Sunday, July 13, 2008

अरे भाई ऐसी भी क्या जल्दी है!

प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और उनकी सरकार परमाणु करार पर इतनी जल्दी में क्यों है। सरकार की मानें तो जार्ज बुश के राष्ट्रपति रहते करार न हुआ और बराक ओबामा राष्ट्रपति बन गए तो करार नहीं हो पाएगा। क्योंकि वे इसमें इतनी कड़ी शर्ते जोड़ देंगे कि भारत के लिए घाटे का करार हो जाएगा।


करार समर्थकों ने इसे मान लिया। सरकार ने प्रचार अभियान शुरू कर दिया है कि करार अभी नहीं किया तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।

यह सही है कि ओबामा शुरू में करार के विरोध में थे। उनका मानना था कि यह करार भारत के पक्ष में है। पर ओबामा के एक साक्षात्कार ने पूरा परिदृश्य बदल दिया है। भारत की एक अंग्रेजी पत्रिका आउटलुक को दिए साक्षात्कार में ओबामा ने कहा कि वे असैनिक परमाणु करार को अमेरिका-भारत के सामरिक रिश्तों और भारत की ऊर्जा जरूरतों के नजरिए से संतुलित मानते हैं।

परमाणु करार के मुद्दे पर 22 जुलाई को सरकार का क्या होगा यह कहना मुश्किल है। पर अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव के बारे में आप ज्योतिष के ज्ञान के बिना भी कह सकते हैं कि जॉन मैकेन और बराक ओबामा में से किसी एक का राष्ट्रपति चुना जाना तय है। मैकेन जार्ज बुश की रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हैं। वे राष्ट्रपति बने तो अपनी ही पार्टी की सरकार के अंतरराष्ट्रीय समझौते से मुकर जाएंगे ऐसा मानने का कोई आधार नहीं है।

ओबामा करार के पक्ष में हैं ही। ऐसे में बुश के रहते यदि करार नहीं हो पाता तो भी करार खतरे में नहीं है। फिर सरकार इतनी जल्दी में क्यों है?

क्या प्रकाश करात का आरोप सही है कि मनमोहन सिंह को जार्ज बुश से किए वादे को पूरा करने की जल्दी है? या कांग्रेस महंगाई से ध्यान हटाने के लिए करार पर जोर आजमाइश करने के चक्कर में जल्दी में है। समाजवादी पार्टी को केंद्र में मदारी की भूमिका निभाने की जल्दी तो है ही उससे ज्यादा जल्दी उत्तर प्रदेश में मायावती को निपटाने की है।

इसके लिए केंद्र सरकार का साथ और सीबीआई दोनों की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने गैर कांग्रेसवाद के नारे को दफन कर दिया। भारतीय जनता पार्टी को सत्ता में आने की जल्दी है। इसलिए सरकार गिरने या गिराने का कोई मौका वह छोड़ना नहीं चाहती। दो बार तो मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव कर चुकी है।

पार्टी इंतजार कर भी ले तो लालकृष्ण आडवाणी के पास इंतजार के लिए समय नहीं है। अजित ¨सह एचडी देवगौड़ा, शीबू सोरेन और चंद्रशेखर राव के अलावा कई टुटपुंजिया नेताओं को बहती गंगा में डुबकी लगाने की जल्दी है। देश का मतदाता हैरान है कि पांच साल के लिए जिन्हें चुनकर भेजा वे पहले लौटने की जल्दी में क्यों हैं।

बस जल्दी में नहीं हैं तो वामदल। उन्होंने कांग्रेस को समझने और समझाने का पूरा मौका दिया। वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस लिया इसकी बजाय यह कहना ज्यादा सही होगा कि कांग्रेस ने समर्थन वापस करवाया। वैसे अब वामदलों को भी जल्दी है-मनमोहन सिंह को भूतपूर्व बनवाने की।

प्रदीप सिंह

1 comment:

Admin said...

लोगों का काम है कहना.. करार तीन साल से लटका पडा है.. और जितनी जल्दी होगा उसके सुखद परिणाम भी उतनी ही जल्दी सामने आयेंगे..
फिर और भी तो काम हैं.