मृगेंद्र पांडेय
पिछले २७ साल में जब से यह जानने लगा हूं कि क्या सही है और क्या गलत तब से बनारस के बारे में सोच रहा हूं। पिछले कुछ साल से भले ही बनारस में नहीं रहा, लेकिन उसके पल-पल की खबर लेते रहा हूं। संकट मोचन वाले हनुमान जी पर जब संकट के बम फटे थे, तब मैं दिल्ली में था। रेलवे स्टेशन से लेकर पूरे शहर में खून ही खून नजर आ रहा था। समाचार चैनल हर पल की रिपोर्ट दे रहे थे। लोगों को लगा कि अयोध्या मामले के बाद एक बार फिर बनारस में विवाद की स्थिति पैदा हो जाएगी, लेकिन बनारस की समझ ने लोगों की आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया। उस समय भी बनारस ने बताया था कि उसकी आत्म उन आतंकियों से कई गुना ज्यादा मजबूत है, जो सिर्फ हैवानियत की भाषा जानते हैं।
मंगलवार को भी ऐसा ही करने की कोशिश की गई। बनारस में गंगा आरती का अपना ही महत्व रहता है। दूर-दूर से लोग सिर्फ गंगा आरती को देखने के लिए आते हैं। लोगों की आस्था से जुड़ी है गंगा आरती। उस आस्था को तोडऩे की कोशिश की गई। पहली बार बाबा विश्वनाथ, फिर संकट मोचन और अब गंगा मईया। हर बार उनको मुंह की खानी पड़ी। बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो चीफ मार्क टूली ने अपनी एक किताब में अयोध्या हादसे के बाद लिखा था कि बनारस में कोई भी दंगा नहीं चाहता। न तो हिंदू अयोध्या में मंदिर बनाने के लिए पहल कर रहे हैं, न ही मुस्लिम मस्जिद के लिए जेहाद छेडऩे की तैयारी में है। मतलब साफ था कि हमारा बनारस किसी के बहकावे में आने वाला नहीं है।
लंबे समय बाद हुए धमाकों ने सरकार और खूफिया विभाग को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर वे सुस्त हैं। उत्तर प्रदेश में चुनावी बयार शुरू होने वाली है। इस धमाके को उस चुनावी बयार की दस्तक के रूप में भी देखा जा रहा है। बनारस के लोगों को लगने लगा है कि यह राजनीतिक लड़ाई है। ऐसे में साफ है कि राजनीतिक दल इसका लाभ लेने की पूरी कोशिश करेंगे। लेकिन हमें उम्मीद है कि हमारे बनारस का रस बना रहेगा, चाहे वह आतंकी लड़ाई हो या फिर राजनीतिक।
No comments:
Post a Comment