Friday, March 18, 2016
संघ में निकर था, निकर में संघ कभी नहीं रहा
मृगेंद्र पांडेय
संघ्ा के हाफ पैंट को बदलने की पूरे देश में चर्चा है। लोग जानना चाहते हैं कि आखिर ये बदलाव क्यों किया गया। इस बदलाव के पीछे संघ की क्या सोच है। क्या राजनीतिक सोच से प्रेरित होकर यह कदम उठाया गया है। दरअसल, संघ की नागौर प्रतिनिधि सभा में यह प्रस्ताव पेश किया गया। इसके बाद से देशभर में चर्चाओं का दौर शुरू हुआ। अभी तक संघ की तरफ से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया कि आखिर संघ्ा के निकर को क्यों बदला गया। संघ की वेशभूषा के संबंध में पूछे गए सवाल के जवाब में छत्तीसगढ़ के सह प्रांत संघ चालक ने कहा कि कुछ समय के लिए निकर को ब्रांड बना दिया गया था। संघ में निकर था। निकर में संघ कभी नहीं रहा। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की वेशभूषा में कई बार बदलाव किए गए हैं। इसमें खाकी के स्थान पर सफेद कमीज, जूते, बेल्ट, टोपी आदि शामिल हैं। इसी कड़ी में निकर के स्थान पर फुल पैंट को अपनाया जा रहा है। हाफ पैंट से कई स्थानों पर दिक्कतें आ रही थीं, जिसे देखते हुए बदलाव किया गया है।
देश में संघ अपने गणवेश को लेकर अलग पहचान रखता है। माना जा रहा है कि युवा वर्ग को आकर्षित करने के लिए संघ ने इस बदलाव को स्वीकार किया है। देश में 60 फीसदी युवा वोटर हैं, जिनका संघ के प्रति स्र्झान कम हो रहा था। इसमें एक बड़ा कारण गणवेश को माना जा रहा है। संघ के पदाधिकारियों की मानें तो गणवेश में उन सभी चीजों को स्वीकार किया गया है, जो अब भी सिंबल के रूप में संघ्ा की पहचान है। संघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती युवाओं को जोड़ने और आरक्षण के भ्रम को दूर करने की है। देशभर में संघ्ा के पदाधिकारी पत्रकारवार्ता करके यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि संघ्ा आरक्षण के खिलाफ नहीं है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में डॉ. पूर्णेंदु सक्सेना ने आरक्षण के मुद्दे पर कहा कि लंबे समय तक एक बड़े वर्ग के साथ सामाजिक स्तर पर भेदभाव हुआ। इन्हें बराबरी में लाने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया। संघ का यह स्पष्ट मत है कि जब तक यह वर्ग हृदय से अनुभूति नहीं करता कि वे बराबरी पर आ गए हैं, तब तक आरक्षण लागू रहना चाहिए। इसमें किसी तरह का विरोध नहीं है। दरअसल पूरी कोशिश यह स्पष्ट करने की है कि संघ आरक्षण के खिलाफ नहीं है।
इसके बाद संघ के सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में कन्हैया और उनके जैसे नेता आए हैं। जो संघ से आजादी की मांग कर रहे हैं। अब इन नेताओं को संघ यह कहकर प्रचारित कर रहा है कि वामपंथ की विचारधार से भटके हुए हैं। डा सक्सेना ने साफ कहा कि जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया देशद्रोही है और उनके सभी समर्थकों भी देशद्रोही हैं। वामपंथी सभी तरह के धार्मिक विचारों का विरोध करते हैं। वह हिंदुओं का जितना विरोध करते थे, उतना मुल्लाओं का भी करते थे। जबकि जेएनयू छाप कन्हैयावादी नगालैंड, मणिपुर और कश्मीर के पथभ्रष्ट और संकीर्ण सोच वाले युवाओं को समर्थन देते हैं। ये सभी शुद्ध रूप से देशविरोधी हैं। ये बिल्कुल नहीं चाहते कि देश में स्थायी सरकार या संघ जैसी देशप्रेमी संस्था रहे। अब देखना होगा कि कन्हैया जैसे युवाओं की पकड़ को कमजोर करने के लिए संघ की तरफ से क्या पहल की जाती है।
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