लोकसभा चुना की उपलब्धियों का जिक्र करें और ममता की बात न हो ऐसा नहीं हो सकता। मनमोहन सिंह की सरकार कैसे बनी और भाजपा कैसे हारी यह भले ही उन दोनों दलों के नेताओं और रणनीतिकारों की समझ में न आ रहा हो, लेकिन ममता से करिश्मे की उम्मीद सभी को थी। लोगों को या कहें कि पश्चिम बंगाल की जनता औरोम दलों को भी दीदी की आंधी का अंदाजा नहीं था।ोम दल लगातार कह रहे थे कि ह कें्र में गैर कांग्रेस गैर भाजपा सरकार बनाएंगे। इससे अलग दीदी ने बंगाल की फिजा में एक नया नारा दिया। ठीक उस तरह जसे आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों और देशभक्तों ने दिया था।
ममता ने लोगों के सामनेोम दलों के 35 साल के शासन के सामने मां, माटी और मानुस का नारा दिया। इसका जनता में इतना असर हुआ कि ‘दो फूलज् एक से बढ़कर 19 सीट पर पहुंच गई। इसे ममता का ही करिश्मा कहेंगे, कि जब पूरे देश ने क्षेत्रीय दलों को जनता ने सिरे से नकाराना शुरू किया, उस समय तृणमूल कांग्रेस अपने शबाब पर है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, केरल जसे प्रदेशों में जनता ने क्षेत्रीय दलों को सिरे से नकार दिया। बिहार के परिणाम तो अप्रत्याशित हैं। रामलिास और लालू के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई। हालांकि नीतीश कुमार और नीन पटनायक की पार्टी ने जीत दर्ज की। बिहार में लंबे समय से व्याप्त अराजकता को कम करने और उड़ीसा की जनता में आत्मशिस पैदा करने के कारण जीत हुई।
ममता की जीत को इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता। ममता ने लोगों में नई उम्मीद, नया जोश, नए जज्बात पैदा किया। उसने लोगों में आश जगाई किोम गढ़ में भी लाल झंडे को उखाड़ा जा सकता है। एक समय ऐसा था जबोम दलों के लिए झंडे बनानेोले लोग दूसरे दलों के झंडे तक नहीं बनाया करते थे।ोल पेंटिंग और पोस्टरों को लोग उखाड़ देते थे। दीदी ने उन लोगों में एक नया जोश भरा। उनको सपनों में लाल गढ़ से बाहर की दुनिया को दिखाई है। उम्मीद का दामन थामकर एक ऐसे आसमान में उड़ने के लिए प्रेरित किया जो पिछले 35 साल में कोई नहीं कर पाया था। यह काम केल ममता ही कर सकतीं थीं। क्योंकि ऐसा करने का माद्दा सिर्फ और सिर्फ उनमें ही है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि लोगों में उम्मीद और नए अरमान भरने के बाद दीदी की नजर राइटर बिल्डिंग पर टिक गई है। दीदी को उम्मीद है कि जनता अब प्रदेश के किास के लिए ‘लाल‘ नहीं ‘नीलेज् झंडे का साथ देगी।
ऐसा नहीं है कि राइटर बिल्डिंग पर नीला झंडा लगाना ममता के लिए काफी आसान होगा। पश्चिम बंगाल में धिानसभा चुना होने में अभी दो साल का समय है। हार के बादोम दलों में जिस प्रकार आत्ममंथन का दौर शुरू हुआ है, ैसा न तो भाजपा में देखने को मिला न ही किसी और दल में।ोम दलों ने स्ीकार किया कि उनके प्रचार का तरीका गलत था। ऐसे में इस बात का अंदाजा लगा पाना कितना सहज है किोम अपने गढ़ को खोने के बाद नई रणनीति बनाने और ममता की आंधी को रोकने के लिए े सारे प्रयास करेंगे। ममता के सामने भी चुनौतियां कम नहीं है। कें्र में दो साल मंत्री रहने के बाद उनको और उनके सांसदों को कम से कम इतना तो करना ही होगा कि जनता को लगे, कि ममता को जिताने का उनका निर्णय सही है। इसके लिए ममता को सेज और निेश जसे मामलों में कांग्रेस से दो चार होना पड़ सकता है।
ममता लगातार सेज और निेश का रिोध करतीं रहीं हैं, जबकि कांग्रेस उसकी पक्षधर रही है। ऐसे में ममता अगर कांग्रेस के साथ खड़ी नजर आतीं हैं तो मामला एकदम उलट हो सकता है।ोम दल भी इसी फिराक में बैठे हैं। दूसरी बात ममता अगर बुद्धदे के किास के माडल को गलत बतातीं हैं और जनता उनको उस रिोध के कारण पसंद करती है तो उनको प्रदेश के किास के लिएोम दलों से अलग एक माडल देना होगा। ममता का यह माडलोम दलों से अलग होगा तो जनता उनके साथ होगी। इसके लिए उनको प्रदेश में औद्योगीकरण करना होगा, लेकिन उन्होंने टाटा को प्रदेश से बाहर करने के लिए लंबा चौड़ा आंदोलन किया। ऐसे में जब वह फिर से औद्योगीकरण की बात करेंगी तो वाम दल उनको घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेंगे। अगर ममता विकास नहीं कर पातीं हैं तो इस बार जनता के सामने किन मुद्दों पर जाएंगी, क्योंकि लोकसभा तो सिंगुर और नंदीग्राम पर जीत लिया, लेकिन अब जब जनता यह कह रही है कि ‘एक आंधी आएगी, दीदी राइटर जाएगीज् उस समय राइटर बिल्डिंग पर कब्जा दीदी के लिए आसान नहीं होगा।
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