Saturday, April 26, 2008

गठजोड़ का नफा नुकसान

केंद्रीय नेतृत्व के रवैये के कारण कार्यकर्ताओं की पार्टी कही जाने वाली भाजपा में भी साधारण कार्यकर्ता का मनोबल टूटता जा रहा है। केंद्रीय नेताओं की यह जमात बिहार की जमीनी राजनीति का कखग भी नहीं समझती
गठबंधन की राजनीति के तहत केंद्र की सत्ता पाने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए अब गठबंधन ही गले की हड्डी बनता जा रहा है।

बिहार और महाराष्ट्र में हाल की घटनाओं को देखा जाए तो इसे काफी हद तक सही कहा जा सकता है। ऐसा लगता है कि पार्टी हरियाणा, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश के उदाहरणों से सबक नहीं ले रही है, जहां गठबंधन की राजनीति के कारण अब भाजपा को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। बिहार में जो कुछ हो रहा है वह पार्टी की खुमारी तोड़ने के लिए काफी था लेकिन महाराष्ट्र की घटनाओं के कारण उस पर उतना ध्यान ही नहीं दिया गया।

बिहार में कुछ साल पहले तक भाजपा मुख्य विरोधी दल हुआ करती थी और उसके बाद ही समता पार्टी या जनता दल यूनाइटेड का नंबर आता था, जिसके नेता नीतीश कुमार थे। अब स्थिति यह है कि भाजपा को उनके सहारे की जरूरत पड़ रही है। इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन हैं? यह सवाल कठिन नहीं है। उत्तर सामने है कि इसके लिए पार्टी की प्रदेश इकाई से ज्यादा केंद्रीय नेता ओर उनके सलाहकारों को अर्जुन की तरह केवल दिल्ली की ही सत्ता नजर आती है और वह इसके लिए ही रणनीति बनाते रहते हैं। इन्हें राज्यों में पार्टी की हालत, संगठन की खामियों या कार्यकर्ताओं की इच्छाओं से कोई ज्यादा लेना देना नहीं है।

ये तो गठबंधन के नाम पर पार्टी हितों को कुर्बान करने से पहले एक बार सोचते तक नहीं हैं। इनका एक ही मकसद रहता है कि सहयोगी पार्टी किसी तरह से नाराज नहीं हो और पार्टी का कोई नेता राज्य में अपना छत्रप न बना सके। केंद्रीय नेतृत्व के रवैये के कारण कार्यकर्ताओं की पार्टी कही जाने वाली भाजपा में भी साधारण कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता जा रहा है।

केंद्रीय नेताओं की यह जमात बिहार की जमीनी राजनीति का क, ख, ग नहीं समझती और अपने हिसाब से तीन-पांच करती रहती है। हताश कार्यकर्ताओं के पास दो ही विकल्प बचते हैं, या तो वह चुपचाप घर में बैठ जाए या किसी और दल चला जाए। नीतीश इसी का फायदा उठा रहे हैं। जिस दिन से उनकी सरकार बनी है इसी दिन से उन्होंने इस दिन से उन्होंने इस दिशा में काम शुरू कर दिया था। नीतीश को आज की तारीख में यूं ही सबसे चतुर राजनेताओं में नहीं गिना जाता है। जब सरकार बनी तो भाजपा कोटे से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया, जबकि बुरे दिनों में भाजपा को मिलने वाले पारंपरिक वोटों में कायस्थ मत शामिल रहे।

भाजपा नेता नवीन किशोर पऱसाद सिन्हा का हक बनता था लेकिन नीतीश ने अपनी पार्टी की कायस्थ विधायक सुधा श्रीवास्तव को मंत्री बनाया। यह सब जानते हैं कि कायस्थ शहरी इलाकों ज्यादा रहते हैं और कई सीटों पर उनके मतों से हार जीत का फैसला होता है। नीतीश ने इस तरह से भाजपा के आधार पर चोट की लेकिन पार्टी का प्रदेश नेतृत्व चुप बैठ गया। नवीन का बाद में निधन हो गया और माना गया कि मंत्रिमंडल गठन में अपनी ही पार्टी के प्रांतीय नेताओं द्वारा दरकिनार करने से उन्हें गहरा सदमा लगा था। इसके बाद तो नीतीश जैसा चाहते रहे, प्रदेश में वैसा ही होता रहा है।

पुरानी कहावत है कि बाड़ खेत खाने लगे तो रखवाली कौन करेगा, बिहार के भाजपा कार्यकर्ताओं की मानें तो उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी पूरी तरह से नीतीश के रंग में रंग गए हैं। मोदी पर पार्टी से ज्यादा नीतीश की बात सुनने का आरोप है। हाल में हुए मंत्रिमंडल के पुनर्गठन ने आग में घी का काम किया है। मोदी विरोधी अभियान के बीच मोदी के बचाव में खुलकर सामने आने वाले अकेले बड़े नेता नीतीश कुमार हैं। नीतीश ने सफाई दी कि उनकी सरकार एकजुट है और मंत्रिमंडल में फेरबदल से कोई नाराजगी नहीं है।

यह बिडंबना ही है कि जो पार्टी कभी अपने को दूसरे दलों से अलग और एक अनुशासित पार्टी होने का दावा करती थी, उसी में आज घमासान मचा हुआ है। ऐसा लगता है कि बिहार भाजपा में व्याप्त असंतोष को खत्म करने के लिए तत्काल ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो वहां भी पार्टी की हालत उत्तर प्रदेश जैसी बनने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।

एक समय था जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार होती थी और उसके उम्मीदवारों के लिए विधानसभा चुनावों में जमानत बचानी मुश्किल हो जाती है। गठबंधन की बलिवेदी पर चढ़ने वाला अगला राज्य बिहार हो सकता है। पार्टी के एक प्रांतीय नेता ने एक बेबाक टिप्पणी की, पार्टी के आला नेता अपनी पारी खेल चुके हैं।

पार्टी को बनाने और उसे इस मुकाम तक पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान रहा है लेकिन लगता है कि जब वह रिटायर होंगे तो हम फिर वहीं पहुंच जाएंगे, जहां से शुरुआत की थी। थोड़े लाभ के लिए दीर्घकालिक हितों की कुर्बानी का इससे बेहतर नतीजा हो भी तो नहीं सकता।

राजीव पांडे

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