देश की राजनीति में कभी किनारे कर दिए गए ब्राह्मण नेताओं की पूछ अचानक बढ़ गई है. ऐसे में उन ब्राह्मण नेताओं के जन्मदिन भी मनाए जा रहे हैं जिनको कुछ दिनों पहले तक उनकी पार्टी के लोग पूछते भी नहीं थे. राजनीति इस कदर करवट बदलेगी, शायद उन राजनेताओं को भी यह नहीं पता है जो काफी लंबे समय से हासिए पर हैं.
समाजवादी पार्टी में अनजाना चेहरा बन चुके जनेश्वर मिश्र का चेहरा अचानक मीडिया की रौनक बना. कारण था उनका जन्मदिन. लोगों को याद दिलाया गया कि ये वही शख्स हैं जिन्हें लोग कभी छोटे लोहिया के नाम से जानते थे. अचानक जनेश्वर मिश्र को लगा कि वे पुराने दिनों में लौट आए हैं. वही जोश, वहीं रुतबा, वही रौनक. मौके की नजाकत को भांपकर छोटे लोहिया ने बयान भी दे दिया कि सपा सरकार में शामिल नहीं होगी.
छोटे लोहिया का इस तरह का बयान हाल-फिलहाल के वर्षों में नहीं आया. फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि समाजवादी पार्टी के चेहरे रहे मुलायम और अमर सिंह की तरफ से मीडिया का कैमरा मुड़कर ज्ञानेश्वर की ओर पहुंच गया.
दरअसल, जनेश्वर का जन्मदिन मनाना तो एक बहाना है. जानकारों की मानें तो यह सपा का मायावती से लड़ने का एक हथियार है. मायावती की सोशल इंजीनियरिंग का जवाब सपा ने जनेश्वर मिश्र के रूप में खोजने की कोशिश की है. इसका परिणाम रहा कि मिश्र के जन्मदिन पर कैसरबाग कार्यालय से लेकर कानपुर, बनारस, इलाहाबाद, मिर्जापुर, झांसी सहित कई जिलों में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया.
दरअसल, मामला ब्राह्मणों के तुष्टीकरण का है. मुलायम को लगने लगा है कि प्रदेश में यादव+मुसलमान गठजोड़ से 39 सीटें निकाली जा सकती हैं और इसमें ब्राह्मण का तड़का लग जाए तो मायावती के प्रधानमंत्री बनने के सपनों को तोड़ा जा सकता है. इसके लिए वो कोई भी हथियार आजमाने को तैयार भी नजर आ रहे हैं.
मुलायम जनेश्वर को मायावती के सतीश मिश्र की काट के रूप में देख रहे हैं लेकिन यह तो समय और उत्तर प्रदेश की जनता ही बताएगी कि सपा की ब्राह्मणों को रिझाने की कोशिश कितनी सफल साबित होती है.
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