मृगेंद्र पांडेय
भारत में सपने ही सब कुछ होते हैं। विकास के सपने। अच्छे भविष्य के सपने। राजनीति में अच्छे बनने के सपने। गरीब की गरीबी के सपने। दरअसल यहां सपने ही बिकते हैं। इसे भारत की महानता कहें या फिर जनता की उदारता कि वह सपनों में ही सब कुछ पा लेती है। यहां सपने पहली बार नहीं बेचे जा रहे हैं। इससे पहले भी लोगों ने बेचे होंगे। लेकिन इस बार बारी राहुल गांधी की थी। अपनी मां सोनिया गांधी के साथ अमेठी दौरे पर राहुल ने एक बार फिर सपने बेचे।
इस बार कहानी में मायावती के नाम से जुड़ते कलाकार को तरजीह नहीं दी गई। उनके सलाहकारों ने उन्हें सुनिता के दुख में अपने सपनों कीोलक दिखाने की सलाह दी। सुनिता अमेठी लोकसभा की एक महिला है जो खुद तो कपड़े पहनती है, लेकिन उसका बच्चा बिना कपड़ा पहने था। इसके पीछे उसने राहुल गांधी को तर्क दिया कि अगर उसका बच्चा बीमार हो जाएगा तो भी वह उसे दूध पिला सकती है, लेकिन अगर वह बीमार हो जाएगी तो बच्चे को कौन दूध पिलाएगा।
राहुल और उनके रणनीतिकरों के सामने समस्य यह है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कुछ खास नहीं कर पा रही है। उनके सामने एक बड़ा सवाल यह है कि वह कौन से माध्यम हो सकते हैं, जिससे जनता को अपनी ओर, आपनी पार्टी की ओर और कांग्रेस की नीतियों की ओर आकृषित किया जाए। इसी दुविधा में राहुल लगातार बुंदेलखंड, पूर्वाचल और अमेठी का दौरा कर रहे हैं। बुंदेलखंड के दौरे पर राहुल दलितों के घरों में गए। यह उनकी उस वोट बैंक की रणनीति का हिस्सा है, जिस पर अब मायावती का कब्जा है। इस बार भी अमेठी में उन्होंने अपने उसी पुराने वोटर पर निशाना साधा है। उन्हें अपने सपनों के बारे में बताया। और उम्मीद जताई की उनके सपने साकार करने में वह वोटबैंक उनका साथ देगा।
ऐसा नहीं है कि राहुल पहले कांग्रेसी हैं जो सपने बेच रहे हों। उन्होंने अपने भाषण के दौरान ही कह दिया कि उनसे लोगों ने पूछा की आपकी दादी का सपना था, अपके पिता का सपना था, आपका क्या सपना है। राहुल ने अपने सपने लोगों को बताए भी, लेकिन उसमें वहीं बातें थी जो सभी राजनीतिक दल जनता का वोट अपनीोोली में करने के लिए करते हैं। दरअसल राहुल आज भी यह मानकर चल रहे हैं कि जनता केवल कोरे वायदों पर ही कांग्रेस को वोट देगी। लेकिन उन्हें यह समाना होगा कि उत्तर प्रदेश में उनका मुकाबला एक ऐसे दल से है, जो लंबे समय से दलितों और गरीबों की बात करती रही है और अकेले अपने दम पर प्रदेश की सत्ता पर काबिज भी है। ऐसे में उनके सपनों का मुकाबला ऐसे यर्थाथ से है, जिसका सामना सिर्फ कोरे वादों से नहीं किया जा सकता। इसके लिए चाहिए एक सोच, एक दृष्टि, एक विजन और ऐसी नीतियां जिनका असर जमीन स्तर पर तो कम से कम दिखाई देता ही हो।
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