ने बताया कि पीएससी की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों को मेहनत और लगन के साथ तैयारी करनी होगी। आभा तिवारी के पति दिवाकर तिवारी सहायक आबकारी अधिकारी हैं और उनके भाई सेंट्रल एक्साइज कमिश्नर अजय पांडे हैं। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने राज्य सेवा परीक्षा 2014 का परिणाम गुस्र्वार शाम को जारी कर दिया, जिसमें रायपुर की गृहणी आभा तिवारी ने टॉप किया। राज्य सेवा के 325 पदों के लिए हुई परीक्षा का इंटरव्यू गुस्र्वार दोपहर डेढ़ बजे खत्म हुआ और शाम सात बजे परिणाम घोषित कर दिया गया। पीएससी ने पहली बार राज्य सेवा परीक्षा के परिणाम इंटरव्यू के छह घंटे बाद घोषित किया है। टॉप टेन में पांच सामान्य वर्ग और पांच पिछड़े वर्ग के उम्मीदवार हैं। इसमें दो डीएसपी, दो डेंटल डॉक्टर और तीन कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर हैं। परीक्षा नियंत्रक एके मिश्रा ने बताया कि आभा तिवारी परीक्षा में 947 अंक प्राप्त करके पहले स्थान और स्निग्ध तिवारी 883 अंक के साथ दूसरे स्थान पर रही हैं। तीसरे स्थान पर भूपेंद्र कुमार साहू, चौथे योगेंद्र श्रीवास, पांचवे आनंद स्र्प तिवारी, छठवें राकेश गोलछा, सातवें विकास कुमार नायक, आठवें प्रदीप कुमार, नौवें मनीष साहू और दसवें स्थान पर ओंकार यादव का चयन हुआ है। किसान की बेटी दूसरे स्थान पर, डीएसपी हैं स्निग्धा, चंदखुरी में ले रही है ट्रेनिंग बिलासपुर के एक साधारण किसान परिवार की डॉ स्निग्ध तिवारी दूसरे स्थान पर हैं। इससे पहले उनका चयन डीएसपी पद पर हुआ था। स्निग्धा ने बताया कि वर्ष 2013 की पीएससी में उनका 32वां रैंक था। वर्तमान में वे पुलिस अकादमी चंदखुरी में प्रशिक्षण ले रही है। बीडीएस डाक्टर स्निग्धा का कहना है कि परीक्षा की तैयारी कर रहे परीक्षार्थी लक्ष्य निर्धारित करें। रोज टार्गेट करके पढ़ाई करेंगे, तभी सफलता मिलेगी। उन्होंने अपनी मां को प्रेरणा श्रोत बताया। उनके पिता किसान हैं। कमर्शियल टैक्स की छोड़ी नौकरी, बना डिप्टी कलेक्टर कोरबा के रहने वाले भूपेंद्र साहू का पीएससी में तीसरे स्थान पर चयन हुआ है। पिछली बार कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर के पद पर चयन हुआ था, लेकिन डिप्टी कलेक्टर बनने के लिए ही उन्होंने इसे ज्वाइन नहीं किया। एनआईटी रायपुर से बीटेक करने वाले भूपेंद्र वर्तमान में एनटीपीसी सीपत में मैनेजर हैं। इनका कैंपस सलेक्शन हुआ था। भूपेंद्र ने बताया कि वर्ष 2013 की पीएससी में वे 77वें रैंक पर थे। उन्होंने बताया कि सफलता के लिए सोच, संकल्प और क्रियान्वयन की जरूरत है। पूरी इमानदारी से प्लानिंग के साथ तैयारी करने पर सफलता मिलती है। विजन क्लियर होने पर सफलता जरूर मिलती है। लगातार तीसरी बार हुआ चयन चौथे स्थान पर चयनित योगेंद्र श्रीवास का लगातार तीसरी बार पीएससी में चयन हुआ है। पहली बार अकाउंट अफसर, दूसरी बार डीएसपी और अब डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन हुआ है। योगेंद्र वर्तमान में पुलिस अकादमी चंदखुरी में डीएसपी का प्रशिक्षण ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले पांच-छह साल से सक्रिय थे और लगातार प्रयास कर रहे थे। पिछली बार डीएसपी के पद पर चयन होने के बाद भी तैयारी नहीं छोड़ी और आज सफलता मिली है। