Friday, December 26, 2008

बयानों में बीते एक महीने

आखिर इस देश में इन नेताओं को कब तक बर्दाश्त किया जाएगा। ऐसी सरकार जो देश में 60 घंटे तक लगातार आतंक मचाने वाले लोगों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने में सक्षम न हो। ऐसी सरकार जो सिर्फ बयान ही बयान दे। अब समय जनता के जागने का आ गया है। आने वाले समय में जनता अगर नहीं जागती है तो ये निक्कमे राजनेता सिर्फ बयान देंगे और सैकड़ों लोग अपनी जान।

मृगेंद्र पांडेय

एक महीने बीत गए। मुंबई को आतंकियों ने लहुलूहान किया था। मुंबई के लोगों ने 60 घंटे लगातार गोलियों की दहशत में बिताए। कई आला और जांबाज अधिकारियों ने अपनी जान गंवाई। गोलियों की गूंज में कई बड़े राजनीतिक उलटफेर हुए। प्रदेश सरकार के मुखिया से लेकर सुरक्षा की जिम्मेदारी रखने वाले तमाम लोगों को आनन-फानन में बदला गया। सरकार ने यह दिखाने की कोशिश की कि वह बहुत कुछ कर रही है। संसद में आतंक रोकने के लिए नए कानून भी बनाए गए। वैसा कानून जिसका यूपीए सरकार लगातार विरोध कर रही थी। बावजूद इसके अगर कुछ नहीं हुआ तो यह कि हमले में कौन शामिल था। हमले को आतंकियों ने कैसे अंजाम दिया। 60 घंटे तक लोगों को दहशत में रखने के लिए आखिर इतनी बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारुद कहां से आए। क्या पाकिस्तान दोषी है। ऐसे एक महीने में कम से कम तीस सवाल तो सरकार के सामने होंगे ही जिनका जवाब सरकार को देना होगा।

तीस दिन में सरकार ने आखिर क्या किया। इसका रिपोर्ट कार्ड अगर जनता के सामने रखने को कहा जाए तो इन दिनों में सिर्फ यह हुआ कि पाकिस्तान ने भारत को धमकाया और भारत ने पाकिस्तान को कमजोर न समझने की नसीहत दी। दोनों ओर से बयानों का दौर चलता रहा और जनता यह सोचती रही कि सरकार कुछ कर रही है। जब-जब एयरपोर्ट और समुद्री मार्गों की चौकसी बढ़ाने की खबर आई, लोगों के दिलों ने एक डर बढ़ा। ऐसा लगा कि कही युद्ध न हो जाए। लेकिन दोनों देशों की ओर से जारी बयानों ने यह लगातार कहा जाता रहा कि हम लोग जिम्मेदार देश हैं और हमारे यहां लोकतांत्रिक सरकार है। युद्ध कोई विकल्प नहीं है।

दरअसल मामला देश की जनता को गुमराह करने का है। भारत में निकम्मे मंत्री और ब्यूरोक्रेटों का जमावड़ा हो गया है। पाकिस्तान की मीडिया ने यह प्रमाण दिया कि पकड़ा गया एकमात्र आतंकी कस्साब पाकिस्तान का है। लेकिन वहां की सरकार ने मानने से साफ इनकार कर दिया। इस पर देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान को पर्याप्त सबूत पेश कर दिए गए हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि सारे रास्ते खुले हैं। रक्षा मंत्री ने कहा सेना तैयार है। नवनियुक्त गृहमंत्री ने बड़े सधे हुए अंदाज में कहा कि सरकार आतंक से लड़ने को कृतसंकल्प है।

यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी भी बयान देने में नहीं चूकीं। लेकिन एक महीने के बाद जनता को इन नेताओं के बयान के अलावा कुछ नहीं मिला। उन दो सौ परिवारों ने भी इनके सिर्फ और सिर्फ बयान ही सूने, जिनमें अधिकांश बेकारण ही आतंकियों की गोली के शिकार हुए। सेना के जवान जो शहीद हुए उनकी बेइज्जती करने में भी इन नेताओं ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

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