Tuesday, February 12, 2008

नीतीश जी, जनता को विकास चाहिए, राजनीतिक स्वार्थ नहीं...

नीतीश कुमार जी बिहार में आपका शासन अच्छा चल रहा है.

अच्छा लगता है जब अपने पत्रकार मित्रों से सुनता हूं कि राज्य की छवि देश में अच्छी बन रही है. यह कमाल आपने महज दो वर्ष दो महीने यानी कुल 26 महीने में ही कर लिया.

आपको भी अच्छा लगता होगा जब बड़े-बड़े घराने राज्य में निवेश करना चाहते होंगे लेकिन आपको अपने ही गृह जिले में चप्पलों, ढेलों और कीचड़ का सामना करना पड़ा. यह तो आश्चर्यजनक लगता होगा न !

इस तरह के स्वागत का अंदाजा आपको नहीं रहा होगा तो पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को कहां से होगा, जिन्होंने हवाई 2020 का भ्रम फैला रखा है. श्रद्धेय कलाम जी को भी पता चल गया होगा कि लोग क्या चाहते हैं?

नीतीश जी लोग यथार्थ में जीते हैं. जब पेट में भूख की आग हो तो वे सपने नहीं बुना करते हैं. बिहार के गरीबों के पेट की आग क्या होती है, आप जानते होंगे, इसमें शक ही है? आपके ईद-गिर्द घूमने वाले राजीव रंजन सिंह जैसी लोगों से इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

खैर महत्वाकांक्षी योजना नालंदा अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, जो कलाम का सपना है, उसे आप पूरा करना चाहते हैं. आपके इरादे में भी नेक हैं. लेकिन यदि आपके ही जिले के किसानों ने उचित मुआवजा मांग लिया तो इसमें राजनीतिक साजिश ढूंढना कहां तक उचित है.

सुना है कि आपकी पार्टी के नेता ही उन किसानों का नेतृत्व कर रहे थे ! पता करिएगा.

खैर, बिहार के अंदर का यह विरोध यूं ही नहीं है. बिहार की आबादी के हिसाब से प्रति व्यक्ति भूमि में कमी आई है. झारखंड बंटवारे के बाद बिहार में बेरोजगारी और बढ़ी है. राज्य में कृषि भूमि पर दबाव है. यहां के किसान खेती से कुछ जमीन निकाल कर विश्वविद्यालय के लिए दे दें, यह उनको गंवारा नहीं है. ऐसी हालत में यह प्रतिरोध तो होना ही था.

बंगाल में सिंगुर-नंदीग्राम के बाद अब किसी सरकार के लिए किसानों की जमीन का अधिग्रहण उतना आसान नहीं रह गया है. कम से कम वहां के किसानों के आंदोलन ने देश के किसानों को जागरूक कर दिया है.

पश्चिम बंगाल में वर्गा कानून लागू होने की वजह से जितने बटाईदार थे, उन्हें कास्तकारी और स्वामित्व का अधिकार मिला. बावजूद इसके उस लोकप्रिय सरकार को सिंगुर-नंदीग्राम पर किसानों का गुस्सा झेलना पड़ा. देश के किसान अब जबरन जमीन नहीं देंगे.

नीतीश जी, आप खबरों में कहते हैं. बिहार में सिंगुर-नंदीग्राम नहीं होने देंगे और जबरन जमीन का अधिग्रहण भी नहीं करेंगे. तो फिर आप नालंदा में क्या कर रहे हैं?

नालंदा में जमीन का बाजार भाव 20-25 हजार रुपए प्रति कट्ठा है और सरकार किसानों को महज 10 हजार प्रति कट्ठा दे रही है. किसान मुआवजे में एक लाख मांग रहे हैं.

चलिए हो सकता है, मेरे आंकड़ों में कोई कमी रह गई हो, लेकिन आपकी सरकार या कहें आप कैसे काम करते हैं, कुछ इस पर भी बात कर लेते हैं, जो आपके चहेते पत्रकारों को नहीं दिखता है.

चंपारण के केसरिया में कोरबा चीनी मिल के लिए अधिग्रहण का काम होना है. छपरा में रसूलपूर में भी चीनी मिल के किसानों से जमीन लिया जाना है. लेकिन रसूलपूर से महज 15 किमी दूर पचरूखी में राज्य चीनी निगम का एक मिल है, जो पिछले डेढ़-दो दशक से बंद है.

