tag:blogger.com,1999:blog-2198345328045113908.post4893132925625892781..comments2023-04-17T06:56:28.100-07:00Comments on लोकशाही: बिहारीपन को बेचा अब खरीद रहे हैंमृगेंद्र पांडेयhttp://www.blogger.com/profile/16370755031510370178noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-2198345328045113908.post-89786947340402809142009-04-22T10:07:00.000-07:002009-04-22T10:07:00.000-07:00लेकिन राजनीतिक दलों की जिताऊ उम्मीदवारों की खोज फि...लेकिन राजनीतिक दलों की जिताऊ उम्मीदवारों की खोज फिल्मी कलाकारों पर ही जाकर रुकती है। क्योंकि जनता को वास्तविक मुद्दों से दूर रखने के लिए इनके लटके-झटके ज्यादा कारगर होते हैं। हमें सोचना होगा कि आखिर हम उन नेताओं को क्यों चुने, जिन्हे चुनावी मौसम में ही हमारी याद आती है। मौसम खत्म यह भी मेंढक की तरह नदारद हो जाते हैं। चाहे वह अमिताभ हों, गोविंदा हों या फिर कोई और। <br /> kamal ka lekh likha hai.. badhai ho..कनिष्क कश्यपhttps://www.blogger.com/profile/13827188974145349971noreply@blogger.com