Friday, May 7, 2010

निर्दोष नहीं है निरुपमा का प्रेमी


विष्णु गुप्त

शायद सिर्फ प्रियभांषु को मालूम था कि निरूपमा ऑनर किलिंग का ग्रास बनने जा रही है। अगर उसे आभास था तो क्या उसने निरूपमा की जान बचाने के लिए पुलिस और हाईकोर्ट में गुहार लगायी? वह चुपचाप निरूपमा को ऑनर किलिंग के ग्रास बनते हुए देखता रहा। प्रियभांषु कब चिल्लाया? उसने महिला आयोग और पत्रकार संगठनों का दरवाजा कब खट-खटकाया? मीडिया में अपनी प्रेम कहानी कब खोली? जब निरूपमा की हत्या हो चुकी थी।

निरूपमा अब इस दुनिया में नहीं है। इसलिए उसके प्रति प्रियभांषु कितना समर्पित था और ईमानादार था, इसे भी शक की निगाह से देखी जानी चाहिए। कही प्रियभांषु निरूपमा के साथ दोहरा खेल तो नहीं खेल रहा था। मोहरे से मोहरे लडाने में तो वह नहीं लगा था। निरूपमा के गर् को वह उसके घर वालों के माध्यम से ही निपटाना चाहता था क्या? क्योंकि गर्भ का प्रश्न हल हो जाने के बाद प्रियभांषु शादी के झमेले में पडने से भी बच सकता था। अगर ऐसी धारणा सही हो सकती है तो निरूपमा अपने परिजनों के साथ ही साथ अपने प्रेमी प्रियभांषु की भी साजिश का शिकार हुई है.

प्रेमी प्रियभांषु रंजन पर एक और गंभीर लापरवाही सामने आती है। प्रियभांषु के शब्दों में निरूपमा पाठक के परिजन किसी भी परिस्थिति में शादी नहीं होने देने के लिए कटिबद्ध थे। इसके लिए निरूपमा के परिजन प्यार, लोकलाज से लेकर इज्जत का भी हवाला देकर निरूपमा को प्रियभांषु से अलग करने की कोशिश कर चुके थे। निरूपमा पर उसके परिजनों ने कठोरता भी बरती थी। प्रियभांषु रंजन की ये सभी बातें सही हैं। ऐसी प्रक्रिया चली होगी। ऑनर किलिंग से पहले निरूपमा के परिजन ये सभी हथकंडे जरूर अपनाये होंगे। जो परिवार और जो घराना ऑनर किलिंग कर सकता है वह परिवार और घराना उसके पहले अपनी इज्जत का हवाला देकर कुछ भी कर सकता है। पिता द्वारा निरूपमा पाठक को लिखी गयी चिट्ठी भी इसकी गवाही देती है। यह सब यहां यह जताने के लिए तथ्य और ऑनर किलिंग की स्थितियां बतायी जा रही है ताकि यह स्पष्ट हो सके कि निरूपमा खतरे से घिरी हुई थी। खतरा उसके परिजनों से ही था। यह भी ज्ञात हुआ है कि वह कई महीनों से घर नहीं गयी थी। इस खतरे को देखते हुए भी निरूपमा अपने मां-पिता से मिलने झारखंड की कोडरमा शहर अपने घर गयी और जाने दिया गया। यह तो पहले से ही स्पष्ट था कि उसके परिजन किसी भी खतरनाक और लोमहर्षक प्रक्रिया को अपना सकते हैं। ऐसी स्थिति में प्रियभांषु रंजन को निरूपमा को कोडरमा जाने से रोकना चाहिए था। यह भी स्पष्ट हुआ है कि निरूपमा के प्रियभांषु के साथ प्यार और शादी के लिए जिद करने की जानकारी परिजनों को थी पर वह चार महीने की गर्भवती थी यह जानकारी निरूपमा के घर आने पर ही उसके परिजनो को हुई होगी। गांवों और कस्बायी महिलाओं को एक-दो दिन के गर्भ के लकक्षण भी पता चल जाते है, वह तो चार माह की गर्भवती थी।

प्रियभांषु कब चिल्लाया? वह महिला आयोग और पत्रकार संगठनों का दरवाजा कब खट-खटकाया? मीडिया कब अपनी खतरनाक प्रेम कहानी कब खोली? जब निरूपमा की हत्या हो चुकी थी। जब निरूपमा इस दुनिया में रही नहीं। ऐसी मुहिम का अब निरूपमा के लिए क्या मतलब? निरूपमा के परिजनों को सजा हो ही जायेगी पर निरूपमा की जान वापस आयेगी क्या? यह लापरवाही प्रिय ांषु जान कर की है या अनजाने में। इस तथ्य का पता लगाना मुश्किल है। पर उसने खतरनाक ढग से लापरवाही बरती ही है।

