Thursday, May 12, 2016
चुटकी लेने वाले राज्यपाल क्या बचा पाएंगे गरिमा
मृगेंद्र पांडेय
छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति को लेकर कांग्रेस ने मोर्चा खोला है। सड़क से लेकर हर अभियान में कांग्रेस का एक ही मुद्दा है और वह है जोगी की जाति। प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल और कांग्रेसी राज्यपाल को मिले और जोगी की जाति के मुद्दे पर ज्ञापन सौंपा। एक दिन बार राजभवन से जो विज्ञप्ति जारी हुई उसे राज्यपाल की गरिमा के अनुरूप नहीं माना जा सकता। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह विज्ञप्ति किसी पार्टी के एक नेता की हो सकती है, लेकिन किसी राज्य के संवैधानिक प्रमुख की तरफ से अगर इस तरह की विज्ञप्ति जारी होती है, तो उसे राज्यापाल की गरिमा के अनुकूल नहीं माना जा सकता।
राजभवन से जारी विज्ञप्ति के अनुसार, प्रतिनिधि मंडल द्वारा व्यक्ति विशेष के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में कार्रवाई के लिए ध्यान आकर्षित कराए जाने पर चुटकी लेते हुए राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि यह मामला तो घर का है इसे अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं। क्या किसी संवैधानिक प्रमुख को इस तरह का बयान देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो क्या राजभवन की गरिमा को गिराने का काम नहीं किया जा रहा है। यह हो सकता है कि राज्यपाल को दिखाए बिना ही यह विज्ञप्ति जारी कर दी गई हो, लेकिन जब तक जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, यह सवाल उठता रहेगा।
http://dprcg.gov.in/884-12-05-2016
यह है राजभवन से जारी विज्ञप्ति
राज्यपाल श्री बलरामजी दास टंडन से गत दिवस यहां राजभवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री भूपेश बघेल के नेतृृत्व में प्रतिनिधि मंडल ने भेंट कर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के प्रकरणों में त्वरित कार्रवाई के संबंध में ज्ञापन सौंपा। राज्यपाल श्री टंडन ने प्रतिनिधि मंडल को बताया कि राज्य सरकार फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले पर पूरी गम्भीरता और तत्परता से कार्रवाई कर रही है। उन्होंने बताया कि सरकार को इस संबंध में लगभग 550 शिकायतें मिली थी। विजिलेंस कमेटी द्वारा इनमें से लगभग 375 मामलों की विवेचना की गई और 184 मामलों में शिकायतें सही पाई गई है। हाईपावर कमेटी की अनुशंसा पर 25 मामलों में राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई करते हुए संबंधितों को नौकरी से निकाला गया है। शेष मामले उच्च न्यायालय में लंबित हैं।
प्रतिनिधि मंडल द्वारा व्यक्ति विशेष के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में कार्रवाई के लिए ध्यान आकर्षित कराए जाने पर चुटकी लेते हुए राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि यह मामला तो घर का है इसे अपने स्तर पर सुलझा सकते हैं। प्रतिनिधिमंडल से चर्चा के दौरान राज्यपाल श्री टंडन ने कहा कि ऐसे विशिष्ट मामले जिन पर कार्रवाई नहीं की गई हो बताएं, ताकि उन पर कार्रवाई की जा सके। उन्हांेने कहा कि हाईकोर्ट में सरकार की ओर से सही पक्ष नहीं रखने के संबंध में प्रमाण सहित जानकारी उपलब्ध कराएं जिससे कि सरकार को इस संबंध में अवगत कराया जा सके।