Monday, October 12, 2009

ओबामा शांतिदूत, क्यों मनमोहन में कांटे लगे थे


-रीतेश

12 दिन के लिए नोबेल. ये नोबेल का अपमान है या पतन, ये कहे बिना मैं इतना कहना चाहूंगा कि अगर ईरान के खिलाफ आग न उगलने या चीन के डर से नोबेल शांति पुरस्कार के ही दूसरे विजेता दलाई लामा तक से मिलने से मुंह चुराने वाले को इस लायक समझा गया है तो यह रॉयल फाउंडेशन की गंभीरता पर चोट है.

अगर विश्व शांति के लिए इस साल किसी को नोबेल देना ही था तो अपने मनमोहन सिंह से बेहतर भला और कौन है. और कुछ नहीं तो कम से कम मुंबई हमले के बाद कुछ राजनीतिक दलों और कई समाचार संगठनों के संगठित हल्ला-बोल के बावजूद पाकिस्तान पर हमला न करना क्या विश्व शांति में कोई छोटा योगदान है.

पाकिस्तान पर भारत हमला करता तो कुछ और पड़ोसी मित्र का चोला उतारकर मैदान में देर-सबेर नहीं आ जाते, इसकी कोई गारंटी तो थी नहीं. मनमोहन सिंह ने इतनी दूरदर्शिता का परिचय दिया और पड़ोस में पड़े एक महाशक्ति को भारत पर हमला करने का कोई मौका नहीं दिया, ये क्या वैश्विक शांति में छोटा योगदान है.

आज भास्कर में गिरीश निकम जी ने लिखा है कि उनके पास भी विश्व शांति के लिए गजब का विजन है. उन्हें क्यों नहीं दिया जा रहा है नोबेल. ओबामा को भी तो विश्व को परमाणु हथियारों से मुक्ति दिलाने के विजन के लिए ही पुरस्कार दिया जा रहा है. और तो और, ओबामा ने क्या कहा, वो इस दिशा में लगातार काम करेंगे लेकिन उन्हें नहीं लगता कि उनके राष्ट्रपति रहते, यहां तक कि उनके जिंदा रहते, ऐसा हो पाएगा.

अब ऐसे नोबेल पुरस्कार पाने वाले को चूमने और बधाई देने के अलावा और क्या किया जा सकता है.

No comments: