Saturday, December 25, 2010

बदलते मतदाताओं की पहली दस्तक

बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद जीते कांग्रेसी, क्या मतदाताओं ने भाजपा से दूरी बनाया
मृगेंद्र पांडेय

छत्तीसगढ़ में नगर पालिका के चुनाव ने कुछ नए संकेत दिए हैं। रमन सिंह की सरकार बनने के बाद से ही किनारे होते जा रही कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली है। मुख्यमंत्री आवास से १५ किलोमीटर दूर भाजपा की सत्ता उड़ गई। बिरगांव नगर पालिका में भाजपा न तो अध्यक्ष पद पर कब्जा कर पाई, न ही पार्षद पद को ही अपनी पाले में लाई। यह संकेत मतदाताओं के बदलते मिजजा की पहली दस्तक है। भाजपा जिस विकास की बात करती है, दरअसल मतदाताओं को वह होता नजर नहीं आ रहा है। अगर विकास की बात ही होती तो यहां छह महीने तक भाजपा का अध्यक्ष था। उसे भी पार्टी ने उम्मीदवार भी बनाया था। फिर भाजपा की हार कैसे हो गई।

भाजपा लगातार छत्तीसगढ़ को विश्वसनीय बताने में लगी है। मुख्यमंत्री रमन सिंह से लेकर अधिकरी-मंत्री सब विश्वसनीय होने का पाठ पढ़ रहे हैं। लेकिन जनता की अदालत उनकी विश्वसनीयता की पोल खोल रही है। बिरगांव में कांग्रेस उम्मीदवार पर करोड़ों रुपए के गबन का आरोप था। उसके जेल जाने को भाजपा ने बड़े जोर-शोर के साथ प्रचारित किया। यही नहीं, कांग्रेस के बड़े नेताओं जैसे विद्या भैया का समर्थन भी उसे नहीं था। बावजूद इसके ओमप्रकाश देवांगन ने जीत दर्ज की। विधानसभा चुनाव में बिरगांव में कांग्रेस को वोट नहीं मिलने के कारण कांग्रेस के कद्दावर मंत्री सत्यनारायण शर्मा को हार का सामना करना पड़ा था।

अब बात भिलाई नगर निगम की। यहां भी कांग्रेस उम्मीदवार निर्मला यादव ने भाजपा की हेमलता वर्मा को पांच हजार से ज्यादा वोट से हराया। हेमलता पर भिलाई की दिग्गज भाजपा नेता सरोज पांडे का हाथ था। प्रचार अभियान के दौरान सरोज ने हेमलता के पक्ष में पूरा जोर लगाया। जबकि निर्मला यादव को मोतीलाल वोरा के समर्थन के कारण टिकट दिया गया। जिस समय निर्मला को टिकट दिया गया, रायपुर में कांग्रेस भवन के बाहर पूर्व महापौर नीता लोधी डेरा डाले हुए थी। निर्मला के नाम पर पहली नाराजगी बदरुद्दीन कुरैशी ने जताई, जब बैठक में उनका नाम आया। नीता ने निर्दलीय पर्चा भी भर दिया। बावजूद इसके जीत निर्मला की ही हुई।

बिरगांव और भिलाई के चुनाव बताते हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार का पार्टी में ही भारी विरोध था। दोनों बड़े नेताओं के गले नहीं उतर रहे थे। नेताओं ने प्रचार में भी पूरी तरह से साथ नहीं दिया। तो क्या यह माना जाए कि दोनों कांग्रेसी व्यक्तिगत छवि के आधार पर जीते हैं। यह सच नहीं हो सकता है, क्योंकि ओमप्रकाश पर गबन का आरोप था और निर्मला की कोई अलग पहचान नहीं थी। मतलब साफ है कि मतदाताओं ने अपना काम करना शुरू कर दिया है। अब बारी भाजपा की है। अगर वह मतदाताओं की नब्ज को भांप जाती है, तो तीसरी पारी आसान होगी, वर्ना जनता के लिए कांग्रेस एक आसान विकल्प है ही।

1 comment:

लाल बुझक्कड़ said...

Gazab.... Shaandar vishleshan kiya hai chunavon ka. Lage raho...