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय बड़े भाई नरेंद्र नाथ श्रीवास को दिया है। श्रीवास ने बताया कि सोशल मीडिया से दूर रहा और सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करने के कारण सफलता मिली है। डेंटल डाक्टर ने दूसरी बार में मारी बाजी रायपुर डेंटल कालेज में 2014 बैच में पास हुए डॉ विकास नायक ने दूसरी बार में ही बाजी मार ली। पहली बार पीएससी के इंटरव्यू तक पहुंचे थे, लेकिन चयन नहीं हुआ। इस बार सातवें स्थान पर चयन हुआ। बलौदाबाजार के रहने वाले विकास ने बताया कि पिछले तीन साल से तैयारी कर रहे थे। हार्ड वर्क और लगातार तैयारी से ही सफलता मिलती है। उनके पिता केएल नायक अंबुजा सीमेंटर में पदस्थ हैं। पीएससी में दूसरे स्थान पर चयनित डा स्निग्धा और विकास दोनों डेंटल कालेज में एक ही बैच में थे। कभी सोचा नहीं था टॉप टेन में आऊंगा कोंडागांव के प्रदीप कुमार बैद ने आठवां स्थान प्राप्त किया। इससे पहले वर्ष 2012 पीएससी में कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर के पद पर चयन हुआ था। प्रदीप ने बताया कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वे टॉप टेन में आएंगे। उनके पिता पीडब्ल्यूडी में पदस्थ्ा है। उनका कहना है कि पीएससी के लिए धैर्य रखना होगा। पूरी लगन के साथ तैयारी करने में सफलता जरूरत मिलती है। हर बार बढ़ा पद पीएससी में नौंवा स्थान प्राप्त करने वाले मनीष साहू ने लगातार प्रतियोगी परीक्षा पास की और हर बार उनका पद बढ़ता गया। डायरेक्ट्रेट में आदिम जाति कल्याण विभाग में पदस्थ प्रदीप इससे पहले असिस्टेंट कमांडेंट, उत्तर प्रदेश के बनारस नगर निगम में असिस्टेंट कमिश्नर के पद पर रह चुके हैं। भाठापारा निवासी प्रदीप ने बताया कि वर्ष 2010 में उनका चयन सीआईएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर हुआ था। उसके बाद से ही वे परीक्षा दे रहे हैं। उनके पिता ग्रामीण बैंक खरोरा में पदस्थ हैं। प्रदीप की बहन कल्पना साहू ने 31 रैंक प्राप्त किया है। कल्पना अभी एक्साइज इंस्पेक्टर हैं और गरियाबंद में पदस्थ हैं। अनुकंपा नियुक्ति में बना था क्लर्क पीएससी में दसवां स्थान प्राप्त करने वाले बिलासपुर के ओंकार यादव अपने पिता की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति में क्लर्क बने थे। उस समय ही उन्होंने तय किया कि वे एक दिन अधिकारी बनेंगे। वर्ष 2006 और 2008 की पीएससी में ओंकार ने इंटरव्यू दिया, लेकिन चयन नहीं हुआ। वर्ष 2013 की पीएससी में उनका चयन कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर के रूप में हुआ। ओंकार ने बताया कि उनके पिता तहसीलदार थे, जब उनकी मौत हुई तो अनुकंपा नियुक्ति के रूप में क्लर्क की नौकरी मिली थी। उन्होंने बिना कोचिंग के पढ़ाई की और टाइम मैनेजमेंट करके सफलता अर्जित की। तीन बोर्ड में 18-18 उम्मीदवारों का इंटरव्यू छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (छग पीएससी) 2014 के लिए इंटरव्यू चार अप्रैल से शुरू हुआ। 17 दिन तक चले इंटरव्यू में 891 अभ्यार्थी को शामिल होना था, लेकिन दो अभ्यार्थी अनुपस्थित रहे। पीएससी चेयरमैन आरएस विश्वकर्मा ने बताया कि इंटरव्यू के लिए तीन बोर्ड बनाया गया था, जिसमें 18-18 उम्मीदवारों का एक दिन में इंटरव्यू किया गया। इंटरव्यू सुबह 9 बजे और दोपहर 1 बजे तक दो पॉलियों में हुआ। मुख्य परीक्षा नवंबर 2015 में आयोजित की गई थी। इसमें 32 सौ से ज्यादा अभ्यार्थी शामिल हुए थे। टॉप 10 आभा तिवारी-गृहणी डॉ स्निग्धा तिवारी-डीएसपी-डेंटल डाक्टर भूपेंद्र साहू-कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर योगेंद्र श्रीवास-डीएसपी डा विकास कुमार नायक-डेंटल डाक्टर प्रदीप कुमार बैद-कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर ओंकार यादव-कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर

