Saturday, November 7, 2009

मैं इसलिए घूमता रहता हूं कि यमराज आए और मैं घर में न मिलूं

राजस्थान में प्रभाष जोशी की अंतिम यात्रा, भीलवाड़ा के गांवॊं में नरेगा की सोशल आडिटिंग के दौरान लिया था गांवॊं का जायजा

धर्मेद्र मीणा
यह मैं पूरे दो के साथ तो नहीं कह सकता, लेकिन मेरे ध्यान में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी अपनी अंतिम राजस्थान यात्रा पर भीलवाड़ा आए थे। दिन 11-12 अक्टूबर का रहा होगा। मैं पहली बार प्रभाष जोशी को अपने सामने पा रहा था। जनसत्ता के लेख में तो कई बार उनको पढ़ा। खासतौर पर क्रिकेट में सचिन के शतक पर पहले पन्ने की एंकर में। सचिन के शतक की तरह कुछ अलग ही होता था प्रभाष जी का लेख। भीलवाड़ा में भी प्रभाष जी अपने लेख की तरह अलग अंदाज में नजर आए।

देश में नरेगा के अब तक के सबसे बड़े सोशल आडिट में भाग लेने के लिए प्रभाष जी भीलवाड़ा आए। एक मित्र ने उनसे सवाल किया कि आप इतनी ज्यादा उम्र होने के बावजूद कैसे घूमते रहते हैं। तपाक से प्रभाष जी ने कहा कि मैं घूमूंगा नहीं तो यमराज पकड़ लेंगे। यमराज मेरे घर के पते पर मेरा वारंट लेकर आते हैं मैं उनको मिलता ही नहीं। जब वे मेरे घर पहुंचते हैं तो उस समय मैं भोपाल में रहता हूं। जब भोपाल पहुंचते हैं तो मैं इंदौर में होता हूं और यमराज लौटकर वापस चले जाते हैं।

उम्र के इस पड़ा पर भी उन्हे इस बात का दुख था कि वह सोशल आडिटिंग के समय भीलवाड़ा के गांवॊं में नहीं जा सके। इस दौरान उन्होंने राजस्थान में नरेगा को रोल माडल बनाने की बात कही। यह तो रही प्रभाष जी की राजस्थान यात्रा की। जिस दिन प्रभाष जी ने अंतिम सांसे ली, उस दिन भारत और आस्ट्रेलिया के बीच क्रिकेट मैच हो रहा था। जिस समय सचिन ने शतक मारा, उस समय मैं और मेरे दोस्त कह रहे थे कि जनसत्ता की एंकर तो फिक्स हो गई। लेकिन सुबह ही भड़ास फार मीडिया की मैसेज सेवा ने बताया कि प्रभाष जी नहीं रहे।

पत्रकारिता में हिंदी का मान बढ़ाने वाले प्रभाष जी को शत-शत नमन

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