Saturday, October 25, 2008

पूरे मन से रमन

आज हम बात एक ऐसे शख्स की करने जा रहे हैं जो सुर्खियां कम ही बनते हैं। मीडिया में कम दिखते हैं, लेकिन अपने काम को बड़ी ही आसानी और करीने से कर गुजरते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि उनके शांत से दिखने वाले चेहरे के पीछे एक ऐसा राजनीतिज्ञ है, जो बिना विवादों में पड़े सारी दिक्कतों की काट जानता है। ऐसे समय जब भाजपा ने कई प्रदेशों नेतृत्व परिवर्तन किया, अपनी इसी खासियत के कारण वे पांच साल तक सत्ता में बने रहे और पार्टी उनको आगे की कमान सौंपकर मजबूती के साथ उनके पीछे खड़ी नजर आ रही है। हम बात छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह की कर रहे हैं।

आदिवासी राज्य का मुख्यमंत्री बनने से पहले न तो वे इसकी दौड़ में शामिल थे, न ही राजनीति के जानकार उनको दावेदार मानते थे। लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने आरएसएस में गहरी पकड़ रखने वाले रमन को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर एक उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश जरूर की थी।

प्रदेश भाजपा में इतनी गुटबाजी थी कि पार्टी किसी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव में उतरने का साहस नहीं जुटा पाई। मुख्यमंत्री की दौड़ में प्रभावशाली माने जाने वाले दिलीप सिंह जूदेव सबसे आगे थे। लेकिन अचानक सीडी कांड में रिश्वत लेते दिखाए जाने के बाद जूदेव पार्टी के लिए अछूत हो गए। उस समय केंद्र में राज्यमंत्री रहे रमेश बैस भी दावेदारों में थे लेकिन पार्टी आलाकमान के साथ अच्छे समीकरण रमन सिंह को आदिवासियों का मुखिया बनाने के लिए काफी थे।

आयुर्वेदिक डॉक्टर रमन सिंह भाजपा के सबसे ताकतवर खेमे लखीराम अग्रवाल जुड़ थे। लखीराम को अजीत जोगी के खिलाफ सशक्त चुनावी रणनीति बनाने का श्रेय जाता है। 15 अक्टूबर 1952 को जन्मे रमन सिंह चुनावी घमासान और सत्ता के गलियारे से अनजान नहीं थे। वह पहली बाद 1990 में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। यह सिलसिला आगे भी जारी रहा और उन्होंने दूसरी जीत 1998 में पाई।

रमन सिंह के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए पार्टी ने 1999 में राजनांदगांव लोकसभा सीट से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा के खिलाफ मैदान में उतारा। वोरा को करारी शिकस्त देकर रमन पार्टी के भरोसे पर खरे उतरे। इसका इनाम पार्टी ने वाजपेयी मंत्रीमंडल में वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री के रूप में शामिल कर दिया। इतना सब होने के बावजूद रमन सिंह के आत्मविश्वास पर विश्लेषक सवाल खड़ा करते रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह है कि वे लगातार अपना चुनाव क्षेत्र बदलते रहे। वे अब तक तीन बार अपनी विधानसभा बदल चुके हैं। पहली बार वे कवर्धा फिर डोंगरगांव और अब राजनांदगांव से चुनाव लड़ेंगे। रमन सिंह अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि 'सलवा जुडूमज् को मानते हैं। जबकि इसके लिए उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा। इसके कारण 40 हजार से ज्यादा आदिवासी अपने घरों से राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं।

इतना होने के बावजूद रमन सिंह पार्टी की पहली पसंद हैं और आगामी चुनाव की बागडोर भी उनके हाथ में है।

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