Friday, March 18, 2016

संघ में निकर था, निकर में संघ कभी नहीं रहा

मृगेंद्र पांडेय संघ्ा के हाफ पैंट को बदलने की पूरे देश में चर्चा है। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ये बदलाव क्यों किया गया। इस बदलाव के पीछे संघ की क्या सोच है। क्या राजनीतिक सोच से प्रेरित होकर यह कदम उठाया गया है। दरअसल, संघ की नागौर प्रतिनिधि सभा में यह प्रस्ताव पेश किया गया। इसके बाद से देशभर में चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। अभी तक संघ की तरफ से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया कि आखिर संघ्ा के निकर को क्यों बदला गया। संघ की वेशभूषा के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में छत्तीसगढ़ के सह प्रांत संघ चालक ने कहा कि कुछ समय के लिए निकर को ब्रांड बना दिया गया था। संघ में निकर था। निकर में संघ कभी नहीं रहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की वेशभूषा में कई बार बदलाव किए गए हैं। इसमें खाकी के स्थान पर सफेद कमीज, जूते, बेल्ट, टोपी आदि शामिल हैं। इसी कड़ी में निकर के स्थान पर फुल पैंट को अपनाया जा रहा है। हाफ पैंट से कई स्थानों पर दिक्कतें आ रही थीं, जिसे देखते हुए बदलाव किया गया है। देश में संघ अपने गणवेश को लेकर अलग पहचान रखता है। माना जा रहा है कि युवा वर्ग को आकर्षित करने के लिए संघ ने इस बदलाव को स्वीकार किया है। देश में 60 फीसदी युवा वोटर हैं, जिनका संघ के प्रति स्र्झान कम हो रहा था। इसमें एक बड़ा कारण गणवेश को माना जा रहा है। संघ के पदाधिकारियों की मानें तो गणवेश में उन सभी चीजों को स्वीकार किया गया है, जो अब भी सिंबल के रूप में संघ्ा की पहचान है। संघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती युवाओं को जोड़ने और आरक्षण के भ्रम को दूर करने की है। देशभर में संघ्ा के पदाधिकारी पत्रकारवार्ता करके यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि संघ्ा आरक्षण के खिलाफ नहीं है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में डॉ. पूर्णेंदु सक्सेना ने आरक्षण के मुद्दे पर कहा कि लंबे समय तक एक बड़े वर्ग के साथ सामाजिक स्तर पर भेदभाव हुआ। इन्हें बराबरी में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। संघ का यह स्पष्ट मत है कि जब तक यह वर्ग हृदय से अनुभूति नहीं करता कि वे बराबरी पर आ गए हैं, तब तक आरक्षण लागू रहना चाहिए। इसमें किसी तरह का विरोध नहीं है। दरअसल पूरी कोशिश यह स्पष्ट करने की है कि संघ आरक्षण के खिलाफ नहीं है। इसके बाद संघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में कन्हैया और उनके जैसे नेता आए हैं। जो संघ से आजादी की मांग कर रहे हैं। अब इन नेताओं को संघ यह कहकर प्रचारित कर रहा है कि वामपंथ की विचारधार से भटके हुए हैं। डा सक्सेना ने साफ कहा कि जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया देशद्रोही है और उनके सभी समर्थकों भी देशद्रोही हैं। वामपंथी सभी तरह के धार्मिक विचारों का विरोध करते हैं। वह हिंदुओं का जितना विरोध करते थे, उतना मुल्लाओं का भी करते थे। जबकि जेएनयू छाप कन्हैयावादी नगालैंड, मणिपुर और कश्मीर के पथभ्रष्ट और संकीर्ण सोच वाले युवाओं को समर्थन देते हैं। ये सभी शुद्ध रूप से देशविरोधी हैं। ये बिल्कुल नहीं चाहते कि देश में स्थायी सरकार या संघ जैसी देशप्रेमी संस्था रहे। अब देखना होगा कि कन्हैया जैसे युवाओं की पकड़ को कमजोर करने के लिए संघ की तरफ से क्या पहल की जाती है।

