मुशर्रफ के पद छोड़ने के बाद लोग भले ही खुशियां मना रहे हों लेकिन वे अभी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आगे की तस्वीर क्या होगी।
सविता पांडे
पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का जाना तय था। नवाज शरीफ और जरदारी की आमद के बाद उनका राष्ट्रपति बना रहना लगातार मुश्किल होता जा रहा था। सवाल सिर्फ इतना था कि वह अपने पद से कब इस्तीफा देंगे और इस्तीफा देने के बाद कहां रहेंगे। मुशर्रफ के नजदीकी लोग आखिरी दम तक कहते रहे कि राष्ट्रपति इस्तीफा नहीं देंगे, महाभियोग का मुकाबला करेंगे और पाकिस्तान में ही रहेंगे लेकिन उनकी बात पर भरोसा करने वाले कम ही थे।
पाकिस्तान में और खासकर उसकी राजनीति में कभी भी और कुछ भी हो सकता है। यह देखते हुए कि मुशर्रफ के महाभियोग में जीतने के आसार लगातार कम होते जा रहे थे, उनका यह फैसला हैरान नहीं करता। भले ही मुशर्रफ यह तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने 'अपने मुल्क और कौम की खातिरज् पद छोड़ने का अहम फैसला किया।
नौ साल तक मुल्क पर हुकूमत करने वाले तानाशाह राष्ट्रपति के जाने पर देश में जश्न का माहौल है। लोग खुशियां मना रहे हैं। सड़कों पर नाच रहे हैं। ढोल, नगाड़े बज रहे हैं। पाकिस्तान की मानवाधिकार कार्यकर्ता अस्मां जहांगीर कहती हैं कि लोग अब आगे की भी सोच रहे हैं। उनके लिए यह वक्त खुशियां मनाने से ज्यादा यह समझने का है कि उनका मुस्तकबिल क्या होगा। पाकिस्तान किस दिशा में जाएगा। अमेरिका से उसके रिश्ते कैसे रहेंगे। पड़ोसी भारत के साथ संबंधों का क्या हश्र होगा, जिसमें कश्मीर के मसले पर हालिया बयानों की वजह से काफी तल्खी आ गई है।
दरअसल पाकिस्तान की असली समस्या हमेशा से विपक्ष की भूमिका रही है। विपक्षी दल किसी के खिलाफ एकजुट हो जाते हैं और उसे बेदखल करने की कोशिश में अपने विरोध कुछ वक्त के लिए दफन कर देते हैं। लेकिन यह एकता और एकजुटता तभी तक रहती है जब तक उनका साझा दुश्मन बना रहता है। पाकिस्तानी सियासत ने यह मंजर कई बार देखा है और एक बार फिर वही कहानी दोहराई जा रही है। इस समय देखना यह है कि सत्ता पर काबिज नवाज-जरदारी की सियासी जमातों के पास आगे के लिए क्या रणनीति है। वे मुल्क के लिए कैसी तस्वीर सामने रखना चाहते हैं। मुशर्रफ विरोध की वजह से इन जमातों ने अब तक अपनी साझा रणनीति का खुलासा नहीं किया है और न मुल्क के आवाम को, और न ही दुनिया को इसकी कोई भनक है। हिंदुस्तान के साथ रिश्ते पर भी उन्होंने साफ तौर पर कुछ नहीं कहा है।
हालांकि भारत के विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने पाकिस्तान के घटना क्रम पर फौरी प्रतिक्रिया में कहा कि पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते व्यक्ति कें्िरत नहीं हैं। इससे दोनों देशों के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और शांति वार्ता जारी रहेगी। मुखर्जी ने यह भी उम्मीद जताई कि पाकिस्तान की घरेलू सियासत में आया तूफानजल्दी शांत हो जाएगा।
मुशर्रफ की मुल्क के नाम आखिरी तकरीर खासी मानीखेज थी लेकिन उसका अंदाज एक पराजित योद्धा का था। कई जगह तो ऐसा लगा जसे राष्ट्रपति मुशर्रफ किसी स्कूली बच्चे की तरह अपना रिपोर्ट कार्ड पढ़ कर सुना रहे हों कि मैंने नौ साल में क्या किया। सड़कें बनाईं, बिजली उत्पादन बढ़ाया, अमन कायम किया, विकास दर सात फीसदी पहुंचा दी, विदेशी म्रुा भंडार बढ़ा और पूरे नौ साल अमेरिका के मुकाबले पाकिस्तानी रुपए की विनिमय दर साठ के आसपास बनी रही। इसी के साथ उन्होंने कहा कि नई सरकार बनने के बाद के आठ महीने में यह सब उलट गया। देश, जो ऊपर जा रहा था, नीचे आने लगा। मुशर्रफ का दावा था कि ब्रिक देशों (ब्राजील, रूस, भारत और चीन) के बाद दुनिया ने पाकिस्तान को एन-ग्यारह में रखा था। यानी कि पाकिस्तान उन देशों में शामिल था जिनसे भविष्य में बहुत उम्मीदें थीं। एक घंटे के भाषण में पौन घंटा मुशर्रफ ने रिपोर्ट कार्ड पढ़ा। पांच मिनट यह बताने में लगाया कि वह डरे हुए नहीं हैं, उनके खिलाफ महाभियोग विफल होगा और वह इसका सामना करेंगे।
लेकिन अंत के दस मिनट में एक पराजित राष्ट्राध्यक्ष बोल रहा था। मुशर्रफ ने बहुत भावुक होकर कहा 'मैं मुल्क और कौम की खातिर इस्तीफा दे रहा हूं। आज ही मेरा इस्तीफा पहुंच जाएगा। मुङो किसी से कुछ नहीं चाहिए। मैं सबकुछ अवाम और कौम पर छोड़ता हूं। मेरे भविष्य का फैसला वही करेगी। मुङो उनसे न्याय की उम्मीद है।ज् मुशर्रफ ने अपनी तकरीर के अंत में कहा, 'खुदा हाफिज, पाकिस्तान।ज् एक तरह से मुशर्रफ इशारतन कह रहे थे कि पाकिस्तान अब अल्लाह के भरोसे है। अवाम को यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि अब वह सत्ता में नहीं हैं और अब खुदा ही पाकिस्तान की हिफाजत करेगा। उसकी अंदरूनी सियासत के बारे में बहुत भरोसे के साथ कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है। खासकर उस वक्त तक जब तक नई सत्तारूढ़ सियासी जमातें भविष्य की अपनी योजना और रणनीति मुल्क के सामने न रखें।
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