मृगेंद्र पांडेय
राजनीति अपनी सहुलियत देखती है। उसे इसकी परवाह नहीं कि कल क्या होगा। आज को सही तरीके से निपटा लें, तो उससे बेहतर कुछ नहीं होता है। अन्ना हजारे ने अचानक आजादी की दूसरी लडाई लडने की तैयारी कर ली। देश के कुछ बुदृधजीवियों ने उनको अपना नेता मान लिया। अन्ना हजारे दिल्ली में जंतर मंतर पर धरना और आमरण अनशन पर बैठ गए। अन्ना को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना नेता बनाने का फैसला ठीक वैसा ही है, जैसा 1857 की लडाई में स्वतंत्रता के दीवानों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बनाया था। जफर अपने जीवन के अंतिम दौर में थे। देश के पास एक भी ऐसा आदमी नहीं था, जो उनका नेता बन सके। ठीक इस बार ऐसा ही है। पद, प्रतिष्ठा और सम्मान। सब कुछ अन्ना के पास है, इसलिए अन्ना हमारे नेता बना दिए गए हैं।
भ्रष्ट हो चुका मध्यमवर्ग अब भ्रष्टाचार की लडाई लड रहा है। उसके लिए कानून बनाने की बात कह रहा है। सवाल यह है कि क्या भ्रष्टाचार को कानून बनाकर लडा जा सकता है। अगर यह सही है तो क्या देश में बने कानून भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए काफी नहीं है। देश की अदालतों में करोडों मामले पेंडिंग पडे है। लोवर कोर्ट से अगर कोई मामला हाईकोर्ट में चला जाता है तो उसका नंबर आने में कम से कम एक महीने लगता है। सीबीआई जांच का परिणाम जीवन के अंतिम दौर तक नहीं आ पाता। ऐसे देश में एक और कानून की जरुरत क्यों है। यह कानून उन लोगों पर ही लगाया जाएगा, जिनके कारण यह सिस्टम भ्रष्ट हुआ है। भारत का भ्रष्ट मध्यमवर्ग जो आज अन्ना हजारे के साथ खडा है, कल वही भ्रष्टाचार का सरगना रहेगा।
बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार की लडाई लड रहे हैं। देश में भूख से मौत और नक्सली हिंसा की जगह काला धन सबसे बडा मुददा है। इसे चुनावी मुददा बनाकर बाबा राजनीति में आने की तैयारी कर रहे हैं। बस्तर, दांतेवाडा और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास को लेकर कोई आंदोलन क्यों नहीं किया जा रहा है। टूटी सडकें और गंदा पानी देश के लिए मुददा क्यों नहीं है। मेरी सहानभूति है अन्ना हजारे के साथ कम से कम उन्होंने पहल की, लेकिन यह पहल कोई बदलाव करेगी, यह मेरी समझ से परे हैं। बदलाव के लिए उस मध्यमवर्ग को सुधारने की जरुरत है, जो अपनी छोटी जरुरतों के लिए समझौता करने को तैयार है। उस सिस्टम को बदलने की जरुरत है, जो हमें भ्रष्ट बनाता, न कि किसी कानून की।
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