Sunday, August 10, 2008

बंटवारे की ओर ले जाएगा जम्मू का रास्ता

महबूबा मुफ्ती


पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती मानती है कि जमीन के विवाद कहां नहीं है। लेकिन अमरनाथ यात्रा के मामले में कुछ नहीं बदला है। सिर्फ यह बदलाव हुआ है कि जो सुविधाएं श्राइन बोर्ड जुटाता था। वह अब सरकार जुटाएगी। इससे कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ा है।

देश को इस मुद्दे पर गुमराह किया जा रहा है। एक गुलाम नबी जब से आए स्थितियां बिगड़ती गयीं। और फिर गर्वनर सिन्हा साहब आग लगाकर चले गए। जम्मू में जो हो रहा है वह खतरनाक है। हमारे लिए सामान आने का रास्ता रोक दिया है। फिर हमारे पास दूसरा रास्ता खोलने के सिवा क्या विकल्प बचता है। याद रखिए यह रास्ता एक और बंठवारे की ओर जा रहा है। जम्मू-कश्मीर बंटा तो देश के बंटने में समय नहीं लगेगा।


जसा कि राज्य के पूर्व राज्पाल जनरल सिन्हा ने कहा मुफ्ती साहब श्राइन बोर्ड के खिलाफ है। ठीक नहीं है। पीडीपी पहले दिन से श्राइन बोर्ड को जमीन देने के खिलाफ थी। लेकिन गुलाम नबी आजाद सरकार ने श्राइन बोर्ड को जमीन देने का फैसला किया। नतीजन आज जम्मू जल रहा है, कश्मीर जल रहा है और उस आग ने समूचे मुल्क को चपेट में ले लिया है। हम श्राइन बोर्ड के खिलाफ नहीं है, हम यात्रियों के खिलाफ नहीं हैं। हम उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली जमीन का विरोध भी नहीं करते।

यात्रा के मार्ग में वे जहां चाहें लगंर लगा सकते हैं। पड़ाव बना सकते हैं। हमारे विरोध की दो वजहें हैं। एक तो अमरनाथ यात्रियों की भारी तादात की वजह से पार्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर, दूसरी वजह राजनीतिक वजह थी, जो अब लोगों की समझ में आ रही है और जिसने एक बटवारे जसी स्थिति पैदा कर दी है।


हकीकत में पूरे देश को इस मुद्दे पर गुमराह किया जा रहा है। मैं कहती हूं कि पूरे देश से लोग मेरे साथ चल कर देख लें वहां क्या बदला है। शेल्टर वही है, लंगर वहीं है, यात्रियों को वो सारी सुविधाएं वैसे ही मिल रही हैं, जसी कि पहले मिलती रही हैं। अगर कुछ बदला है तो सिर्फ इतना ही कि पहले यह सुविधाएं श्राइन बोर्ड जुटाता था अब सरकार एेसा कर रही है। इसमें कोई पहाड़ टूटने वाली बात मुङो नार नहीं आती।


यह सही है कि जम्मू-कश्मीर सरकार में हम शामिल थे, लेकिन यह पूरी तरह से तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद और उनकी सरकार का फैसला था हमें जसे ही लगा कि यह फैसला लिया गया है। हमने उन्हें कहा कि यह गलत फैसला है इसके नतीो ठीक नहीं होंगे, इसे वापस लीजिए, क्योंकि इसके खिलाफ घाटी में विरोध शुरू हो गया है। लेकिन वे इसे टालते रहे बाद में उन्होंने इसे वापस लिया लेकिन यह बहुत देर से उठाया गया कदम था।

इसके बाद जम्मू में जिस तरह से कश्मीर की ओर जाने वाली रसद को रोका जा रहा है. जिस तरह से दवाइ्यों और अन्य जरूरी चीाों को घाटी में नहीं आने दिया जा रहा है. वह ठीक नहीं है। जम्मू-कश्मीर एक आजाद मुल्क था। भारत, पाकिस्तान के बनने से पहले हमारी रियासत से चीन की ओर रास्ता जाता था, हम रूस, ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से जुड़े थे। इसे एशिया का गेट-वे कहा जाता था। लेकिन कश्मीरियों ने इन सारे रास्तों सारी संभावनाओं को कुर्बान करके एक रास्ता चुना वह था ‘टनल का रास्ताज् एक जम्हूरी मुल्क के साथ राब्ता कायम करने का रास्ता। आज जब वह रास्ता बंद कर दिया गया है तो सारा मुल्क तमाशा देख रहा है।

हम कहना चाहते हैं कि अगर यह रास्ता बंद किया गया तो हमें मजबूरन 1947 वाले रास्ते चुनने पड़ेंगे और अगर ऐसा हुआ तो इसका परिणाम एक और बंटवारे के रूप में सामने आएगा। आज अगर यह देश मजहब के नाम पर बंटेगा तो कल यह, भाषा के नाम पर और आने वाले दिनों में जात-पात के नाम पर बटेगा। फिर बचेगा क्या?


