Saturday, May 10, 2008

तुम्हारी बारी आने तक कलम में स्याही भी न बचेगी...

देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं कॊ परेशान करने और उन्हें गिरफ्तार करने का यह कॊई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी सरकार ने कई पत्रकारॊं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं कॊ गिरफ्तार किया है। जॊ लॊग सरकार के खिलाफ आवाज उठाए उन्हें सरकार नक्सली कहकर गिरफ्तार करे यह कहां तक सही है। क्या जिस लॊकतंत्र की कल्पना देश की आजादी के समय की गई थी वह यह है। अगर यह है तॊ फिर हमें यह सॊचना हॊगा कि इस लॊकतंत्र के साथ चले या फिर कॊई नया रास्ता खॊजने के लिए तैयार हॊ जाए।

प्रशांत राही

48 साल का ये मानवाधिकार कार्यकर्ता "द स्टेट्समैन" का उत्तराखंड में संवाददाता था। इन्हें 22 दिसंबर, 2007 को उत्तराखंड में हंसपुर खट्टा के जंगलों से गिरफ्तार किया गया था। इनके ऊपर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) समूह का ज़ोनल कमांडर होने का आरोप है।
राही पर भारतीय दंड संहिता की तमाम धाराएं थोपी गई हैं इसमें 'ग़ैरक़ानूनी गतिविधि नियंत्रण एक्ट' भी शामिल है। राही की बेटी शिखा जो मुंबई में रहती हैं उनसे 25 दिसंबर, 2007 को ऊधमसिंह नगर ज़िले के नानकमत्था थाने में मिली थीं। शिखा उनसे हुई बातचीत के बारे में बताती हैं-- "उन्हें 17 दिसंबर, 2007 को देहरादून से गिरफ्तार किया गया था। अगले दिन उन्हें हरिद्वार ले जाया गया, जहां उन लोगों ने उन्हें पीटा और उनकी गुदा में मिट्टी का तेल डाल देने की धमकी दी। पुलिस वालों ने उनसे ये भी कहा कि वो उन्हें अपने सामने मेरा बलात्कार करने के लिए मजबूर कर देंगे। अंतत: 22 दिसंबर, 2007 को पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी दिखाई।"

'गढ़वाल पोस्ट' के संपादक अशोक मिश्रा मानते हैं कि राही को सिर्फ उनकी राजनीतिक विचारधारा की वजह से परेशान किया जा रहा है। "वो वामपंथी विचारधारा के हैं और तमाम जन आंदोलनों में शामिल रहे हैं, जिनमें नए राज्य का निर्माण और टिहरी बांध के विरोध का आंदोलन भी शामिल है।

श्रीसैलम

ऑनलाइन टेलीविज़न मुसी टीवी में एडिटर और तेलंगाना जर्नलिस्ट फोरम(टीजेएफ) के सह संयोजक, 35 वर्षीय श्रीशैलम को उनके मुताबिक 4 दिसंबर 2007 को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पुलिस के दस्तावेजों की मानें तो उन्हें 5 दिसंबर को आंध्र प्रदेश के प्रकाशम ज़िले से गिरफ्तार किया गया था। उनके ऊपर माओवादियों का संदेशवाहक होने का आरोप लगाया गया था। "मैं एक माओवादी नेता का साक्षात्कार करने गया था और पुलिस ने मेरे ऊपर माओवादियों की मदद करने के फर्जी आरोप जड़ दिए," श्रीशैलम बताते हैं। उन्हें 13 दिसंबर को छोड़ दिया गया। मुसी टीवी और तेलंगाना जर्नलिस्ट फोरम दोनो ही अलग तेलंगाना राज्य के समर्थकों में से हैं।

