Thursday, May 5, 2016

विवादों वाले ब्यूरोक्रेट्स, नबंर वन छत्तीसगढ़

मृगेंद्र पांडेय भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को लेकर छत्तीसगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में एक के बाद एक ऐसे आईएएस अफसर विवादों में आए हैं, जो नए हैं और जिनसे कुछ बेहतर करने की उम्मीद है। ये अफसर अब अपने अच्छे काम से नहीं, बल्कि विवादों के कारण पहचान बना रहे हैं। एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ब्रांडिंग नंबर वन के रूप में की जा रही है, इसलिए नए नवेले आईएएस विवादों में लाकर नंबर वन बनवा रहे हैं। सवाल है कि आखिर ये अफसर विवादों में क्यों आ रहे हैं। क्या इनका प्रशिक्षण कमजोर हो गया है, या फिर आईएएस बनने के बाद ये खुद को लोकतंत्र में राजा की जगह रखकर देखने लगे हैं। छत्तीसगढ़ में एक अफसर रणबीर शर्मा कुछ स्र्पए की रिश्वत के मामले में फंस जाते हैं। जगदीश सोनकर डाक्टर होने के बावजूद मरीज से बेअदबी से पेश आते हैं। अमित कटारिया जैसा सुलझा हुआ अफसर पर प्रधानमंत्री को रिसिव करने जाता है, तो प्रोटोकाल का पालन नहीं करता है और किरकिरी होती है। एलेक्स पाल मेनन काफी समझदार माने जाते हैं। सोशल मीडिया पर एक्टिव है। दलित चिंतन से लेकर समाज में बदलाव पर नजर रखते हैं, लेकिन जिस कन्हैया का केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भाजपा सरकार विरोध कर रही है, उसका समर्थन करते हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर को ही कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है। जबकि ये कलेक्टर कानून का ही सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे हैं। मेरा सवाल यह है कि क्या ये आईएएस अफसर अपने अच्छे काम के जरिए पहचान नहीं बना सकते हैं। देश की सर्वोच्च सेवा के लिए चयनित अगर कोई अफसर 500 या हजार स्र्पए के लिए गरीब जनता को प्रताड़ित करता है, तो उसे इस नौकरी में आना ही नहीं था। मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि पैसा कमाने के लिए और भी कई रोजगार हो सकते हैं। नए अफसरों को यह भी सोचना चाहिए कि अब सरकार इतनी तनख्वाह दे रही है कि रिश्वत मांगने की शायद जरूरत नहीं है। मेरे के साथी ने यह पोस्ट किया कि ये तस्वीर उस यूपीएससी के गाल पर करारा तमाचा है जो सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा में उम्मीदवारों के सिविल सर्विस एप्टीट्यूट और मेन परीक्षा के जनरल स्टडीज पेपर-4 में उम्मीदवारों के इथिक्स, इंटीग्रीटी और एप्टीट्यूट को को परखता है। मुझे भी लगता है कि इन अफसरों का चयन करने वालों को भी एक बार सोचना चाहिए कि क्या उनको प्रशिक्षण देने में कहीं चूक हुई है। क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती कि इनको कुछ सिखाएं। अगर सरकार सिखाने में असफल है, तो उसे पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है। ऐसी सरकार और सरकार को चलाने वाले ब्यूरोक्रेट एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी और अपने काम करने के तरीके के बारे में जरूर सोचें। नहीं तो ऐसा ही होगा कि कोई नेता या मंत्री लोकसुराज जैसे अभियान में किसी आईएएस को मुर्गा बना देगा और जनता ताली पीटेगी।

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