Friday, March 11, 2016

कन्हैया के समर्थन में उतरे बलरामपुर कलेक्टर एलेक्स पाल

मृगेंद्र पांडेय देश का सियासी पारा बढ़ाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविालय के छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के पक्ष और विपक्ष में सोशल मीडिया में लगातार कमेंट आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति पार्टियों के दिग्गजों के साथ अब प्रशासनिक अफसर भी खुलकर कन्हैया के समथर््ान में आ गए हैं। ताजा मामला बलरामपुर कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का है। मेनन ने सोशल मीडिया पर कन्हैया को लेकर टि्वट और फेसबुक पर लिंक शेयर किए हैं। इसमें जेएनयू के छात्र कन्हैया और हैदराबाद विश्वविालय के छात्र रोहित बेमुला के समथर््ान में आर्टिकल है। मेनन के सोशल मीडिया पर कमेंट ने प्रशासनिक हलके में हलचल तेज कर दी है। छत्तीसगढ़ के आला आईएएस अधिकारियों के बीच पिछले एक सप्ताह से एलेक्स के कमेंट और शेयर को लेकर चर्चा है। अफसरों का कहना है कि प्रदेश का एकमात्र आईएएस अफसर है, जो सोशल मीडिया पर खुलकर जेएनयू के छात्रों का समर्थन कर रहा है। कुछ अफसरों को इस बात की चिंता भी सता रही है कि सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता का प्रशासनिक नुकसान न उठाना पड़ जाए। मेनन ने कन्हैया कुमार के भाषण और उससे जुड़ी खबरों को शेयर किया है। उनकी फेसबुक वाल पर एक पोस्ट ऐसी शेयर की गई है, जिसमें लिखा गया है कि दलित को कहा जाता है कि उससे ज्यादा शुद्ध गाय है। कुछ शेयर में डेमोक्रेसी और अन्य मुद्दों पर भी लिखा गया है। सोशल मीडिया पर व्यक्तिगत विचार: मेनन कलेक्टर एलेक्स्ा पाल मेनन ने नईदुनिया से चर्चा में कहा कि सोशल मीडिया पर उनके व्यक्तिगत विचार हैं। इसे आम आदमी के विचार के रूप में देखा जाना चाहिए। वह न तो लेफ्ट न राइट समर्थक हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने आदिवासी बहुल जिले में काम करने का मौका दिया है, जहां बेहतर काम करने की कोशिश कर रहा हूं। मनरेगा, मिट्टी हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री जनधन योजना में बेहतर काम हुआ है। इन कामों की चर्चा होनी चाहिए, न कि मेरे टि्वट और फेसबुक पर किए पोस्ट पर चर्चा होनी चाहिए। विधानसभा में भी चर्चा में रहे मेनन विधानसभा में गुस्र्वार को एलेक्स पाल मेनन की पत्नी की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस विधायक ने आरोप लगाए। विधायक ने कहा कि सभी अधिकारी ऐसा करेंगे तो बाकी योग्य उम्मीदवार कहां जाएंगे? प्रश्नकाल में कांग्रेस सदस्य बृहस्पति सिंह के सवाल पर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जवाब दिया। उन्होंने कहा कि नियम-प्रक्रिया के तहत नियुक्ति की गई है। कलेक्टर की पत्नी को नौकरी नहीं दी गई है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि अफसरों के परिवार के सदस्यों की नियुक्ति को लेकर आचार संहित होनी चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि सामान्य प्रशासन विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाएगा।

