लोकशाही

Saturday, July 16, 2011

राजधानी रायपुर के तालाबॊं की हालत पर मृगेंद्र पांडेय की रिपॊर्ट-4





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 8:53 PM No comments:

राजधानी रायपुर के तालाबॊं की हालत पर मृगेंद्र पांडेय की रिपॊर्ट-3





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 8:47 PM No comments:

राजधानी रायपुर के तालाबॊं की हालत पर मृगेंद्र पांडेय की रिपॊर्ट-2





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 8:42 PM No comments:

राजधानी रायपुर के तालाबॊं की हालत पर मृगेंद्र पांडेय की रिपॊर्ट-1





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 8:36 PM No comments:

राजधानी रायपुर के तालाबॊं की हालत पर मृगेंद्र पांडेय की रिपॊर्ट





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 8:28 PM No comments:

Thursday, July 7, 2011

जमीन का दर्द-4





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 10:21 AM No comments:

जमीन का दर्द-3





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 10:16 AM No comments:

जमीन का दर्द-2





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 10:14 AM No comments:

जमीन का दर्द-1





Posted by मृगेंद्र पांडेय at 10:10 AM No comments:
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हमारा पता है
कमला काटेज बीटीआई हास्टल के पीछे शंकर नगर रायपुर।
फॊन कर सकते हैं - 9826071300

हम उनके ब्लाग या वेबसाइट की सामग्री का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

बेहतरीन कार्टून कॊ मिलेगी जगह

बेहतरीन कार्टून कॊ मिलेगी जगह
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मृगेंद्र पांडेय की तस्वीर

मृगेंद्र पांडेय की तस्वीर
रायपुर में आने के बाद यह पहली तस्वीर है।

मॉडरेटर

मॉडरेटर
मृगेंद्र पांडेय

मूल मंत्र...

किसका है यह राष्ट्र! सत्ता किसकी है! संप्रभुता का श्रोत कौन है! क्या राजनीति महज़ राज करने की नीति है! कहाँ गए वे भविष्यद्रष्टा जिन्होंने संजोए थे कुछ सपने! “भाग्य के साथ करार” का आत्मविश्वास क्यों चढ़ गया वितंडावाद की भेंट!

ये किसने बाँट दिया मुझे! गरीबी की ‘जाति’ बताएगा कौन! अज्ञानता का ‘धर्म’ कौन तय करेगा! हिंसा का ‘वर्ग’ तो बताना! हँसी का ‘गोत्र’, आँसू का ‘मूल’, स्वाद का ‘रंग’ और गंध का ‘वर्ण’ भी ज़रूर तलाशें हम! प्रेम, दया, करुणा और सहानुभूति का “प्रांत” भी जरूर पूछें हम!

बारूद ने कोई भेद-भाव नहीं बरता! कीटाणु, जीवाणु, विषाणु..... और परमाणु??

मुझे छीनना किसने सिखाया होगा! मुझे लुटेरा किसने बनाया होगा! मैं बदलना चाहता हूँ! आज़ादी चाहता हूँ मैं! अरे सुनो! मेरी अभिलाषा.. मेरा हक़... मेरा कर्तव्य... मैं कहता हूँ सुनो! अरे ठहरो तो! मैं समय हूँ.. शायद राष्ट्र हूँ.. एक नई, सुनहरी, निर्मिति चाहता हूँ.. राष्ट्र-निर्माण करोगे? हाँ-हाँ.. मेरा निर्माण करोगे तुम??

उफ्फ ये शून्य, यह भारहीनता!! अरे मुझे देखो, महसूस करो, छुओ मुझे.. अमूर्त्त नहीं हूँ मैं. संवेदना है मुझमें.. मैं राष्ट्र हूँ.. तुम्हारा ही राष्ट्र.. देखो, ये मेरा लहू.. तुम्हारा लहू एक ही तो है..

कागद पर कुछ स्याह लकीरें हैं! गीले सुर्ख से शुष्क श्यामल हुए हैं ये! इन्हें हरा करना है! इतिहास में जिन्हें इबारतों की शक़्ल में नहीं उकेरा गया उनका वर्तमान सजाएंगे हम! एक नई दुनिया बनाएंगे हम! क्योंकि संभव है यह! इसका रास्ता लोकशाही से होकर जाता हो शायद!

* “भाग्य के साथ करार” – नेहरू का 14 अगस्त 1947 का भाषण “ए ट्रिस्ट विद डेस्टिनी”

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