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस प्रतिनिधि मंडल द्वारा पूर्व में प्रेषित अपने 6 सूत्रीय ज्ञापन में से व्यक्ति विशेष के फर्जी जाति प्रमाण पत्र से संबंधित बिन्दु पर ही जोर दिया जा रहा था। राज्यपाल द्वारा अनेक बार यह कहने पर कि इसके अलावा कोई नई बात हो तो समक्ष में लाएं किन्तु प्रतिनिधि मंडल ने अन्य बिन्दुओं का जिक्र नहीं किया। ज्ञापन में प्रदेश में आउट सोर्संिग, वन अधिकार अधिनियम, पांचवी अनुसूची, अधिसूचित क्षेत्रों में पेसा एक्ट आदि बिन्दुओं का समावेश किया गया था। अंत में प्रतिनिधि मंडल द्वारा समक्ष में राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में फर्जी जाति प्रमाण पत्र संबंधित 338 प्रकरणों की सूची संलग्न की गई।
Thursday, May 5, 2016
विवादों वाले ब्यूरोक्रेट्स, नबंर वन छत्तीसगढ़
मृगेंद्र पांडेय
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को लेकर छत्तीसगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में एक के बाद एक ऐसे आईएएस अफसर विवादों में आए हैं, जो नए हैं और जिनसे कुछ बेहतर करने की उम्मीद है। ये अफसर अब अपने अच्छे काम से नहीं, बल्कि विवादों के कारण पहचान बना रहे हैं। एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ब्रांडिंग नंबर वन के रूप में की जा रही है, इसलिए नए नवेले आईएएस विवादों में लाकर नंबर वन बनवा रहे हैं। सवाल है कि आखिर ये अफसर विवादों में क्यों आ रहे हैं। क्या इनका प्रशिक्षण कमजोर हो गया है, या फिर आईएएस बनने के बाद ये खुद को लोकतंत्र में राजा की जगह रखकर देखने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ में एक अफसर रणबीर शर्मा कुछ स्र्पए की रिश्वत के मामले में फंस जाते हैं।
जगदीश सोनकर डाक्टर होने के बावजूद मरीज से बेअदबी से पेश आते हैं। अमित कटारिया जैसा सुलझा हुआ अफसर पर प्रधानमंत्री को रिसिव करने जाता है, तो प्रोटोकाल का पालन नहीं करता है और किरकिरी होती है। एलेक्स पाल मेनन काफी समझदार माने जाते हैं। सोशल मीडिया पर एक्टिव है। दलित चिंतन से लेकर समाज में बदलाव पर नजर रखते हैं, लेकिन जिस कन्हैया का केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भाजपा सरकार विरोध कर रही है, उसका समर्थन करते हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर को ही कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है। जबकि ये कलेक्टर कानून का ही सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे हैं। मेरा सवाल यह है कि क्या ये आईएएस अफसर अपने अच्छे काम के जरिए पहचान नहीं बना सकते हैं। देश की सर्वोच्च सेवा के लिए चयनित अगर कोई अफसर 500 या हजार स्र्पए के लिए गरीब जनता को प्रताड़ित करता है, तो उसे इस नौकरी में आना ही नहीं था। मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि पैसा कमाने के लिए और भी कई रोजगार हो सकते हैं। नए अफसरों को यह भी सोचना चाहिए कि अब सरकार इतनी तनख्वाह दे रही है कि रिश्वत मांगने की शायद जरूरत नहीं है।
मेरे के साथी ने यह पोस्ट किया कि ये तस्वीर उस यूपीएससी के गाल पर करारा तमाचा है जो सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा में उम्मीदवारों के सिविल सर्विस एप्टीट्यूट और मेन परीक्षा के जनरल स्टडीज पेपर-4 में उम्मीदवारों के इथिक्स, इंटीग्रीटी और एप्टीट्यूट को को परखता है। मुझे भी लगता है कि इन अफसरों का चयन करने वालों को भी एक बार सोचना चाहिए कि क्या उनको प्रशिक्षण देने में कहीं चूक हुई है। क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती कि इनको कुछ सिखाएं। अगर सरकार सिखाने में असफल है, तो उसे पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है। ऐसी सरकार और सरकार को चलाने वाले ब्यूरोक्रेट एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी और अपने काम करने के तरीके के बारे में जरूर सोचें। नहीं तो ऐसा ही होगा कि कोई नेता या मंत्री लोकसुराज जैसे अभियान में किसी आईएएस को मुर्गा बना देगा और जनता ताली पीटेगी।