Sunday, April 17, 2011

छत्तीसगढ में कांग्रेस की राहुल ब्रिगेड कब!

नए प्रदेश अध्यक्ष से काफी उम्मीद, चुनौतीपूर्ण होगा राहुल के सपनों की टीम चुनना

मृगेंद्र पांडेय

कांग्रेस की राजनीति में छत्तीसगढ के छत्रपों को बदलने का वक्त का गया है। एक दशक की राजनीति में छत्तीसगढ में छह छत्रपों का राज रहा। ये छत्रप पार्टी को वह दिशा नहीं दे सके, जिसकी इनसे उम्मीद की गई थी। नया राज्य बनने के बाद हुए दोनों विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पडा। इस दौरान इन छत्रपों की मनमानी के आगे आलाकमान लाचार था। कोई भी नया प्रयोग करने में पार्टी ने हमेशा अपने पैर पीछे ही रखे। इसका असर मतदाताओं की सोच पर भी पडा।

लोकतंत्र की नंबर वाली भीड में प्रयोग से बचती कांग्रेस के हाथ आम आदमी से दूर होते गए। अब लंबे समय बाद एक उम्मीद जगी है। कांग्रेस ने पार्टी अध्यक्ष के लिए एक ऐसे नेता का चयन किया है, जो तेज-तर्रार है। जिसके पास प्रदेश में बिखरी कांग्रेस को जोडने का माददा है। जो कांग्रेस के जोगी गुट के नजदीक भी है और दूर भी। नए अध्यक्ष पर नए सिरे से प्रदेश में पार्टी को खडा करने का दबाब है। ऐसी पार्टी जो अतीत की नींव पर भविष्य की नींव हो। मतलब साफ है प्रदेश की इंदिरा कांग्रेस में राहुल ब्रिगेड को मौका देना ही होगा।

राहुल गांधी में सक्रिय राजनीति में युवक कांग्रेस और भारतीय राष्टीय छात्र संगठन की जिम्मेदारी संभाल रखी है। इन दोनों संगठनों में राहुल आने वाली कांग्रेस में अपनी ब्रिगेड खडी करने की तैयारी में हैं। लोकसभा चुनाव में भी 80 से ज्याद युवाओं को और केरल, पश्चिम बंगाल और असम विधानसभा चुनाव में 20 फीसदी के करीब युवाओं को टिकट दिलाकर यह संकेत भी दे दिया है कि अब प्रदेशों में और विधानसभा में भी राहुल ब्रिगेड ही चलेगी। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के सामने उन सक्रिय युवाओं को खोजने और निखारने की जिम्मेदारी होगी, जो 35 से 45 की उम्र के हों। इन युवाओं को जिम्मेदारी देने से पार्टी में लंबे समय से जमे छत्रपों को आसानी से किनारे भी किया जा सकता है और शांत पडी पार्टी में नया जोश भी फूंका जा सकता है। अगर नंद कुमार पटेल अपनी टीम में 20 फीसदी युवाओं को मौका दे देते हैं, तो प्रदेश में भाजपा सरकार के लिए मुश्किलें जरुर खडी हो सकती है।

प्रदेश कार्यकारिणी में आए नए युवाओं पर खुद को साबित करने का दबाव तो रहेगा ही, साथ ही पटेल उनसे योजनाबदृध तरीके से काम भी ले सकते हैं। पिछले चुनावों में हार का बडा कारण छत्रपों के आगे कमजोर प्रदेश अध्यक्ष को माना गया है। ऐसे में छत्रपों को किनारे कर नंद कुमार युवाओं को मौका देने की सोचें तो पार्टी में नई पौध विकसित हो सकती है। लेकिन ऐसा करने में नंदकुमार को अपनी कुर्सी जाने का भी डर बना रहेगा। प्रदेश कांग्रेस भवन में तो इस बात की चर्चा है कि नए प्रदेश अध्यक्ष के साथ एक-दो महीने में कार्यकारी अध्यक्ष की भी घोषणा हो जाएगी। मतलब फिर कांग्रेस ढाक के तीन पात होगी। अगर ऐसा होता है तो एक बार फिर प्रदेश को कांग्रेस की राहुल ब्रिगेड के लिए इंतजार ही करना होगा।

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