Wednesday, March 9, 2016

ट्राइबल ट्रैक पर उतरी रमन की गाड़ी

बस्तर और सरगुजा की सिर्फ छह सीट पर हैं भाजपा विधायक मृगेंद्र पांडेय छत्तीसगढ़ के बजट में मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने बता दिया कि अगले तीन साल सरकार की दिशा किस तरफ रहेगी। बजट में सरगुजा और बस्तर पर गोपनीय तरीके से नजरे इनायत की गई। सीएम ने बजट भाषण में कहा कि यह बजट गांव गरीब और किसानों के दिल का बजट है। लेकिन उनका दिल खुद इस बात को मानने को तैयार नहीं है। तीन महीने से बजट बनाने में जुटी सरकार ने जिस तरह से क्षेत्रों के विकास पर फोकस किया है। वह कांग्रेस के राजनीतिक पंडितों के लिए चिंता का विषय हो सकता है। सरकार सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा सहित बस्तर के सभी जिलों में नक्सलवाद के नाम पर आ रहे करोड़ों स्र्पए तो खर्च कर रही है, लेकिन अब सरकार ने प्राथमिकता साफ कर दिया। सुकमा और बीजापुर में एजुकेशन सिटी बनाई जाएगी। नक्सल प्रभावित जिलों के तीन हजार युवाओं को पुलिस में नौकरी दी जाएगी। पहले से ही पचास हजार जवान नक्सलवाद खत्म करने के नाम पर जंगलों में हैं। इसके साथ ही जगदलपुर में अब हवाई पट्टी भी बनाई जाएगी। सरकार को आदिवासी क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए। विकास की मुख्य धारा से उनको जोड़ना जरूरी है। लेकिन किसी खास राजनीतिक मकसद से उठाया गया कदम हमेशा से ही सवालों के घेरे में रहता है। बजट के बाद कांग्रेस की तरफ से जो प्रतिक्रिया आई, वह बेहद सतही रही। ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस के एक-दो विधायक बजट भाषण के दौरान जागे हुए थे, नहीं तो बाकी की नींद ही नहीं ूटूटी है। कांग्रेस को सोचना होगा कि जिस झीरम घाटी कांड में अपने बड़े नेताओं को गंवाया है। जिस कांड के बाद बस्तर की जनता ने उन्हें आंखों पर उठाया और आठ विधायकों को विधानसभा में पहुंचाया। उनकी दखल को कमजोर करने के लिए अब सरकार खुद उतर गई है। पिछले कुछ महीने से बस्तर में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और आला अफसर दौरा कर रहे थे। सीएस ने तो 25 स्र्पए किलो में इमली भी खरीदी। और जब वहां से लौटे तो लगता है सरकार के मुखिया से कह दिया कि अब हवा-हवाई वादों से कुछ नहीं होगा। कुछ ऐसा करना होगा, जिससे आदिवासियों में सरकार के प्रति विश्वास पैदा होगा। आदिवासियों के विश्वास को बढ़ाने के लिए ही रमन सरकार ने इस बजट में ढेर सारे प्रावधान उनके लिए किए। आदिवासियों को मुख्यधारा की पटरी पर लाने के लिए अब सड़क बनाई जाएंगी। स्कूलों की बिल्डिंग सुधारी जाएंगे। नौकरी दी जाएंगी। विधानसभा में उन्होंने कहा भी कि गांव, गरीबों और छत्तीसगढ़ की ढाई करोड़ जनता ने उनको दसवीं बार बजट पेश करने का मौका दिया। जब किसी कांग्रेसी विधायक ने टोका तो यह कहने से भी नहीं चूके कि इस जीत में आप लोगों का भी हाथ है। आने वाले समय में इस उम्मीद के साथ सरकार काम कर रही है कि बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्र से सत्ता की चाभी निकले। अभी तीन साल हैं। अगर ऐसा होता है, तो यह मान लिजिए कि सरकार की चौथी पारी के लिए रमन ने बजट के माध्यम से तीन साल पहले ही शुस्र्आत कर दी है।

