Monday, April 18, 2011

बदल दो राजनीति के प्यादे

मृगेंद्र पांडेय

राजनीति के प्यादे हाथी कर तरह होते हैं। वह कभी भी, कहीं भी वार कर देते हैं। उनको इस बात का अंदाजा होता है कि उनके जाने या बचने का बडा असर नहीं होने वाला है। लेकिन राजनीति के मंझे खिलाडी की हमेशा कोशिश रहती है कि प्यादे बचे रहें। कई बार प्यादे वजीर बनने में भी सफल हो जाते हैं। इस पर सवाल खडा होता है कि क्या वजीर और प्यादे की दौड के बाद बना वजीर दोनों की ताकत समान होती है। जवाब अलग-अलग आते हैं, लेकिन यह जवाब अधिकांश लोग देेते हैं। दोनों की ताकत भले ही समान मान ली जाए, लेकिन दौड के बाद बना वजीर इतना कमजोर होता है कि वह अपनी पूरी ताकत विरोधी के वार से बचने में खर्च कर देते है। अंत में उसे या तो मरना पडता है या फिर हार का सामना करना पडता है।

छत्तीसगढ की राजनीति में भी कई प्यादे खुद को बचाकर वजीर तो बन गए, लेकिन काम प्यादे का ही किया। वो लगातार हारते रहे। खुद को बचाने की जुगत में पार्टी की लुटिया डूबाते रहे। अंत में एक दिन उनको पद से हटा दिया गया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष धनेंद्र साहू खुद विधानसभा का चुनाव नहीं जीत पाए। आज जब वे अपनी कुर्सी कांग्रेस के नए वजीर नंद कुमार पटेल को दे रहे थे, तो कहा पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। उनके सहयोग के कारण ही वे अपना तीन साल का कार्यकाल पूरा कर पाए। अध्यक्ष के रुप में दिए अंतिम भाषण में धनेंद्र की लाचारगी, बेचारगी, चेहरे पर कुछ न कर पाने की उदासी साफ नजर आ रही थी।

तीन साल में पार्टी ने विधानसभा, लोकसभा, नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव में करारी हार का सामना किया। विधानसभा में जीते अधिकतर विधायक अजीत जोगी खेमे के हैं। जिनको टिकट दिलाने से लेकर जीताने तक का काम खुद जोगी ने किया। धनेंद्र को तो यहां तक पता नहीं था कि उम्मीदवार को चुनाव लडने के लिए पैसे का इंतजाम कहां से किया जाए। हाल ही में दक्षिण बस्तर के ताडमेटला गए विधायकों के दल के साथ वापस लौट रहा था तो एक वरिष्ठ विधायक ने कहा कि संजारी बालोद में साहू जी ने चुनाव में डयूटी लगा दी। चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे तो बोले होटल में रुकने का इंतजाम पार्टी ने कर दिया गया है, बिल मत देना। बिलासपुर क्षेत्र से तीन बार के विधायक जब चुनाव प्रचार करके लौटने लगे तो होटल के मैनेजर ने चाय से लेकर खाने तक का बिल थमा दिया। उन्होंने पैसा दिया और बिल जेब में रख लिया।

कुछ दिनों बाद रायपुर की कांग्रेस कमेटी में हुई एक बैठक में चुनाव परिणामों की समीक्षा हुई। बात आई कि इतना पैसा खर्च करने के बावजूद पार्टी के लोगों ने ठीक से प्रचार नहीं किया। तब विधायक महोदय ने होटल का बिल धनेंद्र साहू को थमा दिया। बोला, ऐसे मैनेजमेंट करोगे तो उम्मीदवार हारेगा नहीं, तो क्या जीतेगा। यह तो महज एक बानगी है। ऐसे सैकडों वाकया हैं, जो प्यादे से वजीर बने की ताकत का एहसास कराते हैं। खैर, नए अध्यक्ष को वजीर माना जा रहा है। देखते हैं नई कार्यकारिणी में वे कितने प्यादे और कितने वजीर शामिल करते हैं।

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