Thursday, May 19, 2011

गंगा जी नहीं गंगा मईया!

कभी किसी का परित्याग नहीं करतीं हैं गंगा जी
मृगेंद्र पांडेय

भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता की पढाई के दौरान जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय में रोजाना घूमने का अपना ही मजा रहता था। उन दिनों गंगा ढाबा से लेकर पूर्वांचल हास्टल के चक्कर लगाया करते थे। वैचारिक मुददों पर तकरार वाम पंथ से हल्का है भगवा रंग वगैरह वगैरह। इन सब के बीच एक दिन किसी दोस्त ने एक फिल्म धर्म देखने की सलाह दी। बताया कि बनारस के घाट के बारे में इसमें काफी अच्छा दिखाया गया है। एक पंडित जी हैa जिन्होंने गंगा किनारे बसे बनारस को बडे अच्छे ढंग से पेष किया है। बनारस] गंगाजी] और पंडित] तीनों मेरे फेवरेट थे. तो मैं फिल्म लाकर अपने कंप्यूटर में लगा दिया। उन दिनों बहुत कम लोगों के पास ही अपना लैपटाप हुआ करता था।

धर्म की शुरुआत बनारस में गंगाजी के घाट से होती है। षास्त्रजी पूजा के लिए सुबह सूर्य उगने से पहले निकलते हैं और अपने कार्यकलाप को निपटाने के बाद षिश्यों को पढाने में जुट जाते हैं। संस्कृत के एक ष्लोक का अनुवाद करते हुए उन्होंने बताया कि पिता पुत्र को, पति पत्नी को, संबंधी-संबंधी को भाई बंधु एक दूसरे को त्याग देते हें किंतू गंगाजी गंगा मईया कभी किसी का परित्याग नहीं करती है अगर उसने एक बार भी उसके जल में स्नान किया हो। वो जीवन पर्यंत उसके पापों केा हरकर उसे मोक्ष का अधिकारी बनाती है। इस घोर कलयुग में जहां सदगुणों का लोप हो रहा है, गंगा मईयां की उपस्थिति हमारे बीच सौभाग्य की बात है।

भारत की संस्कृति में गंगा का अपना एक विषेश स्थान है। षास्त्रों में बनारस षहर का जिक्र किया गया है। विष्व का एक मात्र षहर जो कभी नश्ट खत्म नहीं हुआ। बनारस वह स्थान है जहां गंगा धनुस का आकार ले लेती है। अगर हम गंगा के दूसरे किनारे से देखें तो बनारस षहर धनुस के आकार का आज भी दिखाई देता है। मतलब जिस तरह बनारस कभी खत्म नहीं हुआ, उसी तरह गंगा भी जन्मों-जन्म से हमारे बीच है। धर्म को न मानने वाले इस तर्क को नकार सकते हैं। बनासर में लंबे समय तक रहने के कारण मेरा मानना है कि गंगा आम आदमी के जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। लेकिन गंगा मईया जिस तरह से प्रदूशित हो रही हैं ऐसा लगता है कि आने वाले समय में कभी समाप्त न होने वाले बनारस और गंगा दोनों का अस्तित्व खतरे में पडने वाला है।

हाल में एक रिपोर्ट आई है जिसमें बताया गया है कि कानपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों में उद्योगों का गंदा पानी जिस तरह से गंगा में आ रहा है, वह एक बडे खतरे को चेतावनी दे रहा है। बनारस के आसपास भदोही में बडे पैमाने पर कालीन उद्योग है। इससे निकलने वाला कचरा भी गंगा में गिराया जा रहा है। बची कसर मायावती का डिम प्रोजेक्ट गंगा एक्सप्रेस वे पूरी कर रही है। वडे पैमाने पर उपजाउ जमीन को कब्जा किया जा रहा है और उस पर सिक्स लेन सडक बनाकर गंगा के किनारे षहरों के विकास की तैयारी की जा रही है। इन नए षहरों का कचरा भी गंगा में ही जाएगा। इसके लिए कोई विषेश प्लान अब तक सामने नहीं आया है कि एक्सप्रेस वे के कारण बसने वाले षहरों की गंदगी को क्या गंगा में फेंका जाएगा या नहीं।

सरकार की कोषिष हमेषा से नाकाम होती आई है। क्यों सरकार नहीं चाहती कि समस्याओं का समाधान हो। पैसा खर्च करने के नाम पर अफसरषाही नोट बटोर रही है और गंगा के खाते में कचरा और गंदगी जमा होती जा रही है। क्रेडिट सोसाइटी के फार्मूले को माने तो हमारे हिस्से मूल धन और ब्याज दोनेां में कचरा ही जमा हो रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आने वाले समय में सरकार, आम आदमी और पर्यावरण विद नहीं चेते तो गंगा के अस्तित्व को खतरा ही होने वाला है। यह खतरा उस संस्कृति के खिलाफ होगा जो कभी समाप्त नहीं हुई है। आओ हम सब मिलकर गंगा को बचाने के लिए प्रण लें। क्योंकि गंगा बचेगी तो हम बचेंगे। जय गंगा जी] जय गंगा मईया।

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