गोविंदन कुट्टी

पीपुल्स मार्च के तेज़ तर्रार संपादक गोविंदन कुट्टी को केरल पुलिस ने 19 दिसंबर, 2007 को गिरफ्तार किया था। उनके ऊपर प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से अवैध संबंध रखने का आरोप था। ग़ैरक़ानूनी गतिविधि नियंत्रण एक्ट (1967) के तहत गिरफ्तार किए गए कुट्टी 24 फरवरी, 2008 को ज़मानत पर रिहा हुए हैं। वापस लौटते ही उन्हें अपने घर पर एर्नाकुलम के ज़िला मजिस्ट्रेट का आदेश चिपका मिला। इसमें कहा गया था कि पीपुल्स मार्च का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया है। इसमें प्रकाशित सामग्री "बगावती है जो कि माओवादी विचारधारा के जरिए भारत सरकार के प्रति अपमान और घृणा की भावना फैलाती है।"
लेकिन इसका प्रकाशन शुरू होने के सात सालों बाद अब ऐसा क्यों? " इसके लेख भारतीय राष्ट्र की भावना के विरोध करनेवाले हैं। वो दृढ़ता से कहते हैं अगर किसी विचारधारा का समर्थन करना उन्हें माओवादी बना देता है तो वो खुद को माओवादी कहलाने के लिए तैयार हैं।

प्रफुल्ल झा

छत्तीसगढ़ में पीयूसीएल के अध्यक्ष राजेंद्र सेल के शब्दों में-- "प्रफुल्ल झा छत्तीसगढ़ के दस सर्वश्रेष्ठ मानवविज्ञानियों में हैं। वो एक ऐसे पत्रकार हैं जिनके विश्लेषण तमाम राष्ट्रीय समाचार चैनलों में अक्सर शामिल किए जाते हैं।" 60 वर्षीय दैनिक भाष्कर के इस पूर्व ब्यूरो प्रमुख को 22 जनवरी, 2008 को गिरफ्तार किया गया था। उनके ऊपर रायपुर पुलिस द्वारा पकड़े गए हथियारों के एक ज़खीरे से संबंध होने का आरोप है। "उन्हें और उनके बेटे को नक्सलियों ने कार खरीदने के लिए पैसे दिए ताकि वो नक्सली नेताओं और हथियारों को इधर से उधर भेज सकें। वो नक्सली साहित्य का हिंदी में अनुवाद भी किया करते थे", कहना है छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन झा का।

लछित बारदोलोई

मानवाधिकार कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार लछित, सरकार और उल्फा के बीच बातचीत में लंबे समय से मध्यस्थ की भूमिका निभाते रहे हैं। उन्हें 11 जनवरी, 2008 को असम के मोरनहाट से गिरफ्तार किया गया। आरोप लगे कि वे उल्फा के साथ मिलकर गुवाहाटी हवाई अड्डे से एक जहाज को अपहरण करने की योजना से रिश्ता रखते थे। इस हाईजैकिंग की योजना का मकसद असम के रंगिया कस्बे में पुलिस द्वारा 2007 में जब्त किए गए हथियारों को छुड़वाना और उल्फा के लिए धन इकट्ठा करना था। आरोपों के बारे में गुवाहाटी के एसएसपी वी के रामीसेट्टी कहते हैं, "अपहरण के मामले में, हमें उल्फा के एक गिरफ्तार आतंकी ने बयान दिया है जिसमें उसने खुद के और बारदोलोई के शामिल होने की बात कही है।"

सरकार कॊ यह तॊ स्पष्ट करना ही हॊगा की वह लॊगॊं कॊ किस गुनाह में जेल में बंद कर रही है। लेकिन कई प्रदेश में ऐसे कानून बना दिए गए हैं जिसके आधार पर किसी भी व्यक्ति कॊ जेल में बंद कर सकती है। आखिर लॊकतंत्र में ऐसा कब तक चलेगा। क्या हम यू ही मूकदर्शक बने रहेंगे।

तहलका हिन्दी में छपी एक रिपोर्ट से साभार।

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