Saturday, March 5, 2016

इन तस्वीरों के संदेश को पहचानो


ये तस्वीरें संत कवि पवन दीवान की समाधी कार्यक्रम की है। कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज मौजूद थे। दो विरोधी अगल-बगल हैं लेकिन कोई संवाद नहीं । यह बदलते राजनीतिक समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं। कभी कांग्रेस की राजनीति के सबसे बडे महारथी अब पडोसी की तरह नजर आ रहे हैं।

Wednesday, March 2, 2016

ये पवन, ये आंधी और ये गांधी

मृगेंद्र पांडेय
भागवत कथावाचक के रूप में छत्तीसगढ़ में पहचान बनाने वाले संत कवि पवन दीवान ने अपने जीवन के कई महत्वपूणर््ा साल राजनीति में गुजारे। वे विधायक, मंत्री रहे, सांसद पद के लिए भी दो बार चुने गए। सीधे-सरल स्वभाव के पवन दीवान के राजनीतिक कॅरियर को देखें तो ऐसा लगता है कि उन्हें राजनीति कुछ खास रास नहीं आई। जनसंघ से राजनीति शुरू करने वाले पवन दीवान कांग्रेस में गए, फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए, भाजपा से फिर कांग्रेस और फिर भाजपा प्रवेश किया। राजनीति के इस उठापटक के दौर में जब उन्हें उपेक्षा का आभास हुआ तो उन्होंने पार्टी छोड़ने में बिल्कुल देरी नहीं की। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि उनका स्वभाव घुटे हुए राजनीतिज्ञ के बजाय सरल सहृदयी कथावाचक और कवि का ही बना रहा, उनकी असली पहचान भी यही रही। 1977 की जनता लहर में उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी की उपमा दी गई। उनके बारे में यह नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ- पवन नहीं, आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है। राजनीति में पवन दीवान की एंट्री 1977 में हुई। 1977 में वे पहली बार राजिम विधानसभा से विधायक चुने गए। तब उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल को हराया था। 1977-78 में तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार में उन्होंने जेल मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किए। 1989 में पवन दीवान ने महासमुंद लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उस समय जनता दल के उम्मीदवार विद्याचरण शुक्ल थे। इस चुनाव में दीवान को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से वे लगातार विद्याचरण शुक्ल का विरोध करते रहे और चुनावी राजनीति में टक्कर देते रहे। वर्ष 1991 में पवन दीवान महासमुंद लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और भाजपा के चंद्रशेखर साहू को हराया। 1996 में दूसरी बार वे कांग्रेस के टिकट से लड़े और भाजपा के चंद्रशेखर साहू को हराया। लगातार दो लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उनका नाम अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़े नेताओं में शामिल हो गया था। देश में अटल बिहारी लहर में 1998 के लोकसभा चुनाव हुआ। इसमें दीवान को भाजपा उम्मीदवार चंद्रशेखर साहू से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वे कभी सक्रिय रूप से चुनाव मैदान में नहीं आए। वषर््ा 2004 के लोकसभा चुनाव में पवन दीवान महासमुंद लोकसभा से कांग्रेस के टिकट के दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को कांग्रेस से टिकट दे दिया गया। इससे नाराज होकर पवन दीवान ने कांग्रेस छोड़ दी। इसी चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार भाजपा के टिकट से महासमुंद लोकसभा के उम्मीदवार बने थे। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में पवन दीवान ने अपने धुर राजनीतिक विरोधी रहे विद्याचरण शुक्ल का साथ दिया, लेकिन उनकी हार हुई। छत्तीसगढ़ गठन के बाद दीवान ने छत्तीसगढ़ राज्य गौ-सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी जनता को अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिये जनआंदोलन का भी उन्होंने नेतृत्व किया है। उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, दीन-दलितों की पीड़ा और शोषण के विरुद्ध आक्रोश झलकता है। छात्र जीवन से ही लेखन में थे सक्रिय किरवई निवासी शिक्षक सुखरामधर दीवान के पुत्र पवन दीवान छात्र जीवन से ही लेखन में सक्रिय थे। उनके कविता संग्रह में 'मेरा हर स्वर उसका पूजन" और 'अम्बर का आशीष" विशेष उल्लेखनीय हैं। 'अम्बर का आशीष" का विमोचन उनके जन्मदिन पर 1 जनवरी 2011 को राजिम में हुआ था। हिन्दी साहित्य में लघु पत्रिका आंदोलन के दिनों में 1970 के दशक में पवन दीवान ने साइक्लो-स्टाइल्ड साहित्यिक पत्रिका अंतरिक्ष का भी सम्पादन और प्रकाशन किया था। वे वर्तमान में माता कौशल्या गौरव अभियान से भी जुड़े थे। पवन दीवान ने गांधी जी के सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह सिद्धांतों को सही अर्थों में अपने जीवन में उतारा। वे सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के अद्भुत वक्ता, प्रख्यात सरस भागवत कथा के प्रवचनकर्ता रहे। वे स्वामी भजनानंद महाराज से दीक्षा लेकर स्वामी अमृतानंद बने। दीवान भारत की संस्कृति और सहिष्णुता के पुजारी थे।

