Tuesday, February 1, 2011

पल भर में बदली रोहित की जिंदगी

मीरा जैन।। मुंबई
पता नहीं कब किसकी तकदीर पलट जाए। दो साल पहले एक के बाद एक दो माह के भीतर माता-पिता को गंवाने वाले रोहित ने सपने में भी खुद के भाग्योदय की बात नहीं सोची होगी। 13 साल के अनाथ रोहित ने पेट भरने के लिए लोकल ट्रेन में हेयर क्लिप बेचना शुरू कर दिया था। शनिवार को मानो प्रकृति उसे उन्नति के द्वार पर धकेल रही थी। रोहित दुबे ने राहुल गांधी की सभा का पोस्टर देखा और यह सोचकर वहां जा पहुंचा कि भीड़ में उसका धंधा हो जाएगा और शायद उसे राहुल को करीब से देखने का मौका भी मिल जाए, पर उसका तो जीवन ही बदल गया।

पल भर की बात जीने का सामान दे गई
पालघर के आर्यन स्कूल मैदान में पास न होने के कारण रोहित को अंदर नहीं जाने दिया गया, तो वह मायूस होकर वहीं खड़ा रहा और सोचने लगा इतनी दूर आया हूं राहुल गांधी की एक झलक पा लूं। वह भी न हुआ, तो हेलिकॉप्टर ही देख लेता हूं। सभा के बाद भीड़ यहीं से बाहर निकलेगी, तब बात बन सकती है और बात क्या खूब बनी। करीब 2000 लोगों की भारी भीड़ के बीच कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की नजर रोहित दुबे पर पड़ी। बस एक मिनट की बात हुई और राहुल गांधी का दिल भर आया। उन्होंने तत्काल आदिवासी विकास राज्यमंत्री राजेंद्र गावित को निर्देश दिया कि वे रोहित को फिर से स्कूल भेजने का इंतजाम करें। साथ ही, यह भी कहा कि गावित साल दर साल उसकी प्रगति की जानकारी देते रहें।

कांटों भरा बचपन
दु:ख और परेशानियों के पहाड़ तले दबे रोहित को लगा उसका पूरा बोझ उतर गया है और अब वह उड़नखटोले में बैठकर उड़ रहा है। रोहित के पिता बिल्डर के यहां दिहाड़ी मजदूर थे। 2009 में मलेरिया ने उनकी जान ले ली थी, फिर भी मां घर काम करके रोहित की शिक्षा का खर्च जुटा लेती थी। अक्टूबर 2009 में ही पेट की बीमारी ने 11 साल के रोहित से मां भी छीन ली। शोक मनाने से बड़ा पेट का सवाल मुंह बाए खड़ा था। रोहित जगह-जगह काम खोजने लगा, तभी एक साथी उसे लोकल में हेयर क्लिप बेचने की सलाह दी। उसके लिए भी राहुल को 500 रुपये चाहिए थे, तभी माल मिलता।

मुफलिसी में मदद का हाथ
इस कठिन घड़ी में रोहित को एक घर याद आया, जहां उसकी मां काम करती थी। कई बार वह कुछ सामान लेने मां के साथ वसई के उस गुजराती परिवार के घर गया था। उस दयालु परिवार ने न सिर्फ 500 रुपये दिए, बल्कि यह भी कहा कि ये पैसे लौटाने की जरूरत नहीं है। बस, रोहित क्लिप बेचकर पेट पालने लगा और दिन कटने लगे। अब तक उसने दोस्तों के साथ मिलकर नाला सोपारा (पूर्व) की चाल में खोली ले ली थी। इसके लिए वे सभी मिलकर 2000 रुपये मासिक किराया देते हैं।

दादा-दादी से मिलने की तमन्ना
आगामी 2 फरवरी को गावित ने रोहित को बुलाया है। इसके बाद वह अपने पुराने हिंदी माध्यम के स्कूल में पढ़ने लगेगा। उसके रहने का क्या इंतजाम होगा और खर्च कैसे मिलेगा? ये सारी बातें तभी बताई जाएंगी। उसे लगता है सिर्फ पढ़ाई पर ही मेहनत के दिन आ गए हैं। छूट जाएगी यह खस्ताहाल खोली और लेडीज डिब्बे की भीड़। अब, उसे जौनपुर के खेतों में मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले दादा-दादी याद आ रहे हैं। उसका कहना है कि कुछ पैसे जुटे, तो जौनपुर जाकर दादा-दादी से मिलूंगा।

नवभारत टाइम्स से साभार
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/7403222.cms

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