Monday, February 25, 2008

गाते गूंजते गदर...

एक अरसे बाद आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध क्रांतिकारी लोकगायक गदर को सुनते समय आज भी ऐसा ही महसूस होता ही जैसे कि आप बीस साल पहले के गदर को सुन रहे हों. अवाज में वही जोश, शरीर में वैसी ही फुर्ती और पहले जैसा ही अंदाज लेकिन गीतों में पहले से कहीं ज्यादा तल्खी.

अभी 23 फरवरी को दिल्ली के प्रेस क्लब लॉन में 'प्रेस से मिलिए' कार्यकम में गदर ने 'आग है, ये आग है, ये भूखे पेट की आग है' को अपने चिर-परिचित क्रांतिकारी अंदाज में गा कर एक समा बांध दिया. मैंने उन्हें जब भी सुना, उनके गीतों और वक्तव्यों का व्यापक फलक होता था.

लेकिन इस बार उन्होंने अपने वक्तव्य को पृथक तेलंगाना राज्य की मांग तक सीमित रखा. बाद में सवाल-जवाब के क्रम में उन्होंने बताया कि पृथक राज्य की मांग और देश के जनतांत्रीकरण के बिना किसी राज्य को आत्मनिर्णय का अधिकार भी हासिल नहीं हो सकता.

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 'मैं किसी भी पार्टी का सदस्य नहीं हूँ. मैं तो जनता का गायक हूँ और अपने गीतों-नृत्यों के जरिए जनता की समस्याओं को उठाता हूँ जिससे उन्हें लड़ने की प्रेरणा मिल सके. मैं बेजुबान लोगों की आवाज हूँ।'

भारत के क्रांतिकारी आंदोलन और क्रांतिकारी संस्कृति के इस मिथक पुरूष का जन्म आंध्र प्रदेश के मेडक जिले के एक गरीब दलित परिवार में हुआ था. 1972 में उन्होंने जन नाट्य मंडली की स्थापना की. आंध्र के उत्तरी तटवर्ती क्षेत्र के श्रीकाकुलम में आदिवासियों द्वारा सशस्त्र संघर्ष छेड़े जाने की घटना ने उन्हें बहुत पेरित किया और फिर क्रांतिकारी राजनीति और संस्कृति को जनता तक पहुंचाना ही उन्होंने अपने जीवन का ध्येय बना लिया. 1985 में प्रकाशम जिले में सवर्ण जमींदारों ने अनेक दलितों की हत्या की जिसके विरोध में गद्दर खुलकर सामनें आए.

सरकार ने भी भीषण दमन चक चलाया. गदर भूमिगत जीवन बिताने के लिए मजबूर हो गए. उन्होंने सदियों से प्रचलित लोककथाओं और लोक शैलियों को अपनाया और इन कथाओं को क्रांतिकारी राजनीति के साथ जोड़ते हुए जनता तक पहुंचाया. यही वजह है कि उनके एक कार्यकम में इतनी ताकत होती है जितनी हजार भाषणों में भी नहीं हो सकती.

जैसे-जैसे जनता के बीच गदर की लोकप्रियता बढ़ती गई, सत्ता की निगाह में वह खतरनाक बनते गए. पिछले 20 वर्षों के दौरान हजारों-लाखों की संख्या में उनके कार्यकमों के कैसेट और सीडी जनता के बीच पहुंचे होंगे.

18 फरवरी, 1990 को जब उन्होंने भूमिगत जीवन छोड़ा और हैदराबाद के निजाम कॉलेज के विशाल मैदान में जन नाट्य मंडली की 19वीं वर्षगांठ पर कार्यकम पेश किया तो उन्हें देखने-सुनने के लिए तीन लाख से भी ज्यादा लोग मौजूद थे. अब पृथक तेलंगाना आंदोलन की मांग के साथ-साथ उन्होंने आंध्र के गांवों में राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे बर्बर दमन और फर्जी मुठभेड़ों को अपने गीतों का विषय बना दिया था.

तेलगूदेशम सरकर हो या कागेस की सरकार, हर किसी की निगाह में गदर अत्यंत खतरनाक बनते जा रहे थे. लेकिन उनकी लोकपियता इतनी ज्यादा थी कि उन्हें गिरफ्तार करना भी एक नए आंदोलन को निमंत्रण देना था. 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध में आंध्र प्रदेश सरकार और नक्सलियों के बीच जब पहली शांति वार्ता की शुरुआत हुई तो उस समय वरवर राव और कल्याण राव के साथ गदर ने भी इसमें मध्यस्थ की भूमिका निभाई.

6 अप्रैल, 1997 को गदर की हत्या का प्रयास किया गया और उन्हें तीन गोलियां लगीं. किसने ये गोलियां चलाई थीं, इसका पता राज्य सरकार नहीं लगा सकी लेकिन गदर का मानना है कि खुद पुलिस ने ही उनकी हत्या की साजिश रची थी.

आंध्र प्रदेश का तेलंगाना क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से जितना ही समृद्ध है, यहां की जनता उतनी ही गरीब है. यहां की जनता को आजादी मिलने के बाद से ही हर अवसर से वंचित रखा गया और तब से ही राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता की मांग जारी है.

वाई राजशेखर रेड्डी की मौजूदा कांग्रेस सरकार भी पूर्ववर्ती सरकारों की ही तरह तेलंगाना के लोगों की पृथक राज्य की मांग का और भी बर्बरता के साथ दमन कर रही है जिसका प्रतिरोध जनता की तरफ से हो रहा है. प्रतिरोध के स्वर को केन्द्र सरकार तक पहुंचाने के लिए गदर अपने दल-बल सहित एक लंबा कार्यक्रम लेकर दिल्ली आए हैं. यहां वे दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और कुछ अन्य स्थानों पर कार्यक्रम प्रस्तुत करने के साथ ही जंतर-मंतर पर दिन भर धरना भी देंगे.

गदर का मानना है कि यह सरकार जितनी तेजी से अमेरिका के हाथों हमारी आजादी को गिरवी रखती जा रही है उससे हमारी पूरी संप्रभुता खतरे में पड़ गई है. इस मामले में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार हो या मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार, दोनों में कोई फर्क नहीं है.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि जहां-जहां प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता है उन्हीं राज्यों में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कॉरपोरेट घरानों की लूट मची हुई है और इन्हीं राज्यों में जनता का प्रतिरोध भी नए-नए रूप लेता जा रहा है. उदाहरण के रूप में उन्होंने छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा का नाम लिया.


आनंद स्वरूप वर्मा
आज समाज अखबार से साभार

2 comments:

Rahul Kumar said...

anand ji mai aapko sukriya ada kar raha hoon.. Gadaar ji par kuch aur content aap ya moderator saab uplabdh karayen,youth ke liye aur is political situation me yah naitant jaruri hai.

Rahul Kumar said...

anandji aapko sukriya is article ke liye. aap ya moderator saab gaddar ji par kuch aur article, jeevni, absmaran jaisi cheejen uplabdh karayen. youth ke liye yah bahut jaruri content hoga, yah indian politica ke liye v jaruri hai