Wednesday, November 19, 2008

इस बार कौन, मतदाता मौन

ढोल नगाड़ों की थाप शांत हो गई। नेता-कार्यकर्ता दोनों अब घर-घर जाकर लोगों को वोट देने के लिए कह रहे हैं। इस बीच छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में बड़े नेताओं की रैलियों में भीड़ नहीं जुटना कुछ खास संकेत दे रही है। यह संदेश उन नेताओं के लिए घातक हैं जो चुनावी सभाओं में सिर्फ कोरे वायदे करते हैं। यहां की आदिवासी बहुल जनता मानो यह जान गई हो कि कोई भी बड़ा नेता वायदा छोड़कर कुछ करने से रहा, इसलिए यह रैलियों में आने से कतरा रहे थे।

जनता के नेताओं से टूटते विश्वास को जोड़ने के लिए अब कोरे वायदे कारगर नहीं होंगे, इसके लिए जमीनी सच्चाई से भी नेताओं को रू-ब-रू होना पड़ेगा। कांग्रेस हो या फिर भाजपा दोनों ही दलों के शीर्ष नेताओं को जनता ने अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश जरूर की है, लेकिन अब देखना यह होगा कि वह अपने नेताओं को जमीनी हकीकत से वाकिफ कराने में कितनी सफल होती है।
छत्तीसगढ़ के दौरे पर गए कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने तो मानो सारी हदें ही पार कर दी हों। रायपुर में चुनाव सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने यह कह डाला कि उत्तराखंड में आकर अच्छा लग रहा है। उन्होंने प्रदेश में अंबिकापुर, कोरबा और रायपुर में कुल आठ रैलियां की लेकिन किसी में भी आशा के अनुरूप लोग इकट्ठा नहीं हुए। यह हाल सिर्फ राहुल गांधी का ही नहीं है।

भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी के बस्तर दौरे पर लोगों की भीड़ नहीं जुटने के कारण सभा को रद्द करना पड़ा और सभा को कार्यकर्ता सम्मेलन में बदलना पड़ गया। आडवाणी की रायपुर जिले में पहली रैली में भी हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ नहीं पहुंची। हालांकि रायगढ़ की रैली में लोग आडवाणी को सुनने जरूर पहुंचे। रैलियों में कम होती जनता की उपस्थिति को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की खरसिया में होने वाली रैली के लिए कांग्रेसियों को खासी मशक्कत करनी पड़ी। सोनिया ने प्रदेश में एकमात्र सभा की और वह भी कांग्रेस के गढ़ में। पहले उनकी रैली बिलासपुर में होने वाली थी, जिसे बाद में टाल दिया गया। यहां भी लोग आशा के अनुरूप मौजूद नहीं थे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की कांग्रेस के गढ़ में होने वाली रैली में लोगों का नहीं आना कांग्रेस की प्रदेश में खस्ताहाल स्थिति को साफ करता है।

प्रदेश में भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की रैलियों में कुछ भीड़ देखने को जरूर मिली लेकिन यह भी उनके कद को देखते हुए कम ही आंकी गई। आखिर भाजपा और कांग्रेस की रैलियों में जनता की भागीदारी क्यों नहीं हो रही है, यह राजनीतिक दलों की समा से परे है। इसके लिए मौसम को जिम्मेदार तो नहीं ठहराया जा सकता लेकिन कुछ हद तक धान की कटाई जरूर जिम्मेदार है। साथ ही कार्यकर्ताओं के चुनाव की तैयारी में लगे होने के कारण भीड़ का जुगाड़ कौन करता। ऐसे में नेता हाथ मलते रैलियों और सभाओं से वापस आ गए।

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