Wednesday, March 2, 2016
ये पवन, ये आंधी और ये गांधी
मृगेंद्र पांडेय
भागवत कथावाचक के रूप में छत्तीसगढ़ में पहचान बनाने वाले संत कवि पवन दीवान ने अपने जीवन के कई महत्वपूणर््ा साल राजनीति में गुजारे। वे विधायक, मंत्री रहे, सांसद पद के लिए भी दो बार चुने गए। सीधे-सरल स्वभाव के पवन दीवान के राजनीतिक कॅरियर को देखें तो ऐसा लगता है कि उन्हें राजनीति कुछ खास रास नहीं आई। जनसंघ से राजनीति शुरू करने वाले पवन दीवान कांग्रेस में गए, फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए, भाजपा से फिर कांग्रेस और फिर भाजपा प्रवेश किया। राजनीति के इस उठापटक के दौर में जब उन्हें उपेक्षा का आभास हुआ तो उन्होंने पार्टी छोड़ने में बिल्कुल देरी नहीं की। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि उनका स्वभाव घुटे हुए राजनीतिज्ञ के बजाय सरल सहृदयी कथावाचक और कवि का ही बना रहा, उनकी असली पहचान भी यही रही। 1977 की जनता लहर में उन्हें छत्तीसगढ़ के गांधी की उपमा दी गई। उनके बारे में यह नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ- पवन नहीं, आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है।
राजनीति में पवन दीवान की एंट्री 1977 में हुई। 1977 में वे पहली बार राजिम विधानसभा से विधायक चुने गए। तब उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल को हराया था। 1977-78 में तत्कालीन अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार में उन्होंने जेल मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किए। 1989 में पवन दीवान ने महासमुंद लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। उस समय जनता दल के उम्मीदवार विद्याचरण शुक्ल थे। इस चुनाव में दीवान को हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद से वे लगातार विद्याचरण शुक्ल का विरोध करते रहे और चुनावी राजनीति में टक्कर देते रहे। वर्ष 1991 में पवन दीवान महासमुंद लोकसभा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और भाजपा के चंद्रशेखर साहू को हराया। 1996 में दूसरी बार वे कांग्रेस के टिकट से लड़े और भाजपा के चंद्रशेखर साहू को हराया। लगातार दो लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उनका नाम अविभाजित मध्यप्रदेश के बड़े नेताओं में शामिल हो गया था। देश में अटल बिहारी लहर में 1998 के लोकसभा चुनाव हुआ। इसमें दीवान को भाजपा उम्मीदवार चंद्रशेखर साहू से हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद वे कभी सक्रिय रूप से चुनाव मैदान में नहीं आए।
वषर््ा 2004 के लोकसभा चुनाव में पवन दीवान महासमुंद लोकसभा से कांग्रेस के टिकट के दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को कांग्रेस से टिकट दे दिया गया। इससे नाराज होकर पवन दीवान ने कांग्रेस छोड़ दी। इसी चुनाव में पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार भाजपा के टिकट से महासमुंद लोकसभा के उम्मीदवार बने थे। बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में पवन दीवान ने अपने धुर राजनीतिक विरोधी रहे विद्याचरण शुक्ल का साथ दिया, लेकिन उनकी हार हुई। छत्तीसगढ़ गठन के बाद दीवान ने छत्तीसगढ़ राज्य गौ-सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी जनता को अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दीं। पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिये जनआंदोलन का भी उन्होंने नेतृत्व किया है। उनकी कविताओं में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, दीन-दलितों की पीड़ा और शोषण के विरुद्ध आक्रोश झलकता है।
छात्र जीवन से ही लेखन में थे सक्रिय
किरवई निवासी शिक्षक सुखरामधर दीवान के पुत्र पवन दीवान छात्र जीवन से ही लेखन में सक्रिय थे। उनके कविता संग्रह में 'मेरा हर स्वर उसका पूजन" और 'अम्बर का आशीष" विशेष उल्लेखनीय हैं। 'अम्बर का आशीष" का विमोचन उनके जन्मदिन पर 1 जनवरी 2011 को राजिम में हुआ था। हिन्दी साहित्य में लघु पत्रिका आंदोलन के दिनों में 1970 के दशक में पवन दीवान ने साइक्लो-स्टाइल्ड साहित्यिक पत्रिका अंतरिक्ष का भी सम्पादन और प्रकाशन किया था। वे वर्तमान में माता कौशल्या गौरव अभियान से भी जुड़े थे। पवन दीवान ने गांधी जी के सत्य, अहिंसा, ब्रम्हचर्य, अपरिग्रह सिद्धांतों को सही अर्थों में अपने जीवन में उतारा। वे सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के अद्भुत वक्ता, प्रख्यात सरस भागवत कथा के प्रवचनकर्ता रहे। वे स्वामी भजनानंद महाराज से दीक्षा लेकर स्वामी अमृतानंद बने। दीवान भारत की संस्कृति और सहिष्णुता के पुजारी थे।
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