Thursday, November 13, 2008

गढ़-गढ़ में सगे-संबंधी

रविशंकर शुक्ल से मध्यप्रदेश की कहानी शुरू होती है। उनके बेटों विद्याचरण और श्यामाचरण शुक्ल इस कहानी को आगे बढ़ाते रहे हैं। छत्तीसगढ़ इसी मध्यप्रदेश से कटकर बना है, इसलिए परिवार वाद के लिए उतना ही पुराना है, जितना पुराना विद्या भैया का राजनीति से संबंध। इस बार लेकिन कांग्रेस में ही नहीं भाजपा में भी रिश्तेदारों को टिकट बांटने की हदें टूटीं हैं। पिछली हार नेता-पुत्र को टिकट दिलाने में बाधक नहीं रही। जो भी कसौटियां थीं, वे दूसरों के लिए थीं। नेता के परिवार वालों के लिए तो मन उदार था और उन पर वरदहस्त था।

मृगेंद्र पांडेय


दो करोड़ की आबादी वाले आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में भाई-भतीजावाद का इस कदर बोलबाला है कि यहां दो बड़े राजनीतिक दलों ने दो दर्जन से ज्यादा नेताओं के बेटे और उनके सगे संबंधियों को टिकट दे डाला। इन दलों पर सगे संबंधियों को टिकट देने के आरोप लगातार लगते रहे हैं। इसके कारण कई बड़े नेताओं ने पार्टियों से तौबा भी कर लिया, लेकिन यह कम नहीं हुआ और कमोबेश हालात जस के तस बने हुए हैं। पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र की बात की जाए तो वह किसी भी दल में नजर नहीं आ रहा है। इसका एक बड़ा कारण पार्टियों में केंद्रीयकरण जसी व्यवस्था है। कांग्रेस में जहां सभी निर्णयों पर गांधी परिवार या आलाकमान की ही अंतिम मुहर लगती है, वहीं भाजपा भी इससे अछूती नहीं है। इनके निर्णयों में संघ परिवार का खासा दखल रहता है। देश की एक बड़ी राजनीतिक पार्टी में तो टिकटों की बोली लगाए जाने का आरोप अखबारों की सुर्खियां बन रहीं हैं।


अब बात छत्तीसगढ़ की करते हैं। आजादी के बाद से ही अविभाजित मध्यप्रदेश में रविशंकर शुक्ल के बाद उनके बेटे विद्याचरण शुक्ला और श्यामाचरण शुक्ल का दबदबा कायम रहा। मोतीलाल वोरा भी प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि लंबे समय से कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे वोरा आलाकमान में करीबी लोगों में हैं। वहीं प्रदेश की राजनीति में आदिवासी नेता अरविंद नेताम भी कोई कमजोर खिलाड़ी नहीं है। अगर नेताम ने पार्टी का बार-बार दामन न छोड़ा होता, तो वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री भी हो सकते थे। इस चुनाव में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के बेटे अमितेश शुक्ल को पार्टी ने राजिम से मैदान में उतारा है। हालांकि वे पिछला चुनाव हार गए थे। इसी तरह मोतीलाल वोरा के बेटे अरुण वोरा को भी पार्टी ने पिछला चुनाव हारने के बावजूद टिकट से नवाजा। यही हाल आदिवासी नेता अरविंद नेताम का है। कांग्रेस से कई बार अंदर बाहर करने के बावजूद वे अपनी बेटी प्रीति नेताम को टिकट दिलाने में सफल रहें हैं। प्रीति कांकेर से कांग्रेस की उम्मीदवार तो हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनका खासा विरोध हो रहा है। लोगों का मानना है कि वे एक बाहरी प्रत्याशी हैं। दिल्ली में रहने वाली प्रीति अगर इस मुद्दें को दबाने में असफल होती हैं तो पार्टी के हाथ से यह सीट निकल सकती है।


