ये आशंकाएं

माओवादी इसलिए ज्यादा सशंकित हैं क्योंकि भारतीय सीमा से लगे नेपाल के इस तराई इलाके में अब माओवादियों का दबदबा लगभग खत्म हो रहा है.
माओवादियों के प्रमुख प्रचंड ने भारत के कुछ हिंदू तत्वों पर तराई के अलगाववादी संगठनों को समर्थन देने का आरोप लगाया है. उन्होंने साफ-साफ कहा है कि इन संगठनों से किसी तरह की बातचीत का सवाल ही नहीं उठता है.
लेकिन प्रचंड के बयान से खतरे की घंटियां बजनी शुरू हो गई हैं कि माओवादी चुनाव में पराजय बर्दाश्त नहीं करेंगे.
प्रचंड ने कहा कि अगर संविधान सभा के चुनावों में उनकी हार होती है या चुनाव किसी वजह से नहीं हो पाते हैं तो वे सत्ता पर कब्जा कर लेंगे.
प्रचंड के इस बयान के बहुत दूरगामी परिणाम होंगे. क्योंकि इससे स्पष्ट हो जाता है कि उनकी लोकतंत्र में कोई आस्था नहीं है.
दूसरी तरफ नेपाली कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर चुनाव से पहले मधेसियों की समस्या का हल नहीं निकाला गया तो तराई क्षेत्र का विघटन भी हो सकता है.
माओवादियों और इस इलाके में रहने वाले लोगों के बीच टकराव का सिलसिला तब शुरू हुआ जब एक माओवादी नेता की गोली से सोलह साल का एक मधेसी कार्यकर्ता मारा गया.
हालांकि सत्ता में आने के बाद से माओवादी एक बार फिर वहां पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल रही है.
नेपाल में कुल मिलाकर 75 जिले हैं जिसमें से बाइस जिले तराई क्षेत्र में हैं. लेकिन जनसंख्या के मामले में देश के लगभग अड़तालीस प्रतिशत लोग वहां रहते हैं.
इसका सीधा अर्थ है कि यहां रहने वालों की संविधान सभा तथा भावी सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका होगी.
संविधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या छह सौ एक होगी और उसके आधे से कुछ कम यानी लगभग अड़तालीस को तराई क्षेत्र ही चुनकर भेजेगा.
पूर्व मंत्री महंत ठाकुर के नेतृत्व में एक नई तराई मधेसी लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया गया है जिसने तराई स्वायत्तता और आत्मनिर्णय के अधिकार को अपना चुनाव मुद्दा बनाया है.
इस पार्टी में उच्च जातियों का दबदबा है इसलिए यह देखने वाली बात होगी कि अन्य जातियों तथा दलित और अल्पसंख्यक इस पार्टी से अपने को कितना जोड़ पाएंगे.
यह यहां की राजनीति में काफी महत्वपूर्ण साबित होगा. हालांकि संघीय प्रणाली अपनाने का एलानहोने के साथ ही बहुत सारे जातीय और क्षेत्रीय संगठनों ने यह कहना शुरू कर दिया कि काठमांडू को पहले की तरह की सत्ता का केंद्र नहीं रहना चाहिए. उनकी मांग थी कि सत्ता का विकेंद्रीकरण होना चाहिए.
तराई में मधेसियों द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन इसी मांग का पहला और संगठित स्वरूप है. यही मामला अभी और पेचीदा बनेगा.
लेकिन इसका आगामी चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखना होगा. तराई क्षेत्र में जमीन काफी उपजाऊ है इस कारण पहाड़ी इलाकों के लोग भी बड़ी संख्या में पलायन कर वहां पहुंचने लगे हैं. मधेसी लोग इसे काठमांडू की सत्ता को जारी रखने की सुनियोजित साजिश के रूप में देख रहे हैं.
हालांकि सरकार ने चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराने के लिए व्यापक सुरक्षा उपाय करने की घोषणा की है. उसने कहा है कि दस अप्रैल को होने वाले संविधान सभा के चुनाव के लिए डेढ़ लाख सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाएंगे.
तराई क्षेत्र के सबसे अशांत आठ जिलों में सुरक्षा के और कड़े उपाय किए जाएंगे.
मधेसी जनाधिकार मंच के नेताओं ने साफ कर दिया है कि जब तक सरकार उनकी अधिक राजनीतिक और आर्थिक स्वायत्तता की मांग नहीं मानेगी तब तक चुनाव में व्यवधान डालने का उनका फैसला बदलने वाला नहीं है.
उन्होंने धमकी दी है कि यदि सरकार ने उनकी मांग को गंभीरता से नहीं लिया तो उसके लिए तराई क्षेत्र में संविधान सभा के चुनाव कराने मुश्किल होंगे.
तराई के असंतुष्टों ने इस दिशा में शुरुआत भी कर दी है.
सत्तारूढ़ सात दलों के गठबंधन के संयुक्त चुनाव अभियान को असफल बनाने के लिए वे उन स्थानों पर बंद का आह्वान करने लगे हैं, जहां गठबंधन चुनाव सभाएं करने की घोषणा करता है.
राजीव पाण्डे
1 comment:
Happy Chinese New Year!
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