पत्रकारों के स्वर्ग बताए जा रहे छत्तीसगढ़ में पत्रकार अब सुरक्षित नहीं रह गये हैं. छत्तीसगढ़ में एक महीने के अंदर ऐसी दूसरी घटना हुई है जिससे छत्तीसगढ़ की पूरी पत्रकार बिरादरी दहशत में आ गयी है. करीब महीने भर पहले विलासपुर में दैनिक भास्कर के एक पत्रकार को अज्ञात लोगों ने गोलियों से भून दिया था और अब रायपुर की ही एक तहसील में पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गयी है.
मिली जानकारी के अनुसार रविवार को नई दुनिया से जुड़े पत्रकार उमेश राजपूत को उसके घर पर ही नकाबपोश बंदूकधारियों ने गोलियों से भून दिया. घटना रायपुर जिले के छुरा कस्बे की है. हत्याकाण्ड के विरोध में सोमवार को पूरा छुरा कस्बा बंद रहा और नई दुनिया के संपादक रवि भोईर ने भी छुरा जाकर उमेश राजपूत के परिवारवालों को सांत्वना दी है. मुख्यमंत्री रमण सिंह ने भी तत्काल जांच के आदेश दिये हैं और एक महिला को इस संबंध ने पुलिस ने हिरासत में भी लिया है. लेकिन सवाल सिर्फ इस घटना का ही नहीं है.
करीब एक महीने पहले बिलासपुर में दैनिक भास्कर से जुड़े पत्रकार सुशील पाठक को भी दफ्तर से घर लौटते हुए कुछ अज्ञात लोगों ने गोलियों से भून दिया था. उस मामले में भी पुलिस ने आनन फानन में सुशील पाठक के पड़ोस में रहनेवाले बाबर खान को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन जांच अभी भी अधूरी है क्योंकि मारे गये पत्रकार का मोबाइल अभी तक बरामद नहीं किया जा सका है. स्थानीय पत्रकार कुरेदने पर बताते हैं कि असल में अब प्रशासन ही पत्रकारों के पीछे पड़ गया है. रमण राज में पत्रकार सुरक्षित नहीं रह गये हैं. किसी दौर में निश्चित रूप से पत्रकारों की प्रशासन के सामने चलती थी लेकिन अब प्रशासन ने भी पत्रकारों को पटाने की बजाय सीधे मालिकों को मिलाने का काम कर लिया है जिसके कारण अब संकट में होने पर भी पत्रकार की मदद में प्रशासन आगे नहीं आता.
पत्रकारों के स्वर्ग कहे जाने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उनकी इस तरह से हत्याएं निश्चित रूप से प्रशासन की लापरवाही दर्शाता है. रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदकर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की दशा दयनीय होती जा रही है. अखबार मालिकों के दबाव से इतर अब प्रशासन के सामने भी उनकी स्थिति लाचारों की होती जा रही है. इसी का परिणाम है कि एक महीने के अंदर दो पत्रकारों की हत्या हो जाती है और रमण सरकार सिर्फ जांच का आश्वासन देकर चुप हो जाती है.
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