वरुण का बवाल हो या फिर चौथा मोर्चा बनाने की कवायद। इन सब से अलग, इन सब से दूर, एक आवाज जो शांत है और बड़े करीने से चुपचाप दिल्ली की गद्दी की ओर बढ़ने का लगातार प्रयास कर रही है। उसे हाथी की चाल का अंदाजा है। कभी दलित की बेटी को प्रधानमंत्री बनाने से रोकने पर बवाल खड़ा करने वाली मायावती इस बार कोई कोर कसर छोड़ने के मूड में नजर नहीं आ रहीं हैं। यही कारण है कि वे लगातार अपने पार्टी के प्रत्याशियों का प्रचार कर रही हैं और बसपा के वोटरों को एकजुट करने की कोशिश में लगी हुईं हैं।
दो सप्ताह पहले दिल्ली में आकर मायावती ने तीसरे मोर्चे के उन राजनेताओं को अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश की थी, जो उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने की बात से खासे नाराज थे। यहां माया को यह आश्वासन मिला की सबसे बड़े दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। ऐसे में माया ने तय कर लिया कि बयानबाजी और इधर-उधर भटकने से अच्छा है कि सीधे मतदाताओं के सामने आया जाए और उनका मैदान मारकर सीटों की संख्या बढ़ाई जाए। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और बिहार के तीन बड़े राजनीतिक दल सपा, राजद और लोजपा के चौथा मोर्चा बनाने पर भी मायावती की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
मायावती को इस बात का अंदाजा पहले से ही है कि उत्तर प्रदेश में दलितों का कोई और हितैसी कोई दलित नेता नहीं हो सकता, जब तक वह प्रदेश में हैं। उन्हें इस बात का भी अंदाजा है कि इन नेताओं के साथ आने से प्रदेश में किसी प्रकार का कोई ध्रुवीकरण नहीं होने वाला है। माया का सख्त रवैया वरुण मामले में भी देखने को मिला। उन्होंने वरुण को पूरी तरह से नजर अंदाज करने की कोशिश की, लेकिन जब उन्हें लगा की प्रदेश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ रहा है तो उन्होंने ¨हसा फैलाने के आरोप में उनके खिलाफ एक और प्राथमिकी दर्ज करा दी। इस प्रकार उनकी कोशिश यह रही कि वह हिंदुत्व के नए सारथी की नैया को रोकें, लेकिन उसे कोई खास तवज्जो न मिले।
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