Wednesday, June 4, 2008

राजशाही से प्रचंडशाही की ओर..

नेपाल में बुधवार को संविधान सभा की बहुप्रतीक्षित बैठक होने जा रही है. क्या यह सभा देश को स्थिरता के दौर की ओर ले जाएगी. यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है. राजनीतिक प्रेक्षक भी इस बात पर एकमत नहीं हो पा रहे हैं कि इससे देश की राजनीतिक स्थिरता और अर्थिक संपन्नता का सपना पूरा हो सकेगा या नहीं.

बुधवार को संविधान सभा के सदस्यों को शपथ दिलाई जाएगी और उसी दिन राजशाही को खत्म कर देश को गणतंत्र घोषित किया जाना भी तय है. लेकिन इसके बाद क्या होगा कुछ साफ नहीं है.

सभा को दो साल में नया संविधान बनाना है लेकिन जिस तरह का टकराव माओवादियो और अन्य दलों में दिखाई दे रहा है, उसे देखते हुए यह काम बहुत आसान नहीं लगता है.

संविधान सभा के गठन के साथ ही प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला सरकार के प्रमुख नहीं रहेंगे. लेकिन उनकी जगह नई सरकार कैसे और किसकी आएगी, इस पर अभी तक सवालिया निशान लगा हुआ है.

माओवादी नेता प्रचंड अपने को राष्ट्रपति बनाने की बात कहते रहे हैं लेकिन अंतरिम सरकार में इसका कोई प्रावधान ही नहीं है. यही नहीं सभा की विधायी ताकतों के बारे में कुछ भी कहीं भी स्पष्ट नहीं है.

संविधान सभा के चुनावों में माओवादी सबसे बड़े दल के रूप में उभरे लेकिन उन्हें भी दो तिहाई बहुमत नहीं मिला है. नेपाल के अंतरिम संविधान के मुताबिक किसी को भी प्रधानमंत्री बनने या प्रधानमंत्री को हटाने के लिए दो तिहाई बहुमत जरूरी है. अब सवाल यह उठता है कि ऐसी स्थिति में माओवादी सरकार कैसे बनाएंगे क्योंकि अब तक कोई भी दल समर्थन देने के लिए सामने नहीं आया है.

माओवादी, नेपाली कांग्रेस और नेपाली कम्युनिट पार्टी जो कभी एक मंच पर साथ आए थे, आज एक दूसरे का विरोध कर रहे हैं. ये सभी दल केवल एक बात पर राजी हैं कि नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र को हटाया जाए. जिस तरह अर्जुन का निशाना मछली की आंख थी, उसी तरह माओवादी का भी एकमात्र निशाना राजशाही का खात्मा था.

हालांकि नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी इससे सहमत थे लेकिन इन दलों के प्रमुख नेता जिसमें प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की पुत्री सुजाता कोईराला और कम्युनिट नेता मोदनाथ प्रोश्रित शामिल हैं, राजशाही को बनाए रखने की वकालत कर रहे हैं. इन नेताओं का कहना है कि राजशाही को पूरी तरह से खत्म करना देश की स्थिरता को खतरे में डालना है.

हालांकि इन दलों का निशाना नेपाल नरेश थे लेकिन यह कहीं भी साफ नहीं है कि राजा को आखिर हटाया कैसे जाए. उन्हें हटाने के लिए प्रस्ताव कौन लाएगा. यदि प्रस्ताव लाने पर सहमति हो जाती है तो उनकी जगह कौन लेगा क्योंकि अंतरिम संविधान में राष्ट्रपति पद के लिए प्रावधान नहीं है. इस गतिरोध को दूर कैसे किया जाएगा, यह साफ नहीं है. यह सब शंकाएं इसलिए हैं क्योंकि अंतरिम संविधान के मुताबिक नई सरकार बनाना आसान नहीं है. प्रधानमंत्री ने माओवादी नेता प्रचंड को सरकार बनाने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए आमंत्रित किया है.

माओवादियों के छह सौ एक सदस्यीय संविधान सभा में दो सौ बीस सदस्य हैं. उन्हें सरकार बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है और इसके लिए उन्हें 180 और सदस्यों का समर्थन चाहिए.

कोईराला जब तक आश्वस्त नहीं होंगे कि प्रचंड के पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत है, तब तक उन्हें सरकार बनाने के लिए बुलाने के प्रति बाध्य नहीं है.

माओवादी यह पहले ही साफ कर चुके हैं कि वे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पद किसी दूसरी पार्टी को देने वाले नहीं हैं. नेपाली कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी माओवादियों को समर्थन देने के लिए अपनी शर्तें पहले ही बता चुके हैं और माओवादी इस पर अपनी असहमति भी जता चुके हैं. अब देखना यह है कि माओवादी यह समर्थन किस तरह जुटाएंगे.

यदि नहीं जुटा जाए तो क्या प्रचंड अपनी धमकियों के अनुरूप जबर्दस्ती सत्ता पर कब्जा करेंगे. एक राजनीतिक प्रेक्षक का कहना है कि नेपाल की स्थिति बहुत अजीबोगरीब है. यहां कदम-कदम पर गतिरोध है. उन्होंने कहा कि हम यह भी नहीं कह सकते कि देश संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है क्योंकि अभी देश में कोई संविधान नहीं है.

कहीं ऐसा न हो कि निरंकुश राजशाही का तो खात्मा हो जाए लेकिन उसकी जगह कोई और निरंकुश ताकत आ जाए.

गणतंत्र की कगार पर पहुंचे नेपाल के सामने अनिश्चितता मुंह बाए खड़ी है. प्रेक्षक तो यह मानते हैं कि इस समय प्राथमिकता देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने की होनी चाहिए.

राजीव पांडे

1 comment:

ghughutibasuti said...

'कहीं ऐसा न हो कि निरंकुश राजशाही का तो खात्मा हो जाए लेकिन उसकी जगह कोई और निरंकुश ताकत आ जाए.'
मुझे तो ऐसे ही आसार नजर आ रहे हैं।
घुघूती बासूती