नहीं रहे छत्तीसगढ़ के गांधी

लोकप्रिय संत कवि, पूर्व विधायक, पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद और छत्तीसगढ़ के गांधी के नाम से मशहूर पवन दीवान का निधन बुधवार को सुबह साढ़े नौ बजे नईदिल्ली स्थित मेदांता अस्पताल में हुआ। लंबे समय से बीमार चल रहे 71 वर्षीय दीवान बे्रन हैमरेज के बाद एक सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे। हालत ज्यादा खराब होने के बाद उनको पिछले शनिवार को रायपुर के एमएमआई अस्पताल से मेदांता अस्पताल में शिफ्ट किया गया था। दीवान के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को विशेष विमान से शाम को रायपुर एयरपोर्ट लाया गया। वहां से राजकीय सम्मान के साथ राजिम आश्रम के लिए रवाना किया गया। इस दौरान हजारों की संख्या में पवन दीवान के समर्थक और अनुयायी मौजूद थे। राजिम विधायक और संत पवन दीवान के करीबी संतोष उपाध्याय ने बताया कि दीवान का अंतिम संस्कार नहीं किया जाएगा, बल्कि समाधि बनाई जाएगी। उपाध्याय ने कहा कि साधु-संतों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है। गुस्र्वार दोपहर दो बजे पवन दीवान को आश्रम में समाधि दी जाएगी। पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था। उनके पिता सुखरामधर दीवान शिक्षक थे। पवन दीवान ने राजधानी रायपुर के शासकीय संस्कृत महाविालय से संस्कृत साहित्य में एमए किया था। उन्होंने हिन्दी में भी स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की थी। वे संस्कृत, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान थे। श्री दीवान राजिम स्थित ब्रम्हचर्य आश्रम के सर्वराकार भी रहे।