Friday, September 11, 2009

राहुल के टैलेंट हंट पर कितना भरोसा करें

मृगेंद्र पांडेय

भारत की राजनीति में हमेशा अच्छे लोगों की दरकार थी। या यह कह सकते हैं कि अच्छे लोगों की हमेशा कमी बनी रही। यह कमी कमोबेश कांग्रेस में भी है। पीढ़ियों के बीच का अंतर अब उनकी कार्यप्रणाली को प्रभाति करने लगा था। संक्रमण के दौर से गुजर रही कांग्रेस को अब कुछ बड़े बदला करने की जरूरत आन पड़ी थी। ऐसे में राहुल गांधी को एक रणनीति के तहत भारत की राजनीति में प्रवेश कराया गया। उनके लिए प्लेटफार्म बनाने का काम भले ही कांग्रेस के वरिष्ठ और सोनिया गांधी के करीबी लोगों ने किया, लेकिन वक्त के साथ राहुल को यह लगने लगा कि उनकी राह में ये वरिष्ठ लोग एक अनुभव के रूप में काम आ सकते हैं, लेकिन भविष्य नहीं हो सकते।

राहुल ने जब अपने और भारत के भविष्य के बारे में परवाह करने की शुरुआत की तो सबसे पहले उनकी नजर भी अपने पिता राजी गांधी की तरह युवाओं पर गई। राहुल को केंद्र में मंत्री बनाने और अच्छा मंत्रालय देने की वकालक की जाने लगी। कुछ बुढ़े और कमजोर नेता राहुल को सीधे प्रधानमंत्री बनाने का जोर-शोर से प्रचार करने लगे, लेकिन राहुल को यह साफ नजर आने लगा था कि राजनीति में अच्छे लोगों की कमी बरकरार है। यह अच्छे लोग कहां से आएंगे। इसकी खोज राहुल के साथ उनके वरिष्ठ सहयोगी और कुछ युवाओं की टीम ने करना शुरू किया।

यह ही दौर है जब राहुल ने खुद युवक कांग्रेस और एनएसयूआई की कमान अपने हाथ में ली। पहले चरण में उन लोगों ने राहुल के करीब आने में सफलता पाई, जो कांग्रेस के किसी बड़े नेता के बेटे थे, या फिर बड़े उद्योगपति। इस दौर में हुए लगभग सभी चुनावॊं में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। चाहे वह उत्तर प्रदेश का चुनाव हो, गुजरात हो या फिर हिमाचल। सारे लोगों ने राहुल को फ्लाप घोषित कर दिया। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। क्योंकि बिना संगठन के कहीं भी करिश्मा दिखा कर या फिर गांधी-नेहरू परिवार की बात करके जीत नहीं दर्ज की जा सकती। इस दौर के बाद राहुल को यह समझ में आने लगा कि अब उन्हें अपने दायरे को बढ़ाना होगा। यह दायरा कैसे बढ़ेगा। सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा जैसे लोग अपनी पारी खेल रहे थे, लेकिन अब आगे का मैच कैसे पूरा होगा। विरॊधियों के विकेट कौन उखाड़ेगा। अब समय असली परीक्षा का आ गया था। राहुल के सामने सफल होने का संकट मंडराने लगा था। क्या किया जाए, कहां से आएंगे रणबांकुरे, यह किसी को समझ में नहीं आ रहा था।

फिर नई रणनीति के तहत टैलेंट हंट शुरू करने की योजना बनाई गई। कई प्रदेशों में किया भी गया और अब भी चल रहा है। लेकिन इस टैलेंट हंट की राजनीतिक फसल में कितने टैलेंट हंट किए गए। क्या वह काबिल लोगों की टीम है। क्या यही वह लोग हैं, जिनकी तलाश सही मायनों में राहुल गांधी को थी। या फिर यह कहें कि भारत के भविष्य को है। यहां यह कहना बहुत बड़ी बात होगी कि यह सभी सही है। लेकिन पिछले दिनों राजस्थान में हुई एक घटना ने राहुल के चयन पर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्थान एनएसयूआई की प्रदेश अध्यक्ष रंजू रामावत ने विश्वविद्यालय के अध्यक्ष को उसके पद से हटा दिया। यहां विवाद का विषय पद से हटाने का नहीं है। पद से हटाए गए मुकेश भाकर और अजय मीणा यह दावा कर रहे हैं कि उनको रामावत कैसे हटा सकतीं हैं, जबकि हमारा चयन राहुल गांधी के टैलेंट हंट में किया गया है।

अब साल यह है कि आखिर क्या भाकर सही कह रहे हैं। अगर हां तो फिर पार्टी के कई वरिष्ठ लोगों ने जिस छात्र नेता को अच्छा माना। उनको लगा कि ये देश के भविष्य हो सकते हैं, फिर अचानक कैसे ये भविष्य के खलनायक बन गए। क्या ये नेता पहले से ही खलनायक थे और उनका चयन करने में उन मापदंडों को अपनाया नहीं गया। यहां उद्देश्य भाकर या मीणा की बात करना नहीं है। यहां बात करने का मकसद राहुल गांधी की बन रही भविष्य की टीम में सही लोगों के चयन का सवाल है। अगर आज सही दिशा में चयन नहीं हुआ तो फिर न तो राहुल के पास मौका होगा, न तो कांग्रेस पार्टी के पास और न ही जनता के पास ।

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