निरूपमा ऑनर किलिंग की ग्रास बनने की ओर अग्रसर हो रही है। ऐसी जानकारियां निरूपमा अपने प्रेमी प्रियभांषु रंजन को देती रही थी। एसएमएस और मोबाइल कॉल के द्वारा। टेलीविजनों और प्रिंट मीडिया में भी निरूपमा द्वारा प्रियभांषु रंजन को भेजे गये एसएमएस दिखाया गया। एसएमएस में निरूपमा लिखती है कि कोई एक्सटीम एक्शन मत लेना। यानी निरूपमा को अपनी हत्या की आशंका ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास हो गया था। वह जान रही थी कि अब उसका बचना मुश्किल है। उसके भाई और भाई के दोस्त उस पर नजर रखे हुए थे। मां और पिता वापस दिल्ली आने देने के लिए किसी भी परिस्थिति में तैयार नहीं थे, जबकि निरूपमा दिल्ली आना चाहती थी और अपना कैरियर जारी रखना चाहती थी। ऐसी सूचना मिलने पर तत्काल उसे सहायता की जरूरत थी। पर निरूपमा को सहायता मिली नहीं। निरूपमा की जान खतरे में है यह जानकारी सिर्फ और सिर्फ प्रियभांषु रंजन को थी। प्रियभांषु रंजन ने निरूपमा को सुरक्षा दिलाने और उसकी जान बचाने की कोई कार्रवाई नहीं की। प्रियभांषु रंजन झारखंड ओर कोडरमा पुलिस से निरूपमा की जान बचाने की गुहार लगा सकता था। प्रत्रकार संगठनों को एक महिला पत्रकार की जान बचाने के लिए तत्काल मुहिम शुरू करने के लिए कह सकता था। इसके अलावा वह हाईकोर्ट जैसे जगह पर प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर निरूपमा को उसके परिजनों के चंगुल से मुक्त कराने का सफलतम प्रयास कर सकता था। क्या प्रियभांषु ने निरूपमा की जान बचाने के लिए पुलिस और हाईकोर्ट में गुहार लगायी? वह चुपचाप निरूपमा को ऑनर किलिंग के ग्रास में जाते देखता रहा। ऐसा मानो उसका निरूपमा से कोई वास्ता ही नहीं था।

जब घर वाले शादी के लिए राजी नहीं थे तब दोनों के पास कोर्ट मैरेज का विकल्प खुला था। हमारे जैसे अनेक लोगों का इस प्रकरण में राय यही बनी है कि अगर प्रियभांषु ने निरूपमा के साथ कोर्ट मैरेज कर लिया होता तो शायद यह हत्या नहीं होती। दिल्ली में आकर हत्या करने के लिए निरूपमा के परिजन सौ बार सोचते। ज्यादा से ज्यादा परिजन निरूपमा से नाता तोत्रड लेते। कई ऐसे उदाहरण सामने हैं जिसमें परिजनों के खिलाफ जाकर कोर्ट मैरिज हुई है और परिजनों से सुरक्षा के लिए कोर्ट भी खड़ा हुआ है। अंतरजातीय ही नहीं बल्कि अंतधार्मिक शादियां धत्रडडले के साथ हो रही हैं और न्यायालय-प्रशासन सुरक्षा कवज के रूप में खत्रडा है। यह एक संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। निरूपमा और प्रियभांषु दोनो वर्किग पत्रकार थे। दोनों अपने पैरों पर खड़े थे। इसके बाद भी यह विकल्प नहीं चुना जाना हैरतअंग्रेज बात है। जबकि दोनों के बीच 2007 से ही प्रेम संबंध थे।

ऑनर किलिंग जैसी घटनाओ के लिए भारतीय समाज की विंसगतियां जिम्मेवार रही है। जातीय आधारित ारतीय समाज आज भी अपने को बदलने के लिए तैयार नहीं है। निरुपमा प्रकरण अकेली घटना नहीं है। अभी हाल ही में न्यायालय ने हरियाणा में ऑनर किलिंग पर कड़ी सजा सुनायी है। निरूपमा के हत्यारे परिजनों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। इसके लिए पत्रकार संगठनों की सक्रियता जरूरी है। पत्रकार संगठनों और मीडिया ने निरुपमा को न्याय दिलाने के लिए सुर्खियां पर सुर्खियां बना रही है। इसी का परिणाम हुआ कि निरूपमा की मां जेल के अंदर हुई और उसके अन्य परिजन भी जेल जाने की प्रक्रिया में खड़े हैं। निरूपमा प्रकरण से ऑनर किलिंग मानसिकता को सबक मिलना चाहिए। पर हमें लापरवाह, गैर जिम्मेदार, असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंध पर भी गौर करना चाहिए। लापरवाह, गैर जिम्मेदार, असुरक्षित-खतरनाक यौन संबंधों की प्रेम कहानी ने निरूपमा को मौत के मुंह में धकेला है और इसके लिए उसके प्रेमी प्रियभांषु रंजन भी जिम्मेदार है। इसके लिए कानून भले ही उसे कोई सजा न दे लेकिन सामाजिक रूप से उसे इसकी सजा मिलनी ही चाहिए.

विस्फॊट डाट काम से साभार

3 comments:

Fauziya Reyaz said...

aapne jo kuch likha hai wo aapka andaaza hai...agar aisa hota to priyanshu bhi nirupama ke parents ki tarah ise khudkushi ka hi naam deta

Fauziya Reyaz said...

izzat ke naam par apni aulaad ko maar daala...agar beti ki jagah beta aisa karta kya tab bhi wo yahi karte

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

सबसे बड़ा दोषी तो यही जोकर है !