Monday, May 19, 2008

माया का गया बीता एक साल...

मायावती का पिटारा बहुत बड़ा है. खुद पल में तोला, पल में माशा का उनका स्वभाव इस पिटारे को और भी रहस्यमय बना देता है.

उनके इसी पिटारे में बुंदेलखंड की भूख कैद है. लट्टू जलाने के लिए जिस बिजली की जरूरत है, वह कहां से उत्तर प्रदेश में पहुंचेगी, यह पहेली भी अब तक उनके पिटारे से नहीं निकली है.

पिटारे का हलक सूखा है इसलिए प्रदेश की जनता पानी के लिए हाहाकार कर रही है. परेशान विपक्ष भी है क्योंकि बीते एक साल में आरोप-प्रत्यारोप की बॉलीवाल खेल रहा है. कभी गेंद इस पाले में तो कभी उधर.


सरकार के पास उपलब्धि गिनाने के ढेरों कारण हैं लेकिन प्रदेश की जनता सरकार की ओर से गिनाई जा रही अधिकांश उपलब्धियों के बारे में अखबार में छपे विज्ञापनों के जरिए ही जान पाती है.


बिजली न आने पर पसीने से तर-ब-तर लोग सरकार को कोसते हैं लेकिन आते ही कुछ पलों के सकून की चाह उनकी आवाज बंद कर देती है. बुंदेलखंड की तरह.


यहां चार साल से लोग दाने और पानी के लिए तरस रहे हैं. प्रदेश व केंद्र सरकार दोनों जनता के दर्द से बखूबी वाकिफ है. फिर भी धन की मांग पर दोनों में ठनी है.


दोनों का अहम टकरा रहा है. आरोपों की कई बार जोरदार बारिश हो चुकी है. लेकिन बुंदेलखंड की बला से. वहां सचमुच बारिश की बात तो दीगर है, कुछ गांव ऐसे हैं जहां अब तक एक टैंकर पानी भी नहीं पहुंचा है.


13 मई को सरकार के एक साल पूरे हुए हैं. मौका बड़ा था इसलिए मायावती ने एक घंटे से अधिक समय तक भाषण दिया. इस भाषण में घोषणाएं थी, खुद की पीठ थपथपाने का दुस्साहस भी था और आलोचना भी.


आखिर क्या था मायावती के भाषण में. एक साल से प्रदेश की मुखिया रहते हुए यहां की जनता के लिए उन्होंने कितना किया और क्या-क्या किया। सालाना परीक्षा में उन्हें कितने नंबर मिलने चाहिए. इस बात को टटोलने और उसकी जमीनी तस्दीक करने की कोशिश की गई.


सबसे पहले बात 13 मई 2007 की जब मायावती पूर्ण बहुमत से प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुईं. उन्हें पूर्ण बहुमत सिर्फ इसलिए मिला कि जनता समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में खस्ताहाल हो चुकी प्रदेश की कानून-व्यवस्था से आजिज आ चुकी थी.


लोगों को यह उम्मीद थी कि मायावती आएंगी तो प्रदेश में अपराध का खात्मा हो जाएगा. शुरुआत में कुछ हद तक अपराध कम करने में कामयाब भी हुईं लेकिन उसके बाद प्रदेश के अमूमन सभी पुलिस कप्तान रात में चैन की नींद सोने लगे. उन्होंने मान लिया कि प्रदेश में अमन का राज कायम हो गया.


नतीजा हर दिन लूट, डकैती, हत्या, दुराचार, अपहरण अखबारों की सुर्खियां बनने लगीं. इन 365 दिनों में प्रदेश के 71 लोगों का अपहरण हो चुका है. 118 लोग डकैती के शिकार, 1,265 लोगों को सरे राह लूटा जा चुका है.


1,347 लोगों की बहु-बेटियों के साथ दुराचार की वारदातें हो चुकी हैं. 4,128 लोगों की हत्या और 8,880 लोगों के वाहन चोरी जा चुके हैं. बावजूद इसके सरकार का तुर्रा यह कि मुलायम के मुख्यमंत्री रहने के दौरान हुए अपराधों की फेहरिस्त मायावती सरकार में हुए अपराधों की फेहरिस्त से ज्यादा लंबी थी.


इसमें दो राय नहीं कि मायावती के शासन में अपराध कम हुआ है लेकिन इतना भी नहीं की खुद की पीठ थपथपाई जा सके.


अब बात उत्तर प्रदेश के विकास की. मायावती ने नोएडा से बलिया तक 40 हजार करोड़ की लागत से गंगा एक्सप्रेस वे का निर्माण करने की घोषणा की लेकिन प्रदेश की खस्ताहाल सड़क की दशा सुधारने के लिए सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया. लोक निर्माण विभाग के अनुसार प्रदेश में पाँच हजार किलोमीटर सड़क उछलते-उछलते लोगों को उनके घरों तक छोड़ती है.


सरकार ने हर गांव में एक सफाई कर्मचारी की नियुक्ति की और उसका गुणगान भी किया लेकिन जरा सोचिए कि क्या पूरे गांव की सफाई एक आदमी कर सकता है.


सरकार ने वेल्यू एडेड टेक्स वैट लगाने की घॊषणा की. साथ ही यह भी कहा कि इसका महंगाई से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है जबकि हकीकत यह है कि पांच दर्जन से अधिक वस्तुओं के दाम इससे बढ़ गए हैं. ये वही वस्तुएं हैं जिन्हें जनता सबसे ज्यादा खरीदती हैं.


बहरहाल मायावती ने एक साल के दौरान खुद को राष्ट्रीय व्यक्तित्व प्रदान करने की पूरी चेष्टा की. गुजरात, मध्य प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक का दौरा किया और बसपा का जनाधार मजबूत करने की कोशिश की.


लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अभी से की जा रही बहनजी की तैयारी चुनाव के बाद कौन सी शक्ल लेगी यह तो वक्त की बात है लेकिन इतना जरूर है कि इस एक साल का मायावती ने भरपूर इस्तेमाल बसपा की जड़ों कॊ मजबूत करने में किया है.




अंशुमान शुक्ला

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