केंद्र में बनते-बिगड़ते गठबंधनों से बेखबर छत्तीसगढ़ की राजनीति में दो महारथी कांग्रेस और भाजपा आमने-सामने हैं। हार-जीत के गणित में कांग्रेस का पलड़ा भले ही कमजोर हो, लेकिन उसके पास प्रदेश में खोने के लिए कुछ ज्यादा नहीं है। यही कारण है कि कांग्रेस ने उम्मीदवारों के चयन में भी उन नए चेहरों को मौका दिया, जिनके सहारे पार्टी प्रदेश में वापसी के सपने संजो रही है। हालांकि भाजपा, जिसका प्रदेश की 11 में से 9 सीटों पर कब्जा है, उसने भी कई मौजूद सांसदों की दावेदारी को दरकिनार करते हुए उन नए और युवा चेहरों को मौका दिया है, जो प्रदेश की राजनीति में तेजी से उभर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हर सीट पर दो तरफा मुकाबला करना पड़ रहा है। एक तरफ भाजपा से तो दूसरी ओर कांग्रेस के उन कद्दावर नेताओं से जिन्हें पार्टी ने टिकट से नहीं नवाजा है। रायपुर, बस्तर और कांकेर की सीट ऐसी ही है, जहां कांग्रेस को अपनों से भी लड़ना पड़ रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवारों और संगठन के बीच तालमेल की कमी भी देखने को मिल रही है। कांग्रेस जहां इन दिक्कतों से पार पाने के लिए जद्दोजहर कर रही है, वहीं भाजपा ने छत्तीसगढ़ में रमन सिंह सरकार को मॉडल मानकार पूरे देश में उनकी योजनाओं को लागू करने का दावा किया। यह रमन सिंह के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है।
पार्टी ने नरेंद्र मोदी के उग्र हिंदुत्व से भले ही किनारा न किया हो, लेकिन विकास के लिए छत्तीसगढ़ के मॉडल को अपनाकर इस बात के संकेत जरूर दे दिए हैं कि चुनाव विकास के मुद्दों पर ही जीता जा सकता है। भाजपा चाहे दो रुपए किलो चावल हो या फिर नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे सलवा जुडूम की तारीफ, इसे वोट में बदलने की भरपूर कोशिश में है। अब ऐसे में कांग्रेस के सामने इन मुद्दों से पार पाने का संकट भी है।
प्रदेश की तीन सीटों पर कांग्रेस और भाजपा को बसपा, बागी और वाम दल के उम्मीदवार कड़ी टक्कर दे रहे हैं। दुर्ग, बस्तर और जांजगीर की सीट पर मचे त्रिकोणीय घमासान में दो सीट पर नुकसान कांग्रेस को होता नजर आ रहा है, वहीं दुर्ग सीट भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। दुर्ग सीट पर भाजपा उम्मीदवार सरोज पाड़ेय को भाजपा के वर्तमान सांसद ताराचंद्र साहू कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इस सीट पर कांग्रेस के कमजोर प्रत्याशी प्रदीप चौबे दोनों की लड़ाई का कितना फायदा उठा पाते हैं, यह तो 16 अप्रैल को ही देखने को मिलेगा, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर आकलन किया जाए तो यहां सरोज पांडेय के वोट को ताराचंद्र साहू काटते नजर आ रहे हैं, ऐसे में प्रदीप चौबे अगर बाजी मार ले जाएं तो उसमें कोई संदेह नहीं होगा।
बस्तर सीट पहले से ही भाजपा के कब्जे में है। इस बार यहां कांग्रेस को भाजपा के साथ वाम दल और पार्टी के कद्दावर नेता महेंद्र कर्मा से भी निपटना पड़ रहा है। हालांकि महेंद्र कर्मा ने खुलकर विरोध नहीं किया है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि उन्हें टिकट न मिलने से बढ़ी उनकी नाराजगी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। जांजगीर में भी कांग्रेस के शिव डहरिया को भाजपा के कमला देवी पाटले और बसपा के दाउराम रत्नाकर से कड़ी टक्कर मिल रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के लिए बिलासपुर, राजनांदगांव और कोरबा की सीट प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है। बिलासपुर सीट पर कट्टर प्रतिद्वंद्वी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पत्नी रेणू जोगी और दिलीप सिंह जूदेव आमने सामने है। जूदेव इससे पहले अजीत जोगी के स्टिंग आपरेशन में फंसकर राजनीतिक वनवास गुजार कर एक बार फिर मैदान में हैं। इस बार जोगी को पटखनी देकर जूदेव अपना पुराना हिसाब चुकता करने की फिराक में हैं।
राजनांदगांव की सीट पर मुख्यमंत्री रमन सिंह का सबकुछ दांव पर है। भाजपा ने यहां से युवा नेता मधुसूदन यादव को कांग्रेस सांसद देवव्रत सिंह के मुकाबले मैदान में उतारा है। ऐसा माना जा रहा है कि यहां मधुसूदन नहीं रमन सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि देवव्रत सिंह खरागढ़ से विधायक रहे और लंबे समय से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहे हैं, लेकिन सांसद बनने के बाद लोगों के बीच कम होती उपस्थिति उनके खिलाफ जा रही है। कोरबा में कांग्रेस के कद्दावर नेता चरण दास महंत का मुकाबला सांसद करुणा शुक्ला से है। हालांकि परिसीमन के बाद ऐसा माना जा रहा है कि करुणा शुक्ला की स्थिति कमजोर हुई है, लेकिन कांग्रेस का कमजोर संगठन उसका कितना फायदा उठा पाता है यह तो देखना ही होगा। महंत पर जोगी के विरोधी खेमे के होने के कारण अतिरिक्त दबाव भी है। ऐसे में कोरबा की सीट भले ही कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा की सीट न हो, लेकिन महंत की नाक का सवाल बनी हुई ही है।
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