Monday, November 30, 2009

ये कैसा समाजवाद

फोर्ब्स ने अपनी एक विशेष रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि कि भारत में सिर्फ 100 धनकुबेरों की कुल हैसियत 276 अरब डॉलर के बराबर है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब एक चौथाई है। 100 करोड़ से अधिक की आबादी वाले देश में धनकुबेरों की बढ़ती संख्या और उनमें ज्यादा से ज्यादा धन संग्रहण करने की लिप्सा चिंता का विषय है। यह कतई गर्व करने का विषय नहीं है। हमारे देश के बारे में यह भी सत्य है कि यहां 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और उनका जीवन स्तर में अभी पर्याप्त सुधार आना बाकी है, ऐसे समय में मात्र 100 उद्योगपतियों द्वारा देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ती दखलंदाजी, कहीं देश के लिए घातक न हो जाए। सरकार को ऐसी चीजों को रोकने के लिए किस तरह के कदम उठाने चाहिए।

सदस्यों से अनुरोध है कि उद्योगपतियों की धनसंग्रहण और उनके नागरिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व अपने विचार व्यक्त करें।

सचिन जैन
भोपाल

आश्चर्यजनक है कि हम यह याद नहीं रख रहे हैं कि ये तमाम सज्जन पूंजीपति कैसे बने? ये सभी सामाजिक संसाधनों का अनैतिक निजीकरण करके, राज्य को भ्रष्ट बनाकर, और सामाजिक ज्ञान-विज्ञान के ढाँचे को तहस नहस करके पूंजीपति बने हैं. समाज में गरीबी, असामनता, हिंसा और भ्रस्टाचार बढाकर, अब यही समूह समाज कि उन्नति करने, गरीबी दूर करने और भुखमरी को ख़त्म करने की प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं.

इनका सबसे पहला सामाजिक उत्तरदायित्व यही है कि ये समाज से चीनी गई पूँजी समाज को लौटाएं. समाज से समाज की संपत्ति चीन कर समाज को दान देने के ढोंग का नाम ही सी एस आर या कहने कि सोशियो - कारपोरेट रेस्पोंसिबिलिटी है.

और सरकार को तत्काल यह जांचना चाहिए कि यह धन आया कहाँ से और कैसे?


Rusen Kumar
आदरणीय सचिन जैन जी ने सही बात उठाई है। इसी संदर्भ में आज इकनामिक टाइम्स- 24 नवंबर 2009 - इंटरनेट संस्करण में सौविक सान्याल ने एक खबर दी है जिसमें यह कहा गया है कि कंपनी मामलों का मंत्रालय एक ऐसे कोड पर विचार कर रहा है। इसमें मुनाफा कमाने वाली सभी कंपनियों के लिए एक निर्धारित रकम कंपनी की सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर)(कारपोरेट सोशियल रिस्पांसिबिलिटी) से संबंधित गतिविधियों पर खर्च करना अनिवार्य कर दिया जाएगा।

इस विषय को और ज्यादा गहराई से समझने के लिए यह खबर मददगार साबित हो सकती है। सदस्यों से अनुरोध है कि इस विषय पर अपने विचार लिखें। ताकि इस विषय ज्यादा जानकारी संग्रहित हो सके। इकनामिक टाइम्स के अनुसार, एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि सीएसआर पर खर्च की जाने वाली यह रकम कंपनियों के कुल कारोबार या उनके शुद्ध मुनाफे के हिसाब से तय की जा सकती है। प्रस्तावित कोड में सरकार यह भी प्रावधान कर सकती है कि अगर कोई कंपनी एक सीमा से अधिक सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करती है तो उसे इंसेंटिव दिया जाए।

अखबार ने लिखा है, सरकार की योजना यह है कि सीएसआर से संबंधित इस खर्च के प्रस्ताव को सिफारिश की जगह सुझाव के तौर पर जारी किया जाए। नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि इससे कंपनियों को सीएसआर संबंधी गतिविधियों को पूरा करने में मदद मिलेगी। इस समय एक संयुक्त संसदीय समिति इस मामले पर विचार कर रही है और कोई फैसला होने के बाद सरकार फंड के इस प्रस्ताव को कंपनी विधेयक 2009 में जोड़ देगी। इस समय के प्रावधानों के अनुसार देश में कंपनियों को अपनी आय का एक निर्धारित हिस्सा सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करना पड़ता है।

अखबार ने लिखा है, अगर यह प्रस्ताव लागू हुआ तो देश की निजी कंपनियां सीएसआर गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग ले सकेंगी। इस समय तकरीबन हर क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियां अपने शुद्ध मुनाफे की करीब दो फीसदी रकम सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करती हैं। अखबार लिखता है, प्रस्तावित कोड में सरकार यह भी प्रावधान कर सकती है कि अगर कोई कंपनी एक सीमा से अधिक सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करती है तो उसे इंसेंटिव दिया जाए। सरकार ने एक ड्राफ्ट पेपर तैयार कराने के लिए औद्योगिक संस्था फिक्की की मदद ली है। फिक्की अगले कुछ दिनों में एक ड्राफ्ट पेपर तैयार कर सरकार को पेश करेगा जिससे उन कंपनियों को इंसेंटिव देने के बारे में विचार किया जाएगा जो सीएसआर के लिए योगदान कर रही हैं।

अगले महीने होने वाले कॉरपोरेट वीक में इस आशय से संबंधित विवरण पेश कर दिया जाएगा। कॉरपोरेट वीक में सरकार और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के बीच सीधी बातचीत होती है। इसमें समग्र वृद्धि और सतत विकास के लिए इंडिया इंक की प्रतिबद्धता को मजबूत बनाने के बारे में चर्चा की जाती है। कंपनी मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल में कहा था कि सीएसआर गतिविधियों में शामिल होने के लिए इंडिया इंक को राजकोषीय राहत दी जा सकती है। इस कोड से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया, 'उद्योग जगत में सीएसआर गतिविधियों में संलिप्तता बढ़ाने को लेकर सकारात्मक राय है क्योंकि इसका संबंध उनके कारोबार से भी है।'

अखबार ने लिखा है, कंपनियों द्वारा सामाजिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए आगे आने के बाद अब सरकार ने भी उनकी मदद करने के लिए कदम उठाए हैं। नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर उस व्यक्ति ने बताया कि अब चूंकि सरकार कंपनियों को राजकोषीय प्रावधान के जरिए मदद देने की तैयारी कर रही है, कंपनियों को इसका फायदा उठाने के लिए आगे आना चाहिए।

इकनामिक टाइम्स के अनुसार, कंपनी मामलों के मंत्री खुर्शीद ने पहले कहा था कि कंपनियों को सीएसआर गतिविधियों के लिए आकर्षित करने के लिए सीएसआर क्रेडिट विकसित करना एक महत्वपूर्ण कदम है। यह उसी कार्बन क्रेडिट की तर्ज पर होगा जिसमें कंपनियों को ऊर्जा संरक्षण के लिए क्रेडिट दिए जाते हैं। कंपनियों को इंसेंटिव देने की प्रक्रिया पर अभी फैसला नहीं लिया गया है, लेकिन इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों के अनुसार यह कंपनियों द्वारा कमाए गए क्रेडिट प्वाइंट्स के हिसाब से राजकोषीय प्रावधान के अनुरूप हो सकता है।