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों को लेकर छत्तीसगढ़ एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में एक के बाद एक ऐसे आईएएस अफसर विवादों में आए हैं, जो नए हैं और जिनसे कुछ बेहतर करने की उम्मीद है। ये अफसर अब अपने अच्छे काम से नहीं, बल्कि विवादों के कारण पहचान बना रहे हैं। एक सीनियर आईएएस अधिकारी ने कहा कि छत्तीसगढ़ की ब्रांडिंग नंबर वन के रूप में की जा रही है, इसलिए नए नवेले आईएएस विवादों में लाकर नंबर वन बनवा रहे हैं। सवाल है कि आखिर ये अफसर विवादों में क्यों आ रहे हैं। क्या इनका प्रशिक्षण कमजोर हो गया है, या फिर आईएएस बनने के बाद ये खुद को लोकतंत्र में राजा की जगह रखकर देखने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ में एक अफसर रणबीर शर्मा कुछ स्र्पए की रिश्वत के मामले में फंस जाते हैं।
जगदीश सोनकर डाक्टर होने के बावजूद मरीज से बेअदबी से पेश आते हैं। अमित कटारिया जैसा सुलझा हुआ अफसर पर प्रधानमंत्री को रिसिव करने जाता है, तो प्रोटोकाल का पालन नहीं करता है और किरकिरी होती है। एलेक्स पाल मेनन काफी समझदार माने जाते हैं। सोशल मीडिया पर एक्टिव है। दलित चिंतन से लेकर समाज में बदलाव पर नजर रखते हैं, लेकिन जिस कन्हैया का केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की भाजपा सरकार विरोध कर रही है, उसका समर्थन करते हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर को ही कानून का पालन कराने की जिम्मेदारी है। जबकि ये कलेक्टर कानून का ही सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे हैं। मेरा सवाल यह है कि क्या ये आईएएस अफसर अपने अच्छे काम के जरिए पहचान नहीं बना सकते हैं। देश की सर्वोच्च सेवा के लिए चयनित अगर कोई अफसर 500 या हजार स्र्पए के लिए गरीब जनता को प्रताड़ित करता है, तो उसे इस नौकरी में आना ही नहीं था। मेरे व्यक्तिगत विचार हैं कि पैसा कमाने के लिए और भी कई रोजगार हो सकते हैं। नए अफसरों को यह भी सोचना चाहिए कि अब सरकार इतनी तनख्वाह दे रही है कि रिश्वत मांगने की शायद जरूरत नहीं है।
मेरे के साथी ने यह पोस्ट किया कि ये तस्वीर उस यूपीएससी के गाल पर करारा तमाचा है जो सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा में उम्मीदवारों के सिविल सर्विस एप्टीट्यूट और मेन परीक्षा के जनरल स्टडीज पेपर-4 में उम्मीदवारों के इथिक्स, इंटीग्रीटी और एप्टीट्यूट को को परखता है। मुझे भी लगता है कि इन अफसरों का चयन करने वालों को भी एक बार सोचना चाहिए कि क्या उनको प्रशिक्षण देने में कहीं चूक हुई है। क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती कि इनको कुछ सिखाएं। अगर सरकार सिखाने में असफल है, तो उसे पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है। ऐसी सरकार और सरकार को चलाने वाले ब्यूरोक्रेट एक बार फिर अपनी जिम्मेदारी और अपने काम करने के तरीके के बारे में जरूर सोचें। नहीं तो ऐसा ही होगा कि कोई नेता या मंत्री लोकसुराज जैसे अभियान में किसी आईएएस को मुर्गा बना देगा और जनता ताली पीटेगी।
Subscribe to:
Comments (Atom)