हमारा मानना है कि आंदोलनकारियों से बात होनी चाहिए। आखिर एेसा तो कुछ भी नहीं हुआ है, जो अस्वीकार हो। क्या भोलेनाथ सिर्फ श्राइन बोर्ड के हैं। श्राइन बोर्ड भोलेनाथ से बड़ा तो नहीं है। दसअसल यह सारा फजाद पूर्व राज्यपाल सिन्हा साहब का फैलाया हुआ है। वह तो जम्मू में आग लगाकर चले गए।


आखिर फसाद है किस बात का? जिस जमीन की बात हो रही है वह जंगल की है। कानूनन उसका स्थानांतरण हो ही नहीं सकता। किराए पर देने की बात हुई थी। ढ़ाई करोड़ किराया था। वह भी नहीं लिया गया। अब ्अगर सरकार यह कह रही कि वह बिना इन सब मामलों में पड़े यात्रियों को सहूलियत देगी, चाहें जो भी खर्च आए तो समस्या कहां है, हम चाहते हैं कि लोग आकर वस्तुस्थिति को देखे। अगर उन्हें लगता है कि पूजा में या दर्शन में कोई विघ्न पड़ा है तो हम अपनी गलती मान लेंगे।
दरअसल आजाद सरकार ने कभी हमारी सुनी ही नहीं।

हम सेना को कश्मीर से बाहर करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने इस पर मंत्रिमंडलीय बैठकों में कभी बात ही नहीं होने दी। वे चाहते थे कि जमीन दी जाए। उनके ऊपर राज्यपाल का दबाव था। जिसके कारण उन्होंने यह फैसला लिया। लेकिन बदकिस्मती से वे इसके परिणामों का सही आंकलन नहीं कर पाए और यह सारा बवाल हो गया।


जमीन का झगड़ा कहां नहीं है। नन्दीग्राम, सिंगूर, उड़ीसा अगर कश्मीर के लोगों ने एेसा फैसला किया तो क्या गलत हो गया। आखिर उत्तरांचल भाजपा सरकार ने भी गंगोत्री की यात्रा करने वालों की संख्या सीमित करने की बात कही है। हम श्राइन बोर्ड को इसलिए जमीन नहीं देना चाहते क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान होता। आखिर हमारे पास पर्यटन के अलावा है क्या। जम्मू-कश्मीर में, कोयला खानें नहीं हैं, उद्योग नहीं और सुविधाएं नहीं हैं। केवल देखने की खूबसूरती ही है। अगर यह भी नहीं रही तो?


हमारी सरकार आने के बाद स्थितियां सुधरी थीं लेकिन जब से आजाद साहब आए वे चीज़ों की संभाल नहीं पाए। वे एक को खुश करने में दूसरे को नाराज करते रहें। इस समय तो मेरी सबसे यह विनती है कि लोग सामने आएं। मैं फिर कह रही हूं कि अगर जम्मू-कश्मीर बंटेगा तो देश को बंटने में समय नहीं लगेगा। अगर आप हमारा एकमात्र रास्ता बंद करेंगे तो कल यह सवाल खड़ा होगा कि फिर इस देश से जुड़े रहने का क्या औचित्य है। लोग कहेंगे कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाए।

3 comments:

Anil Pusadkar said...

pehli bar tumhare blog par aaya hun.achha laga

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिस दिन जमीन श्राइनबोर्ड को दी गई उसी दिन झगड़े की बुनियाद रख दी गई थी।

ek aam aadmi said...

samasya aap jaise logon ki soch me hai, jinhe apne desh, apne swabhiman ka koi gaurav hi nahi hai, yadi bharat gulam hua to aap jaise logon ke kaaran, yadi aise soch bhagat singh, bismil, asfaq-ulla aur batukeshwar datt ki bhi hoti to aaj bhi gulam hi hote