Tuesday, April 29, 2008

संबंधों में दरार डालता अमेरिका...

ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद की भारत यात्रा पर द्विप‌क्षीय संबंधों से ज्यादा अमेरिका ईरान परमाणु विवा का साया रहेगा. अमेरिका ने उनकी यात्रा के साथ परमाणु कार्यक्रम को जोड़कर उसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का बना दिया. इसके अलावा अमेरिका ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन का हिमायती नही है. वह इसमें भारत की भागीदारी नहीं चाहता.


उधर अहमदीनेजाद ने कहा कि इस पाइपलाइन के बारे में दोनों देशॊं से बातचीत करेंगे. अहदीनेजाद की यात्रा से पूर्व अमेरिका ने भारत को सलाह दी कि वह ईरान पर परमाणु कार्यक्रम समाप्त करने के लिए दबाव डाले. इस पर वाम दल बहुत लाल हुए और राजनीतिक क्षेत्र में इसे भारत के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप करार दिया गया. और जब तुफान उठा तब अमेरिका ने अपना बयान बदला. सरकार ने राजनीतिक स्तर पर करार जवाब दिया.

भारत ने कहा कि दो परिपक्व देशों को इस सलाह की आवश्यकता नहीं कि वे किस प्रकार आपसी संबंध रखें. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को चिंता करनी चाहिए, अमेरिका को नहीं. यहीं नहीं अहमदीनेजाद जब इराक की यात्रा पर गए तब अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इराक के नेताओं से कहा कि वे ईरान से कह दें कि वह अपने आतंकवादी भेजना बंद करें, जिसकी वजह से बेगुनाह इराकी नागरिक मारे जा रहे हैं.


अमेरिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार करने में जुटा हुआ है कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की गुपचुप कोशिश के साथ आतंकवाद का पोषक बना हुआ है. जार्ज बुश इस वर्ष के शुरू में पश्चिम एशियाई देशों के दौरे पर गए थे. उस समय उनका मकसद तो फिलीस्तीन-इसराइल विवाद को सुलझाना था लेकिन उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और ईरान के परमाणु कार्यक्रम की जमकर आलोचना की और यह साबित करने की कोशिश की कि वह पूरे विश्व के लिए खतरा है. उनका हर भाषण ईरान के खिलाफ था और उन्होंने उसे अरब-इजराइल संघर्ष में बदलने की कोशिश की.


अमेरिका की पूरी कोशिश है कि ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की जा सके. अब पश्चिम एशिया में इराक के बाद ईरान ही शक्तिशाली देश हैं जिससे इसराइल को खतरा महसूस हो रहा है और वह एकमात्र ऐसा देश है जो ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का पक्षधर है.

अमेरिका सुर‌क्षा परिषद का उपयोग पूरी तरह से अपने हित के लिए कर रहा है. सुर‌क्षा परिषद ने हाल ही में ईरान पर तीसरे दौर का प्रतिबंध लगाया है. लेकिन स्थाई सदस्यों ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की रिपोर्ट को महत्व नहीं दिया जिसमें एजेंसी ने कहा था कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है. अधिकतर देश यह जानना चाहते हैं कि ईरान परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताछर करने के बावजूद यूरेनियम के संवर्धन पर क्यों जोर दे रहा है.


ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम हथियार बनाने के लिए नहीं बल्कि ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए है. इसके अलावा पश्चिमी देशों की निजी कंपनियां भी परमाणु प्रसार में चोरी छिपे सहयोग दे रही है. अब अगर भारत ईरान संबंधों की बात करें तो ये बहुत ही पुराने हैं. इससे पूर्व 2003 में ईरान के राष्ट्रपति भारत आए थे. अमेरिका ईरान विवाद में भारत तटस्थ रहा है और ईरान को अप्रसार संधि के पालन की सलाह देता रहा है. ईरान ने भारत के इस रुख को सराहा भी है. चूंकि ईरान ने अपने परमाणु प्रौघोगिकी हासिल करने के प्रयासॊं के बारे में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को जानकारी नहीं दी थी इसिलए दो बार भारत ने एजेंसी में ईरान के खिलाफ वोट दिया था. उस समय रिश्तों में थॊड़ी तल्खी आ गई थी और वामपंथी दलों ने भी सरकार के रवैये की कड़ी आलोचना की थी लेकिन अब संबंध सामान्य हो गए हैं.


भारत इन संबंधॊं को व्यापक और मजबूत बनाने के लिए प्रयास करेगा. ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद की इस यात्रा में न कोई एजेंडा है और न ही किसी समझौते पर हस्ताक्षर होना है. लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ द्विपक्षीय संबंधों और अंतराराष्ट्रीय स्थिति पर चर्चा अवश्य होगी. अमेरिका और यूरोपीय देशों का मत है कि सैन्य कार्रवाई ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने में प्रभावी हो सकता है. अमहदीनेजाद चाहेंगे कि भारत इस रुख का समर्थन न करे और सुरक्षा परिषद तथा अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की भूमिका को देखते हुए यह अपेछित भी है.




राजेंद्र श्रीवास्तव

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