Sunday, March 29, 2009

हाथी की शांत चाल

वरुण का बवाल हो या फिर चौथा मोर्चा बनाने की कवायद। इन सब से अलग, इन सब से दूर, एक आवाज जो शांत है और बड़े करीने से चुपचाप दिल्ली की गद्दी की ओर बढ़ने का लगातार प्रयास कर रही है। उसे हाथी की चाल का अंदाजा है। कभी दलित की बेटी को प्रधानमंत्री बनाने से रोकने पर बवाल खड़ा करने वाली मायावती इस बार कोई कोर कसर छोड़ने के मूड में नजर नहीं आ रहीं हैं। यही कारण है कि वे लगातार अपने पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार कर रही हैं और बसपा के वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में लगी हुईं हैं।

दो सप्ताह पहले दिल्ली में आकर मायावती ने तीसरे मोर्चे के उन राजनेताओं को अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की थी, जो उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने की बात से खासे नाराज थे। यहां माया को यह आश्वासन मिला की सबसे बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। ऐसे में माया ने तय कर लिया कि बयानबाजी और इधर-उधर भटकने से अच्छा है कि सीधे मतदाताओं के सामने आया जाए और उनका मैदान मारकर सीटों की संख्या बढ़ाई जाए। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के तीन बड़े राजनीतिक दल सपा, राजद और लोजपा के चौथा मोर्चा बनाने पर भी मायावती की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।


मायावती को इस बात का अंदाजा पहले से ही है कि उत्तर प्रदेश में दलितों का कोई और हितैसी कोई दलित नेता नहीं हो सकता, जब तक वह प्रदेश में हैं। उन्हें इस बात का भी अंदाजा है कि इन नेताओं के साथ आने से प्रदेश में किसी प्रकार का कोई ध्रुवीकरण नहीं होने वाला है। माया का सख्त रवैया वरुण मामले में भी देखने को मिला। उन्होंने वरुण को पूरी तरह से नजर अंदाज करने की कोशिश की, लेकिन जब उन्हें लगा की प्रदेश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ रहा है तो उन्होंने ¨हसा फैलाने के आरोप में उनके खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज करा दी। इस प्रकार उनकी कोशिश यह रही कि वह हिंदुत्व के नए सारथी की नैया को रोकें, लेकिन उसे कोई खास तवज्जो न मिले।

Friday, March 13, 2009

वार पर वार पवार

मृगेंद्र पांडेय

केंद्र और क्रिकेट की राजनीति में खासा दखल रखने वाले मराठा छत्रप शरद पवार की खासियत सुर्खियों में रहना है। महाराष्ट्र में उनकी पार्टी के दमखम और उनके नेतृत्व कौशल का ही परिणाम है कि इस लोकसभा चुनाव में सहयोगी पार्टी कांग्रेस को आधी-आधी सीटों पर समझौता करने पर बाध्य होना पड़ सकता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में 11 सीटों पर ही परचम लहराया हो, लेकिन प्रदेश के बदलते राजनीतिक समीकरण ने शरद पवार को खासा मजबूत किया है। प्रदेश में कमजोर कांग्रेस और शिवसेना में बिखराव के बाद पवार का ग्राफ तेजी से बढ़ा है।


महाराष्ट्र में शिवसेना के विघटन और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के उत्पात के बाद उपजे राजनीतिक समीकरण में शरद पवार और उनकी पार्टी का कद प्रदेश में बढ़ा है। ऐसा माना जा रहा है कि मनसे के उपद्रव का फायदा भी कांग्रेस गठबंधन को मिलेगा। पूरे देश में एक साथ गठजोड़ कर चुनाव लड़ने की वकालत करने वाले पवार को प्रदेश में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार खड़े करने के बाद दिक्कतों को सामना करना पड़ सकता है। केंद्र में कृषि मंत्री रहने के कारण किसानों के णों को माफ कराने का श्रेय भी पवार और उनकी पार्टी ही ले रहीं हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों खासकर विदर्भ और मराठवाड़ा में पार्टी को कोई खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि लाख चाहने के बावजूद पवार खुद मैदान में है। हालांकि उन्होंने अपनी परंपरागत सीट बारामती बेटी सुप्रिया के लिए छोड़ रखी है।


महाराष्ट्र की बारामती विधानसभा सीट से 1967 में राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले पवार इस समय यहीं से ही सांसद है। कुछ साल पहले तक बारामती की गिनती पिछड़े और कृषि आधारित क्षेत्रों में होती थी, लेकिन पवार के सांसद बनने के बाद से उसकी गिनती पश्चिम महाराष्ट्र के सबसे औद्योगिक क्षेत्र के रूप में होनी लगी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के विश्वासपात्र रहे पवार को राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हाराव और अर्जुन सिंह के साथ प्रधानमंत्री के तीन प्रबल दावेदारों में माना जाता था। केंद्र की राजनीति में आने के बाद पवार पर कई अपराधियों से सांठगांठ का आरोप भी लगा, लेकिन आरोपों की परवाह किए बगैर पवार आगे ही बढ़ते गए। उनके राजनीतिक सयानेपन की मिसाल यह है कि सोनिया से बगावत कर राकांपा बनाने वाले पवार सोनिया के मददगार बने। और कांईयांपन की मिसाल यह है कि कांग्रेस को महाराष्ट्र में नाको चने चबवा रहे हैं। वैसे उनके सिपहसलार छगन भुजबल की बाला साहब ठाकरे से बढ़ती नजदीकियां उन्हें परेशान किए हुए है। यह अलग बात है कि बड़े ठाकरे उनके साथ होंगे अगर प्रधानमंत्री पद की उनकी दावेदारी पुख्ता होती है तो।