मिल के पास करीब 10 हजार एकड़ जमीन बेकार बची है. आप रसूलपूर की जगह पचरूखी की चीनी मिल को फिर से चालू कर सकते हैं. इस समय राज्य चीनी निगम के पास 20 से ज्यादा चीनी मिलें हैं और तकरीबन सभी के पास 5-10 हजार एकड़ जमीनें बेकार बची हैं. ऐसे में नए जगहों पर चीनी मिल खोलने का क्या मतलब है.

चलिए कुछ और उदाहरण देखते हैं. आपकी यह आदत पुराने समय से रही है. आप रेलमंत्री के जमाने से विकास पुरुष हो गए हैं. मीडिया में आपकी ऐसी ही छवि गढ़ी गई है.

बरौनी के गढ़हरा रेलवे यार्ड में हजारों एकड़ जमीन है. यार्ड बंद हो गया. उसकी जमीन पड़ी है. लेकिन आपने गढ़हरा के बजाए अपने क्षेत्र हरनौत में रेल कोच कारखाना खोलना की योजना को हरी झंडी दिखाई.

वैसे आपके मित्र लालू प्रसाद यादव भी कम नहीं हैं. उन्होंने भी गढ़हरा की ओर नहीं देखा. दूसरे विकल्प जमालपुर को नहीं देखा और अपने चुनाव क्षेत्र छपरा का चयन किया.

दरअसल आप और आपके अजीज मित्र लालू प्रसाद बिहार के विकास को लेकर बहुत चिंतित दिखते हैं. लाजिमी भी है. लेकिन यह विकास है या राजनीतिक स्वार्थ, इस भेद को समझना जरूरी है.

यदि विकास करना होता तो आप नए सिरे से उन पुराने चीनी मिल, यार्ड की पड़ी जमीनों का इस्तेमाल कर सकते थे. लेकिन जमीन अधिग्रहण के खेल के पीछे राजनीतिक स्वार्थ है. आपकी दिलचस्पी बिहार के विकास में नहीं, राजनैतिक विस्तार में है.

काश आजादी के बाद बिहार के मुख्यमंत्रियों ने अपना राजनैतिक विकास राज्य के विकास में देखा होता तो शायद महाराष्ट्र में कोई राज ठाकरे जैसा सरफिरा और दिल्ली के उपराज्यपाल तेजिंदर खन्ना जैसा बददिमाग "तानाशाह" बिहारियों का इस तरह से मजाक नहीं उड़ाता.

बहरहाल, अब राज्य के किसान आपके राजनीतिक स्वार्थ को समझने लगे हैं. इसलिए किसानों का गुस्सा होना और इस तरह से चप्पलें फेंकना स्वाभाविक है.

बाढ़ में एनटीपीसी कारखाना के खिलाफ भी किसान लगातार विरोध कर रहे हैं. क्या आप इसे समझ रहे हैं, क्या हो रहा है? उधर सीमावर्ती इलाकों में इस्ट एंड वेस्ट कॉरीडोर को लेकर मधुबनी जिला में जबरदस्त विरोध हो रहा है.

नीतीश जी आपको नालंदा में जिस विरोध का सामना करना पड़ा है, वह राज्य के पता नहीं कितने हिस्सों में रोज घट रहे हैं. लेकिन आप बेपरवाह हैं. मेरे गृह जिला शेखपुरा के घाटकुसुम्भा में सड़क बनाने के नाम पर हजारों एकड़ जमीन ले ली गई. उन किसानों को मुआवजा नहीं मिला. उनका फसल खराब हो गया, लेकिन आप क्यों उनकी परवाह करेंगे.

इसी ब्लॉक के पानापुर में एनबीसीसी के बुलडोजर ने 42 घरों को बुलडोजर से ढाह दिया और सड़क बना दी. किसान सड़क पर आ गए हैं. यही किसान धीरे-धीरे मुंबई और दिल्ली जाएंगे. उन पर जब हमले होंगे तब आप मीडिया में बयानबाजी करेंगे?

लेकिन अपने ही गृह राज्य में किसानों के गुस्से-प्रतिरोध और जबरन जमीन अधिग्रहण पर इतनी बेरूखी क्यों नीतीश जी? प्रतिरोध तो होना तय है, आप वक्त रहते चेत जाएं?

नालंदा के किसान आपके खिलाफ सड़क पर उतर आए हैं. राज्य के बाकी किसान भी जल्द ही उतर आएंगे. राज्य की जनता विकास चाहती है नीतीश जी, राजनीतिक स्वार्थ नहीं...



राहुल कुमार

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