
हमने भारतीय टेस्ट टीम के एक अधेड़ खिलाड़ी से फोन पर बातचीत की. प्रस्तुत है उस फोनालाप के कुछ छँटे हुए अंश...
क्रिकेट खिलाड़ियो की इस खुलेआम नीलामी पर आप क्या कहना चाहेगें ....
(एक लंबी आह) नीलामी, वह भी खिलाड़ियों की, बहुत गलत हुआ. नीलामी तो होती है पुराने, टूटे-फूटे सामानों की. खिलाड़ी तो अच्छे-खासे आदमी हैं. यह तो आदमियों की नीलामी है.
कुछ लोगों का कहना है इससे भारतीय क्रिकेट को बढ़ावा मिलेगा....
ऐसा तब होता जब आईपीएल की आठ टीमें केवल भारतीय खिलाड़ियों पर बोली लगातीं और उसमें रणजी ट्रॉफी और अन्य प्रतियोगिताओं में खेलने वाले सभी खिलाड़ियों को इसमें शामिल किया जाता. विदेशी खिलाड़ियों को इसमें शामिल करने से देश के उभरते खिलाड़ियों का पत्ता कट गया. टीमों ने विदेशी खिलाड़ियों में ज्यादा रुचि दिखाई.
फिर भी देश के खिलाड़ियों की नीलामी विदेशियों से अधिक कीमत पर हुई है...
वह तो होना ही था. आखिर बोली लगाने वाले भारतीय थे. अगर विदेशियों पर अधिक बोली लगाते तो भी आगे चलकर उनकी आलोचना होती. फिर भी अधिकतर विदेशी खिलाड़ी हैं, लेकिन संतोष की बात है कि भारतीय खिलाड़ियों के मुकाबले उनकी कीमत ज्यादा नहीं लगी है.
साइमंड्स जैसे अपवाद हर जगह होते हैं. शेन वार्न जैसे दिग्गज की इज्जत बड़ी मुश्किल से बची है. फिर भी उसे अपने कप्तान रिकी पोंटिंग से तिगुना पैसा मिला है. वैसे सचिन की रिजर्व कीमत के मुकाबले धोनी को बहुत ज्यादा मिला है. इसका मतलब यह नहीं कि खेल के मामले में धोनी सचिन से अच्छे हैं.
इससे अन्य खेलों पर कैसा असर पड़ेगा.....
इससे अन्य खेलों के प्रति रुझान जो पहले से ही कम है, और कम होगी. और अधिक से अधिक युवा क्रिकेट की तरफ मुड़ेंगे.
क्रिकेट में पहले ही अधिक पैसा था. अब तो क्रिकेट खिलाड़ियों की चांदी हो गई है. भला हो पवार साहब का जिन्होंने बोर्ड को व्यापारिक कंपनी और खिलाड़ी को अपना उत्पाद बना दिया है. अब तो क्रिकेट एक व्यापार हो गया है.
आपको अपने कैरियर से कोई शिकायत...
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