छत्तीसगढ़ का यह सौभाग्य रहा कि उसके पहले दो मुख्यमंत्री इंजीनियर और डाक्टर मिले। बात अगर पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की कि जाए तो उनके बारे में यह कहने में किसी को एतराज नहीं होगा कि उन्होंने एक नए प्रदेश को सजाने-संवारने के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन उन्होंने कुछ ऐसे भी काम किए, जिसका जवाब जनता ने उनको सत्ता से बेदखल करके दिया।
राजीव गांधी के प्रेरणा पाकर राजनीति में आए अजीत जोगी जब 1986 में कांग्रेस आए तो उन्हें आदिवासियों के विकास का जिम्मा सौंपा गया था। भोपाल में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान अपनी कमजोर अंग्रेजी के कारण परेशानी का सामना करने वाले जोगी ने बड़े ही करीने से पहले अपनी कमजोरियों को दूर किया फिर आगे की रणनीति बनाई।
40 साल पहले जब जोगी आईपीएस चुने गए तब उनकी मां ने कहा था कि उनका बेटा आईएएस बनकर देश की सेवा करेगा। जोगी अपनी मां के सपनों को साकार करते हुए आईएएस चुने गए और कई जिलों के कलेक्टर बने।सीधी, रीवा और रायपुर का कलेक्टर रहने के दौरान मध्यप्रदेश के ताकतवर कांग्रेसी नेता और मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह से उनकी नजदीकियां बढ़ी।
अर्जुन सिंह से नजदीकियों का ही परिणाम रहा कि पार्टी ने उन्हें 1986 और 1998 में दो बार उच्च सदन में भेजा। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहने के दौरान जहां जोगी ने अपने को राष्ट्रीय नेता बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी वहीं सोनिया गांधी के भी करीब आए। आदिवासी राज्य छत्तीसगढ़ बनने पर सोनिया गांधी ने शुक्ला बंधुओं को दरकिनार करते हुए अजीत जोगी पर विश्वास जताया। जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उनकी समस्याएं खत्म नहीं हुई।
प्रदेश के 16 में से सात जिले नक्सल की चपेट में थे, बस्तर में अलग प्रदेश बनाने की मांग जोरों पर थी। इसके साथ जोगी के सामने गरीबी, अशिक्षा और रोजगार की समस्या से जुझ रहे लोगों की एक बड़ी फौज खड़ी थी। इससे निपटना इतना आसान नहीं था। लंबी मशक्कत के बाद भी जोगी इससे निपटने में असफल रहे। यहीं कारण था कि जोगी अपने तीन साल के कार्यकाल में कभी जनता के चहेते नजर नहीं आए।
वे पार्टी की गुटबाजी रोकने में भी असफल रहे लेकिन इस दौरान उनका कद इतना बढ़ गया कि विद्याचरण शुक्ल जसे नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया। उनके कार्यकाल के दौरान ही प्रदेश की पहली राजनीतिक हत्या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष राम अवतार जग्गी की हुई। इस मामले में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी का नाम आया और बाद में दोनों को जेल भी जाना पड़ा। यहीं कारण थे कि पिछले चुनाव में जनता ने जोगी को नकार दिया। ऐसा नहीं है कि प्रदेश की जनता के नकारने के बाद जोगी चुप बैठ गए।
विधानसभा में हार का कारण बने विद्याचरण को उन्होंने 2004 में लोकसभा चुनाव में उस सीट पर मात दी, जिसे शुक्ला बंधुओं के सबसे ज्यादा प्रभाव वाली सीट माना जाता था। हालांकि महासमुंद्र में लोकसभा चुनाव के दौरान जोगी सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हुए और मौत को बड़े करीब से देखा। बावजूद इसके जोगी ने हार नहीं मानी और जब ठीक हुए तो फिर कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए कमर कस ली। इस चुनाव में पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री पर का दावेदार घोषित नहीं किया है, लेकिन अघोषित रूप से दावेदार तो जोगी ही हैं।
2 comments:
aapki baat sahi hai...dawedaari to jogi ki hi hai....
achchi post ke liye bdhaaee
जोगी ही आयेंगे फिर से...अभी तो यही लगता है!!
आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
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