आखिर अजहरुद्दीन से बैन हटाने की जरूरत क्यों?
मृगेंद्र पांडेय
अब सरकार हमारी है। सांसद भी बन गए हैं। तो आरोपों को भी लगे हाथ हटा ही लें। अगर यही होता रहा तो देश के सारे अपराधी पहले सांसद बनेंगे फिर अपने आरोपों को खत्म कराने के लिए पार्टी के सांसदों को दबाव बनाने के लिए भेज देंगे। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के सांसदों ने शरद पवार से मिलकर अहजहरुद्दीन पर मैच फिक्सिंग के लगे आरोपों को हटाने की मांग की है। जितिन प्रसाद, राज बब्बर, संजय सिंह और क्रिकेट के नेता राजीव शुक्ला जैसे नेताओं को अब आरोपी अजहरुद्दीन सही लगने लगे हैं। हो भी क्यों न, उत्तर प्रदेश में मृत पड़ी कांग्रेस ने अचानक वहां से 21 लोकसभा सीट जीत ली। अजहरुद्दीन जो हैदराबाद के हैं, उन्होंने मुरादाबार में कांग्रेस का परचम लहराया। जो कांग्रेस के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं था। कुछ दिनों पहले तक जिस अजहर को पूरा देश पैसे लेकर देश को क्रिकेट में हरानेवाला मानती थी, अचानक ऐसा कौन सा बदला आ गया कि उन पर से बैन हटाने की बात की जाने लगी। क्या लोकसभा में पहुंचने पर सारे आरोप धूल जाते हैं। अगर ऐसा है तो फिर शाहबुद्दीन से लेकर सूरजभान तक सभी के आरोपों को क्यॊं नहीं खत्म कर दिए गए।
क्या सरकार में आने के बाद कांग्रेस महंगाई बढ़ाने के साथ-साथ अब आरोपियों पर लगे अपराध को भी हटाने का काम करने लगी है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर माडल जेसिका लाल की हत्या के आरोप में सजा काट रहे हरियाणा के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विनॊद शर्मा के बेटे मनू शर्मा की पैरोल के लिए कांग्रेस की सीएम शीला दीक्षित ने सिफारिश कर दी। मनू की पैरोल पर मात्र 20 दिन में फैसला कर दिया गया। यही नहीं लंबे समय से दिल्ली सरकार के पास 98 याचिका पैरोल के लिए पड़ी है, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं किया गया। हाईकोर्ट ने कल ही दिल्ली सरकार को लताड़ लगाई है। जब हाईकोर्ट सरकार को लताड़ लगा रही थी, उसी समय कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल आईसीसी के उपाध्यक्ष शरद पवार के पास अजहर से बैन हटाने की गुहार लेकर पहुंचा था। कांग्रेस के नेता पवार पर यह दबाव बना रहे थे कि सांसद बनने के बाद अजहर के दाग धो दिए जाने चाहिए। यह ठीक वैसा ही है जैसा गांव की कहावत, जिसकी लाठी उसकी भैंस। अब जब कांग्रेस की केंद्र में दोबारा सरकार बन गई है। उसे लग रहा है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कुछ अच्छा किया जा सकता था, ऐसे में लगे हाथ अजहर का भी भला हो जाए। क्योंकि स्टार प्रचारक तो वे ही होंगे। ऐसे में दागी और स्टार प्रचारक दोनों जमेगा नहीं।
दरअसल, अजहरुद्दीन जब चुनाव लड़ने की योजना बना रहे थे, तब भी उनके जेहन में कुछ ऐसा ही करने का ख्याल रहा होगा। यही कारण था कि वे लगातार कहते थे कि पार्टी जहां से भी टिकट देगी, वे चुनाव लड़ लेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि उनको तो मात्र संसद में पहुंचना था। उनके लिए मुरादाबाद हो या हैदराबद सभी जगह की जनता समान थी। क्योंकि उनका जनता के साथ तो कोई सरोकार था नहीं, तो चुनाव क्षेत्र कुछ भी हो। कांग्रेस को तो इस बात की उम्मीद ही नहीं थी कि लोकसभा चुनाव में अजहरवाली सीट निकल जाएगी। ऐसे में पार्टी ने उन पर आसानी से दांव लगा दिया। अब वही अजहर कांग्रेस पार्टी से दांव लगाने की कीमत मांग रहे हैं। उनकी दांव की कीमत जितिन प्रसाद और संजय सिंह जैसे नेताओं को भी चुकानी पड़ रही है, जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं, यह कुछ अटपटा जरूर लग रहा है क्यॊंकि दागी के समर्थन में उनकॊ सफाई देनी पड रही है। सवाल यह भी है कि अगर यह सब राहुल गांधी की शह पर हो रहा है तो क्या यह जायज है।
उत्तर प्रदेश से ही लोकसभा में सोनिया गांधी जी और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी आते हैं। शरद पवार को इस बात की भनक भी लग जाए कि दोनों में से कोई एक भी अजहर से बैन हटाने के बारे में सोच भी रहा है, तो वे बिना किसी से पूछे ही इस कारनामे को अंजाम दे देंगे। लेकिन खुशी की बात है कि दोनों में से किसी ने भी फिलहाल ऐसी कोई मंशा जाहिर नहीं की है। अगर भविष्य में ऐसा करते हैं तो हाल के कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास में इससे दुखद और कुछ नहीं होगा।
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