मृगेंद्र पांडेय
वामपंथियों को एक बार फिर कांग्रेसी सरकार ने चुनौती दी है। इस बार अमेरिका के विरोधी वाम दलों के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति को लाने की तैयारी है। वह उन सभी कामरेड को संबोधित करेंगे, जो अमेरिकी नीतियों के खिलाफ लाल सलाम करते आए हैं। लोकसभा और राज्यसभा में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा सांसदों को ज्ञान बांटेंगे। इस ज्ञान के लिए वामपंथी बराक का लाल सलाम करेंगे या गोबैक। देखना दिलचस्प होगा।
राष्ट्रपति बनने के बाद ओबामा की यह पहली भारत यात्रा है। इससे पहले वर्ष २००६ में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश भारत आए थे। इस दौरान जहां भी वे गए वामपंथियों ने उनका विरोध किया था। विरोध इतना तेज था कि पूरे देश के वामपंथी सड़क पर उतर आए थे। दिल्ली में प्रकाश करात, एबी वर्धन से लेकर सारे बड़े वामपंथी विरोध का लाल झंडा लेकर मैदान में थे। वामपंथ की पाठशाला जेएनयू में तो काले झंडे तक दिखा दिए गए। अब समय फिर घूम कर आ गया है।
इस बार तो और भी करीब से अमेरिकी साम्राज्यवाद वामपंथ के पास नजर आएगा। संसद में बगल में बैठकर ज्ञान देता हुआ। पिछली बार तो बुश संसद में गए ही नहीं थे। परमाणु करार को लेकर आई खटास के कारण बुश का विरोध किया गया था। इन करार को हुए तीन साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। अब देखना होगा कि वक्त गुजरने के साथ लाल विरोध कम हुआ है या उतनी ही तेजी बरकरार है।
2 comments:
अपनी आदत के अनुसार वामपंथी अमेरिकी विरोध की लकीर पीटने से बाज मुश्किल से ही आये !!
sahi bola ap ne
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