छत्तीसगढ़ में भाई-भतीजावाद का सही उदाहरण अजीत जोगी से मिल सकता है। प्रदेश में जोगी एकमात्र ऐसे उम्मीदवार है, जो पति-पत्नी दोनों चुनावी अखड़े में हैं। अजीत जोगी जहां मरवाही से भाग्य आजमा रहे हैं तो उनकी पत्नी रेणू जोगी कोटा से उम्मीदवार है। ऐसा नहीं है कि जोगी अपनी पत्नी को ही टिकट दिलाने में सफल रहे हैं। उन्होंने अपने कई करीबी लोगों को भी टिकट दिलाया। गीता देवी सिंह को टिकट देने के बारे में कहा जाता है कि सोनिया गांधी ने खुद हस्तक्षेप करके उनको टिकट दिलाया। उनका कहना था कि गीतादेवी के पति पूर्व सांसद शिवेंद्र बहादुर का पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से अच्छे संबंध थे, इसलिए पार्टी ने उनको टिकट दिया। अपने परिवार वालों को टिकट दिलाने में कई सांसद और पूर्व विधायक भी सफल रहे हैं। पूर्व सांसद वासुदेव चंद्राकर की बेटी प्रतिभा चंद्राकर, पूर्व विधायक हुल्लास राम मनहर की बेटी पदमा मनहर, रविंद्र चौबे, ओंकार शाह, टीएस सिंहदेव, योगीराज सिंह और देवेंद्र बहादुर सिंह हैं।


ऐसा नहीं है कि परिवार के आधार पर कांग्रेस में ही टिकटों का बंटवारा किया गया है। भाजपा कांग्रेस से पीछे तो है लेकिन उसमें भी आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिनके परिवार के लोगों की प्रदेश की राजनीति में खासा दखल रहा है। प्रदेश भाजपा में सबसे ताकतवर खेमे का प्रतिनिधित्व करने वाले लखीराम अग्रवाल के बेटे अमर अग्रवाल बिलासपुर से मैदान में है। रमन सिंह सरकार में वे वित्त मंत्री थे। रायपुर शहर से पूर्व विधायक और संघ परिवार में खासी दखल रखने वाली कुसुमताई उपासने के बेटे सच्चिदानंद उपासने को पार्टी ने रायपुर उत्तर से उम्मीदवार बनाया है। आदिवासी सांसद बलीराम कश्यप भी अपने बेट केदार कश्यप को उम्मीदवार बनवाने में सफल रहे हैं। रायपुर के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश बैस जो भाजपा को बहुमत मिलने के बाद मुख्यमंत्री के दावेदारों में थे, उन्होंने भी अपने परिवार के लोगों को चुनावी वैतरणी में उतारा है। उनके रिश्तेदार नारायण चंदेल मैदान में हैं। अंबिकापुर से भाजपा के कद्दावर नेता प्रभुनाथ त्रिपाठी अपने बेट रविशंकर त्रिपाठी को टिकट दिलाने में सफल रहे हैं।


इसके साथ ही भाजपा और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने अपने करीबी सहयोगियों को भी टिकट दिलाया। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी अपने खास रहे युवक कांग्रेस के अध्यक्ष योगेश तिवारी को भी रायपुर दक्षिण से टिकट दिलाने में सफल रहे। वहीं विद्याचरण शुक्ल अपने करीबी कुलदीप जुनेजा को टिकट दिलाने में सफल रहे। 90 विधानसभा सीट वाले छत्तीसगढ़ में दो दर्जन से ज्यादा लोगों को टिकट दिलाने में करीबी और भाई-भातीजावाद का चलन उन लोगों के लिए खतरनाक है, जो देश की राजनीति को एक सही दिशा में ले जाने का प्रयास करना है। इस तरह के चलन पर रोक नहीं लगाई गई, तो वह दिन दूर नहीं जब राजनीति में अच्छे और होनहार लोगों को खोजना मुश्किल हो जाए।

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