Monday, February 4, 2008

जनता तो वोट से ही जवाब देती है...

सत्ता के भूखों ने एक बार फिर विभाजनकारी कोशिशें शुरू कर दी हैं और इसमें उनका साथ परोक्ष रूप से दे रहें वे लोग, जिन्होंने कभी उन लोगों को अपना हितैषी समझ कर गद्दी पर बिठाया था.

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के समर्थकों द्वारा गैर मराठी, खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को लगातार निशाना बनाना शर्मनाक है. आखिर यह कैसी राजनीति हो रही है जिसमें देश तो एक है लेकिन लोगों को प्रांतीय आधार पर अलग रखने का प्रयास किया जा रहा है.


महाराष्ट्र में पहली बार अगर किसी ने प्रांतीय पैमाने का जहर घोला था तो वे हैं शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे. उन्होंने 'महाराष्ट्र मराठियों का है' का नारा दिया था. इससे आगे जाकर उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर लाठी की राजनीति की. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो, फरमान इनका चलता रहा है. उत्तर भारत के नौजवान रेलवे की परीक्षा देने गए वहां गए तो शिवसेना समर्थकों ने प्लेटफार्म पर ही उन्हें पीटा और उनसे बदसलूकी की. फिर भी सरकार खामोश रही. सरकार की चुप्पी ने ऐसे लोगों का मनोबल इतना बढ़ाया है कि वे अब महाराष्ट्र को अपनी जागीर समझने लगे हैं.

राज ठाकरे बिहार और उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान को अछूत समझ रहे हैं लेकिन उन्हें शायद किसी ने यह नहीं बताया कि इसी धरती पर शांतिदूत बुद्ध और महावीर ने नई शुरूआत की थी. उनकी पूजा आज सारे विश्व में होती है. यहीं सम्राट अशोक और विद्वान चाणक्य पैदा हुए थे. राज ठाकरे शायद यह भूल गए कि छठ पर्व हिंदुओं का पर्व है और जिन बाल ठाकरे से उन्होंने राजनीति सीखी है, उन्होंने भी सारी उम्र हिंदुत्व को आधार बना कर ही राजनीति की है.


पूरे घटनाक्रम में अगर किसी के दोनो हाथों में लड्डू है तो वह है कांग्रेस पार्टी. और, यही कारण है कि इस मामले को तूल पकड़ने दिया जा रहा है. न तो प्रधानमंत्री कोई बयान दे रहे हैं और न ही सप्रंग अध्यक्ष सोनिया गांधी का कोई वक्तव्य आ रहा है. सभी जानते है कि राज ठाकरे बाला साहब ठाकरे के भतीजे हैं. राज ठाकरे की इस तरह की अतिवादी हरकतों से शिवसेना को लेकर लोगों का गुस्सा बढ़ेगा और कांग्रेस इससे फायदा उठाने की उम्मीद में खामोश है.


लेकिन यह सोचना कांग्रेस के लिए खुद की कब्र खोदने जैसा होगा क्योंकि डेढ़ साल बाद देश में आम चुनाव होने हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 40+80= 120 सीटें हैं जो लोकसभा सांसदों का 22 प्रतिशत है. चुप्पी का जवाब कांग्रेस को भी देना होगा. जनता तो वोट से ही अपना जबाव देती है.



कुणाल कुमार

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